मप्र : जिलाध्यक्षों के चुनाव में भाजपा में खींचतान का अंदेशा


मध्यप्रदेश में आने वाले दिनों में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अंदर खाने जोर आजमाइश का दौर चलने के आसार बने हुए हैं, क्योंकि 30 नवंबर को जिलाध्यक्षों का चुनाव होने वाला है और तमाम बड़े दिग्गज अपने-अपने क्षेत्र में अपनी पसंद के जिलाध्यक्षों की ताजपोशी जो चाहते हैं।

राज्य में भाजपा ने एक ही दिन यानि 30 नवंबर को सभी 56 संगठनात्मक जिलों के अध्यक्ष के चुनाव का कार्यक्रम तय किया है। भाजपा की राज्य की सियासत पर गौर करें तो भाजपा में छोटे-बड़े इतने नेता हैं कि अगर उनकी पसंद के जिलाध्यक्ष चुने गए तो संगठनात्मक जिले 56 कम पड़ जाएंगे।

राज्य की राजनीति में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए नेताओं के लिए अपनी पसंद का जिलाध्यक्ष निर्वाचित कराना पहली प्राथमिकता है। वर्तमान प्रदेशाध्यक्ष राकेश सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, नेता प्रतिपक्ष गोपाल भार्गव, राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, प्रह्लाद पटेल, थावरचंद गहलोत, फग्गन सिंह कुलस्ते आदि वे नेता हैं जो अपने-अपने क्षेत्र में अपनी पसंद के नेताओं की जिलाध्यक्ष पद पर ताजपोशी कराना चाहेंगे।

भाजपा के मुख्य प्रवक्ता डॉ. दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि प्रतिनिधियों और नेताओं की सहमति के आधार पर जिलाध्यक्ष चुनने की कोशिश होगी, जहां आम सहमति नहीं बन पाएगी और अगर जरूरी होगा तो चुनाव की प्रक्रिया भी अपनाई जाएगी।

राज्य में जिलाध्यक्षों के निर्वाचन से पहले मंडल अध्यक्षों के चुनाव हो चुके हैं। अधिकांश स्थानों पर मंडल अध्यक्षों के चुनाव के लिए संगठन ने बड़े नेताओं के बीच आपसी समन्वय की कोशिश की थी और उसमें सफलता भी मिली। इसी तरह की कोशिश जिलाध्यक्षों के चुनाव में होगी, ताकि पार्टी नेताओं में किसी तरह की खींचतान न हो।

राजनीतिक विश्लेषक साजी थॉमस का कहना है कि भाजपा हमेशा इस बात पर जोर देती रही है कि आपसी सहमति से चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो। इस बार भी वही प्रयास हो रहे हैं, मगर सब कुछ पार्टी की इच्छा के अनुरूप हो जाए, ऐसा कम लगता है। उसकी वजह है कि इस बार के चुनाव राज्य में भाजपा के सत्ता से बाहर होने के बाद हो रहा है, लिहाजा सभी नेता अपने समर्थकों को पद दिलाने में ज्यादा दिलचस्पी लेंगे, ऐसी संभावना को नकारा नहीं जा सकता। जब भाजपा सत्ता में थी तो जो नेता पदाधिकारी नहीं बन पाता था उसे सत्ता के जरिए संतुष्ट कर दिया जाता था, मगर इस दफा ऐसा नहीं है।

राज्य के बड़े नेता अपनी-अपनी पसंद का प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहते हैं, इसीलिए उनकी कोशिश है कि मंडल अध्यक्षों के बाद जिलाध्यक्ष भी ज्यादा से ज्यादा चुने जाएं ताकि, वे जरूरत पड़ने पर अपनी पसंद के व्यक्ति का प्रदेशाध्यक्ष के चुनाव में समर्थन कर सकें। जिसके जितने ज्यादा मंडल और जिलाध्यक्ष होंगे, उसे अपना दबाव बनाने में उतनी ही आसानी होगी।

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