यूक्रेन युद्ध से दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को खतरा

रूस के यूक्रेन पर हमले के कारण इसके दुष्परिणाम उन क्षेत्रों में दिखाई देंगे, जो पहले से ही गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं और खाद्य-आयातक देशों को आपूर्ति तथा मंहगाई की मार झेलनी पड़ सकती है।

अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन में सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में वैश्विक खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम के निदेशक केटलिन वेल्श कहते हैं कि रूस के आक्रमण से अनाज और तिलहन के वैश्विक भंडार को लेकर चिंताए पैदा हो गई हैं और इसके बाद ऊर्जा की कीमतों में वृद्धि हुई है।

यह संकट आग में ईंधन का काम करते हुए खाद्य असुरक्षा को बढ़ा रहा है। काला सागर क्षेत्र में कृषि में व्यवधान के प्रभावों को सामने आने में महीनों या साल भी लग सकते हैं। वेल्श ने कहा कि गैस ,ईंधन, खाद्य तेलों और ईंधन आपूर्ति में व्यवधान से खाद्य कीमतों में और भी अधिक वृद्धि होगी।

वेल्श ने कहा कि एक छिपी हुई वास्तविकता यह भी है कि विश्व में खाद्य असुरक्षा पहले ही दस वर्ष के शीर्ष स्तर पर थी और यूक्रेन पर रूसी हमले से पहले कोरोना के कारण लोगों को रोजगारों, कम वेतन,सामानों की आपूर्ति में व्यवधान, खाद्यान्न कीमतों में उतार-चढ़ाव के चलते खाद्य सामग्री के लिहाज से असुरक्षित लोगों की संख्या को रिकॉर्ड स्तर पर धकेल दिया है।

वर्ष 2007 और 2008 में, प्रमुख उत्पादकों – ऑस्ट्रेलिया, बर्मा, रूस, और अन्य देशों में उत्पादन में कमी के कारण कीमतों में वृद्धि हुई थीऔर हैती से कोटे डी आइवर तक लगभग 40 अन्य देशों में दंगे हुए थे।

आज यूक्रेन और रूस से गेहूं, अन्य अनाजों और तिलहन के वैश्विक स्टॉक में कमी से अफगानिस्तान, सीरिया, इथियोपिया मिस्र, लेबनान और सीरिया में अस्थिरता बढ़ सकती है। वेल्श ने कहा यूक्रेन के प्रमुख गेहूं खरीदारों में लगभग आधे देशों में पहले से ही तीव्र खाद्य असुरक्षा महसूस की जा रही थी।

इस युद्ध के कारण रूसी गेहूं की आपूर्ति में कमी से एशिया और अफ्रीका के देशों को प्रतिकूल स्थिातियों का सामना करना पड़ सकता है। वेल्श ने यह भी कहा कि चीन के रूस के जौ और गेहूं को खरीदने के संकल्प के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस के कृषि क्षेत्र पर लगाए गए किसी भी प्रतिबंध का सीमित प्रभाव होगा।

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