“मां का दूध नवजात के लिए दुनिया सभी औषधियों से बढ़कर”

                                प्रतीकात्मक चित्र

यूपी के हेनौता गांव की रहने वाली सुशीला को पहला बच्चा होने वाला था इस दौरान उसकी सास द्वारा उसे होने वाले बच्चे को लेकर तमाम तरह की नसीहते दी जा रही थी, सुशीला को जब पहला बच्चा पैदा हुआ तो उसकी सास ने कहा कि उसे ऊपर से अपने बच्चे को बकरी का दूध पिलाना होगा क्योंकि प्रसव के दौरान सुशीला को इतना दूध नही होगा कि उसके बच्चे का पेट भर पाये।

सुशीला ने अपने सास के कहे अनुसार अपने नवजात शिशु को बकरी का दूध पिलाया जिसके आधे घण्टे ही नवजात को दस्त शुरू हो गया जो रूकने का काम नही ले रहा था देखते ही देखते ही नवजात की हालत बिगडने लगी घर वाले सुशीला के नवजात को आनन फानन में अस्पताल लेकर भागे जहां डाक्टरों ने बडी मुश्किल से सुशीला के बच्चे की जान बचायी।

डाक्टरों के पूछने पर सुशीला ने बताया कि उसने अपने सास के कहे अनुसार बच्चे के अपने दूध के अलावा बकरी का दूध पिला दिया था। डाक्टरों ने कहा कि यह सब उसके नवजात को ऊपर का दूध पिलाने की वजह से हुआ है।

12वीं तक पढी गीता ने यह सुन रखा था कि प्रसव के बाद बच्चे को हर हाल में एक घण्टे के अन्दर अपना दूध पिला देना चाहिए। इससे बच्चे का स्वास्थ अच्छा होता है और मां का दूध बच्चे को बीमारियों से लडने की क्षमता प्रदान करता है। गीता ने प्रसव के बाद अपने नवजात बिटिया को आधे घण्टे के अन्दर अपना दूध पिलाना शुरू कर दिया। उसने नियमित रूप से 6 माह तक अपने बच्चे को केवल अपना दूध पिलाया और ऊपर किसी भी चीज को पिलाने से बची। जिसकी वजह से गीता की बच्चे को किसी तरह की स्वास्थ्य समस्या का सामना नही करना पड़ता।

किसी भी नवजात शिशु के लिए उसके मां का दूध उसके लिए दुनिया सभी औषधियों से बढकर होता है। बच्चे के जन्म के तुरन्त बाद जितनी जल्दी हो सके यानि एक घण्टे के अन्दर मां द्वारा अपना स्तनपान शुरू कर देना चाहिए। इससे नवजात में फुर्ती व चूसने की ताकत बढती है। जिससे उसे स्तनपान करने में मदद मिलती है। प्रसव के बाद पहले तीन दिन से छः दिन के बीच के गाढे पीले दूध को कोलोस्ट्रम कहते है जो उसे 6 माह तक विभिन्न रोगो से बचाता है साथ ही इसमें उपलब्ध विटामिन ए उसकी आंखो की रोशनी एवं प्रोटीन व इमोनोग्लोबिन शिशु के पेट से पहले मल को निकालने के लिए मदद करता है। जिससे नवजात को आंतो को संक्रमण से बचाव में मदद मिलती है।

रीति रिवाज हो सकते है घातकः– स्तनपान को लेकर आज भी गवई स्तर से लेकर शहरो तक रीति रिवाज नवजात के स्वास्थ पर भारी पड जाता है जिसकी वजह से नवजात की जान खतरे में पड सकती है। लोगो का मानना है कि प्रसव के बाद मां को इतना दूध नही होता है जिससे बच्चे का पेट भरा जा सके इसलिए बच्चे को ऊपर की चीजे पिला दी जाती है। साथ ही गर्मियों में लोगो का यह मानना है कि नवजात को अतिरिक्त पानी की आवश्यकता होती है ऐसे मे नवजात को कभी-कभी पानी पिलाने से दस्त व अन्य संक्रमण होने का खतरा होता है।

           डा0 प्रीती मिश्रा, चिकित्सक

प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र बनकटी, बस्ती में चिकित्सक डा0 प्रीती मिश्रा का कहना है कि नवजात को मां के दूध से पर्याप्त मात्रा में पानी की उपलब्धता हो जाती है क्योंकि मां के दूध में लगभग 90 प्रतिशत की मात्रा में पानी उपलब्ध होता है जो उसके शरीर के पानी की आवश्यकता को पूरी करने के लिए पर्याप्त होता है ऐसी अवस्था में ऊपर से पिलाया गया पानी, दूध, घुट्टी, या शहद बच्चे को बीमार बनाकर कुपोषण की तरफ धकेलता है।

प्रसव के बाद इन बातो का रखे ध्यानः- कभी कभी महिला का प्रसव आपरेशन के द्वारा किया जाता है इस दौरान यह जरूरी हो जाता है कि महिला अपने नवजात को लेकर विशेष सावधानी बरते। वह आपरेशन के बाद यह कोशिश करे कि परिवार के सदस्यो ंके सहयोग से अपने बच्चे को जितनी जल्दी हो सके स्तनपान शुरू कर दे। डा0 प्रीती मिश्र के अनुसार नवजात को 24 घण्टे के अन्दर कम से कम 8-12 बार स्तनपान कराना जरूरी होता है।

अगर मां को यह पता करना है कि बच्चे का पेट उसके दूध से पूरी तरह से भर गया है या नही उसके लिए यह देखे कि उसका नवजात 24 घण्टे में कम से कम 6 बार पेशाब जरूर कर रहा हो और उसके पेशाब का रंग रंगहीन या हल्का पीलापन लिये हो। नवजात को पर्याप्त मात्रा में दूध मिलने से उसका वजन लगातार बढता है साथ ही नवजात में चिडचिडापन की समस्या नही पायी जाती है।

स्तनपान के सही विधि का रखे ख्यालः– मां द्वारा कभी कभी नवजात को सही ढंग से स्तनपान नही कराया जाता है ऐसे में बच्चे का पेट पूरी तरह नही भर पाता है। डा0 प्रीती मिश्रा के अनुसार मां को स्तनपान के समय यह ध्यान देना चाहिए कि मां के स्तन का निप्पल यानि गाढा भूरा भाग पूरी तरह से शिशु के मुंह के अन्दर हो जिससे दूध ग्रन्थियों पर दबाव पडता है और बच्चे को आसानी से दूध पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता रहता है। इसके अलावा इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए कि बच्चा मां के गोद में बहुत दूरी पर न हो उसका सिर गर्दन, और शरीर एक सीधी रेखा में हो। मां के लिए जैसे भी स्थिति में आरामदायक हो लेट या बैठकर वह अपने बच्चे को स्तनपान करा सकती है।

बीमारियो में भी जारी रखे स्तनपानः– लोगो का मानना है कि अगर मां बीमार है तो नवजात को स्तनपान नही कराना चाहिए। क्योंकि मां की बीमारी उसके शिशु को भी नुकसान पहुंचा सकती है लेकिन मां में होने वाले कोई भी बीमारी स्तनपान की वजह से बच्चे को नुकसान नही पहुचाती है। जबकि अगर बच्चे को दस्त या बुखार आ रहा हो तो मां द्वारा कराया गया स्तनपान उसे पर्याप्त मात्रा में न केवल पोषण एवं ताकत प्रदान करता है बल्कि पानी की जरूरत को पूरा कर उसे निर्जलीकरण के प्रभाव ेस बचाता भी है।

डा0 प्रीती मिश्र के अनुसार अगर महिला को पीलिया, टीबी, कुष्ठ रोग, मलेरिया, जैसी बीमारियां भी है तो भी बच्चे को स्तनपान करने से नही रोकना चाहिए क्योंकि स्तनपान से बच्चे को इन बीमारियों के होने का कोई खतरा नही रहता है लेकिन ऐसी बीमारियों की अवस्था में डाक्टर की सलाह जरूर लेते रहे।

मां के खान पान का रखे विशेष ख्यालः– स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए यह जरूरी हो जाता है ि कवह अपने खान पान का विशेष ख्याल रखे क्योंकि स्तनपान के दौरान उन्हे अधिक पोषण की आवश्यकता होती है। ऐसे मे पंजीरी, मेवा, मसाला, हरी पत्तेदार सब्जिया, दाले व मौसमी फल, का उपयोग नियमित रूप से करते रहना चाहिए जिससे मां के स्तन में पर्याप्त मात्रा में दूध बनता रहता है। सामान्यतः लोगो का सोचना है कि अधिक दुबली पतली से उसके नवजात को पर्याप्त मात्रा में दूध नही मिल पाता है जबकि पोषक तत्वों से युंक्त भोजन का प्रयोग कर नवजात के लिए पर्याप्त मात्रा में मां द्वारा दूध उपलब्ध कराया जा सकता है।

कामकाजी व जुडवा बच्चे वाली माताये रखे विशेष ख्यालः– अक्सर कामकाजी महिलाओ के लिए बच्चे की देखभाल में तमाम तरह की परेशानियें से दो चार होना पडता है। महिलाओं को मातृ अवकाश के नाम पर अधिकतम 3 माह तक छुट्टी मिल पाती है। इसके बाद उन्हें अपने नौकरी की जिम्मेदारियों को पूरा करने के लिए अपने बच्चे को परिवार के देख रेख में घर पर ही छोडकर जाना पडता है। इस अवस्था में मां को चाहिए कि जाने के पहले वह साफ सुथरे में अपने स्तन से दूध निकालकर रख दे। यह साधारण गर्मी में 6-8 घण्टे में पीने योग्य होता है। अगर महिला कार्य स्थल घर के समीप हो तो उसे समय-समय पर घर आकर बच्चे को स्तनपान कराते रहना चाहिए।

जुडवा बच्चे होने की दशा में मां एक बार में ही दोनो स्तनों से दोने बच्चो को दूध पिला सकती है या वह स्वयं तालमेल रखकर एक के बाद एक बच्चे को दूध पिला सकती है। जुडवा बच्चा होने की दशा में महिला के खान पान व पोषण आहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए। इसके लिए माता के आत्मविश्वास को बनाये रखने के लिए परिवार के अन्य सदस्यों को उसकी मदद व प्रोत्साहन करते रहना चाहिए।

स्तनपान में आने वाली समस्याओं को न करे नजरअंदाजः– कभी कभार मां को स्तनपान के दौरान तमाम तरह की समस्याओं से दो चार होना पडता है। इसमें उसके स्तन पर सूजन के साथ घाव या दुखने की शिकायत हो सकती है। ऐसी अवस्था में स्तनपान के दौरान महिला को दर्द सहना पडता है। इन स्थितियों से बचने के लिए माता को चाहिए ि कवह बच्चे को सही तरीके से स्तनपान कराये व स्तनों को गर्म तौलियो से सेकती रहे, साथ ही स्तनपान कराना बन्द न करे।

स्तनपान से सौन्दर्य पर नही पडता प्रभावः– अक्सर पढी लिखी व कामकाजी महिलाये अपने बच्चे को इस वजह से स्तनपान नही कराती है कि उनके सौन्दर्य पर इसका बुरा प्रभाव पडेगा और वह बेडौल हो जायेगी। अधिकतर महिलाओं का यह मानना है कि उनके स्तन में ढीलापन आ जाता है जिससे उनकी सुन्दरता बिगड जाती है जबकि मां द्वारा अपने बच्चे को स्तनपान कराने से न केवल बच्चा स्वस्थ रहता है बल्कि मां भी स्तन कैंसर, गर्भाशय कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों से बचाव कर सकती है। स्तनपान कराने से महिला के सुन्दरता पर कोई दुष्प्रभाव नही पडता है अगर महिला को लगता है कि उसके स्तनो में ढीलापन आ रहा है तो जरूरी व्यायाम व खान पान में सुधार कर वह अपनी सुन्दरता को चार चांद लगा सकती है।

स्तनपान के है कई फायदेः– स्तनपान न केवल बच्चे को बल्कि उसकी मां को भी स्वस्थ रखने में सहायक होता है। स्तनपान मां और उसके बच्चे में भावात्मक रिश्ता पैदा करने की महत्वपूर्ण कडी होती है। प्रसव के दौरान यदि महिला को अधिक रक्तस्राव हो रहा है तो तुरन्त स्तनपान कराने से महिला के गर्भाशय में सकुंचन होता है जिससे रक्तस्राव में अपने आप कमी आ जाती है।

डा0 प्रीती मिश्र के अनुसार नियमित स्तनपान मां के लिए गर्भ निरोधक का भी काम करता है क्योंकि 6 माह तक दिन और रात केवल अपना स्तनपान कराने से महिला का मासिक चक्र शुरू नही होता है ऐसे में शरीर में अण्डा नही बनता है, जिस कारण गर्भ ठहरने की संभावना न के बराबर होती है फिर भी स्तनपान के दौरान यदि मासिक चक्र शुरू हो जाये तो महिला को गर्भ से बचाव के लिए गर्भ निरोधक साधनो का प्रयोग करना चाहिए।

6 माह तक शिशु को केवल और केवल स्तनपान कराना न केवल बच्चे के कुपोषण से बचाता है बल्कि बीमारियों पर अनावश्यक रूप से आने वाले खर्च से भी बचाता है। बच्चा जब 6 माह पूरा कर ले तो बच्चे को मां के दूध के साथ अतिरिक्त पूरक आहार की आवश्यकता पडती है क्योंकि 6 माह के बाद बच्चे शरीर के पोषक तत्वो की पूर्ति मां के दूध से न ही हो पाती है ऐसी स्थिति में मसला हुआ केला, दलिया, सूजी, दाल, जैसी पचने वाली चीजो के खिलाना शुरू कर देनी चाहिए।

बच्चे के स्तनपान से जुडी सावधानियां व देखभाल को अपनाकर मां न केवल अपने शिशु को स्वस्थ रखने में अपनी भूमिका निभा सकती है बल्कि उससे जुडी तमाम परेशानियों से निजात पा सकती है।

                                                                                                                                          – बस्ती (यूपी) से  वृहस्पति कुमार पाण्डेय की रिपोर्ट

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