दुनिया में किसी देश का राजनीतिक मौसम कैसा भी हो, उसकी चिंता इतनी गहरी नहीं कही जा सकती, जितनी चिंता वैश्विक पर्यावरण परिवर्तनों को लेकर की जानी चाहिए। पिछले 15-20 सालों में जहां दुनिया के पर्यावर्णीय परिवर्तनों ने मौसम चक्र को सीधे तौर पर प्रभावित किया है वहीं पृथ्वी के कई हिस्सों में इस पर्यावर्णीय दुष्चक्र में फंसते नजर आने लगे हैं।
अफ्रीका के मोजाम्बिक में जहां भारी बारिश ने तबाही मचा रखी है तो वहीं फिलीपींस में तूफान फानफोन में सैकड़ों लोगों ने जान गवां दी है।
अगर भारत की बात की जाए तो यहां नवंबर, दिसंबर और जनवरी शीतकालीन मौसम के रूप में जाने जाते रहे हैं। लेकिन इस साल मध्य दिसंबर तक साधारण या शीतकालीन मौसम का आगमन न होना और फिर अचनाक पहाड़ों पर बेकाबू बर्फ हमें कुछ हद तक चेतावनी देता प्रतीत होता है। हालांकि मौसम में ऐसे बदलाव पर्यावरणीय असंतुलन के ही परिणाम हैं, जिसे मानव प्रजाति ने ही पिछले कुछ दशकों में ही तैयार किया है। अगर मौसम चक्र पर गौर करें तो हमें मालूम होता है कि भारत में सभी मौसम करीब एक से सवा महीने तक आगे बढ़ चुके हैं। और इस मौसम चक्र के बदलने से हमें कई बदलाव भी देखने को मिले हैं। ये बदलाव हमें कभी सूखा के रूप में, तो कभी बाढ़ और कभी-कभी तो बर्फ सी जमाने वाली ठंड के रूप में देखने को मिलती है। और इन बदलावों से भारत भलीभांति वाकिफ है।
पहाड़ों पर बेकाबू बर्फ ने हाल बेहाल कर दिया है। जहां जम्मू-कश्मीर में जबरदस्त बर्फबारी हो रही है वहीं मैदानों में भी लोगों का ठंड से जीना मुहाल है। पिछले हफ्ते जैसे ही लगा कि अब ठंड अलविदा कहने वाली है तो वैसे ही अचानक कड़ाके की सर्दी ने अपने होने का अहसास करा दिया।
जहां एक तरफ कश्मीर घाटी में बर्फबारी का अलर्ट है, वहीं पूरा उत्तर भारत अत्यधित ठंड के चलते ठिठुर रहा है। क्षेत्रभर में पारा लुढ़कने के कारण न्यूनतम तापमान में गिरावट दर्ज की गई। हालांकि पहाड़ों में बर्फबारी का ही असर दिल्ली में दिख रहा है। ठंड और कोहरे के साथ दिल्ली की हवा भी दमघोंटू हो गई है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक रविवार को वायु गुणवत्ता सूचकांक 431 के अंक पर रहा। इस स्तर की हवा को गंभीर श्रेणी में रखा जाता है। दिल्ली में सोमवार को पारा 2 डिग्री रहा जबकि दृश्यता .05 सौ मीटर से कम रही। मौसम विभाग के अनुसार दिल्ली ने 120 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है और दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में तापमान 02 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला गया है।
इसी तरह राजस्थान में भी शीतलहर पड़ना जारी है और इसकी राजधानी जयपुर में न्यूनतम तापमान 1.4 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया जो 55 वर्षो का रिकॉर्ड तोड़ गया।
उधर हिमाचल प्रदेश का बड़ा हिस्सा सोमवार को भीषण शीतलहर की की चपेट में रहा। वहां न्यूनतम तापमान हिमांक बिंदु से नीचे बना हुआ है। जहां पंजाब और हरियाणा के अधिकांश हिस्सों में सोमवार को घने कोहरे के बावजूद पारे में मामूली वृद्धि देखी गई, तो फरीदकोट 0.7 डिग्री सेल्सियस के साथ क्षेत्र का सबसे ठंडे स्थान रहा।
पटना सहित पूरे बिहार में भी चल रही पछुआ हवा और छाए कोहरे के कारण ठिठुरन बढ़ गई है। बिहार के गया का सोमवार को न्यूनतम तापमान लुढ़ककर 2.4 डिग्री सेल्सियस हो गया। कुल मिलाकर कहें तो देश के 15 प्रदेशों का पारा पांच डिग्री सेल्सियस से नीचे पहुंच गया। जिसके चलते मौसम विभाग की ओर से दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और बिहार में रेड अलर्ट भी जारी किया गया है। वहीं आगे भी ठंड का कहर जारी रहने की संभावना जताई गई है। मौसम विभाग ने अगली 03 जनवरी तक पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पूर्वी मध्य प्रदेश, पूर्वोत्तर राजस्थान, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, सिक्किम, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ के कुछ क्षेत्रों में ओलावृष्टि के साथ बारिश की संभावना जताई है।
बहरहाल, लगातार बिगड़ते मौसम जिस तरह आम जनजीवन को प्रभावित कर रहे हैं, उससे अधिक ये असंतुलन देश और दुनिया की अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। वहीं कृषि मौसम विज्ञान विभाग की ओर से शीत लहर, ओलावृष्टि और बारिश से अपनी फसलों को बचाने के लिए किसानों को सलाह जारी की गई है।
कृषि मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक, “कई राज्यों में शीत लहर, कोहरे और तापमान गिरने की वजह से रबी की फसलों पर प्रभाव पड़ सकता है। जैसे गेहूं की फसल बोए किसानों के क्षेत्र में 05 डिग्री सेल्सियस से नीचे तापमान जाता है तो फसल का सामान्य विकास प्रभावित होता है और दाने छोटे रह जाने की संभावना है। अगर तापमान 02 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे जाता है तो फसल के पौधे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और पत्तियां टूट सकती हैं।”
ऐसे में देखें तो ठंड किसानों के लिए एक प्राकृतिक आपदा बनकर आयी है। पहले वर्षा और उसके बाद जारी बर्फबारी से किसानों को भारी नुकसान पहुंचा है। जगह-जगह फसलें झूलस गई हैं, जिससे आने वाले दिनों में उन्हे भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। और इसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना स्वभाविक है। पिछले कुछ दशकों में जिस तरह मौसम के मिजाज ने करवट बदली है, वो किसी बड़े खतरे की घंटी से कम नहीं है। समय रहते संभलना और उससे बचाव के उपाय को रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करना ही एक मात्र रास्ता है।
इसे पर्यावरण असंतुलन कहें या बिगड़े मौसम का चक्र, दोनों ही स्थिति का परिणाम भयावह है। क्या ये असंतुलन और चक्र फिर से सही क्रम में आ पाएगा? संभवत: यह मौसम वैज्ञानिकों के लिए अबूझ पहेली है।
-डॉ. म. शाहिद सिद्दीकी
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