बैसनपुर्वा गांव के पंकज ने खिलाया चट्टान में दूब !

व्यक्ति विशेष- पंकज उपाध्याय ने यूं लिखी संघर्ष की नई इबारत

“कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता-एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो”

पंकज उपाध्याय

इन पंक्तियों को चरितार्थ किया पंकज उपाध्याय ने, इनका जन्म 2 जुलाई सन 1985 को मध्य प्रदेश के रीवा जिले में जवा तहसील अंतर्गत ग्राम बैसनपुर्वा में हुआ, इनके पिता डॉ. गंगा प्रसाद उपाध्याय जो की पेशे से डॉक्टर हैं, माता स्व. श्रीमती कृष्णा कुमारी उपाध्याय जो कि परम विदुषी एवं कुशल ग्रहणी थी, पंकज जी का विवाह 6 मई 2011 को श्रीमती मोनू देवी उपाध्याय के साथ हुआ जो कि एक कुशल गृहणी हैं, पंकज उपाध्याय की अभिरुचि बाल्यकाल से ही संगीत के प्रति थी और बचपन से ही वह कवि हृदय व कुशल वक्ता थे, जिसके कारण वह सभी का दिल जीत लेने में माहिर थे।

यह तो प्रथम दृष्टया पंकज उपाध्याय की पारिवारिक पृष्ठभूमि देखने पर सामान्य से समझ आती है लेकिन इन्होंने बहुत कम उम्र पर बहुत से झंझाबातों का सामना किया और संघर्ष की नई ईबारत लिखी। आपके गांव बैसनपुर्वा में कोई भी स्कूल नहीं थी 15 से 20 किलोमीटर दूर शासकीय स्कूल में क्षेत्रीय निवासियों के बच्चों को पढ़ने के लिए जाना पड़ता था पंकज उपाध्याय जी भी जुझारू व्यक्ति थे, उनके मन में सदैव टीस उठती रहती थी

आखिर वह अपने क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा की दिशा में कैसे आगे बढ़ाए और उन्होंने बहुत संघर्ष करके और मुसीबतों का सामना करके नवोदय पब्लिक स्कूल के नाम से 2008 में विद्यालय की शुरुआत की, चट्टान में दूब खिलाने जैसा कार्य था यह।

आज भी पंकज उपाध्याय अपने विद्यालय में असहाय और गरीबों को निशुल्क ही शिक्षा प्रदान करते हैं, पंकज उपाध्याय का सफर यहीं नहीं रुका शिक्षा की दिशा में कदम उठाते हुए पंकज उपाध्याय जी ने नवोदय पब्लिक स्कूल के ही नाम से जवा ब्लॉक अंतर्गत डभौरा ग्राम पंचायत में भी विद्यालय की शुरुआत की, ज्ञात हो रीवा जिले में जवां तराई अंचल का क्षेत्र माना जाता है जो कि दस्यु प्रभावित क्षेत्र है और काफी पिछड़ा माना जाता है, लेकिन पंकज उपाध्याय जी का यह क्रांतिकारी प्रयास अंधेरे में दीपक से कम नहीं था, ज्ञान का दान महादान और हर बच्चा शिक्षित हो यह पंकज उपाध्याय जी का सर्वोच्च लक्ष्य था, और वह इसी धुन में लगे रहते थे अब तक उन्होंने नवोदय पब्लिक स्कूल के नाम से अलग-अलग जगहो में 4 विद्यालयों की शुरुआत कर चुके हैं, और शिक्षा के क्षेत्र में अपना अप्रतिम योगदान दे रहे हैं, उनका मानना है कि कोई भी बच्चा अशिक्षित ना रहे।

इसी के साथ पंकज उपाध्याय जी सामाजिक संगठन जय महाकाल सेवा संघ के जिला प्रचारक भी हैं जिसके अंतर्गत उन्होंने नशा मुक्ति अभियान के तहत अपने निजी वाहन से संपूर्ण रीवा जिले की यात्रा कि और लोगों को व युवाओं को नशा मुक्ति का संदेश दिया और जागरूक किया।

पंकज उपाध्याय जी की एक ख्वाहिश थी कि जिन गरीब मजदूरों को न्याय नहीं मिलता है उनको न्याय दिलाना चाहिए, इसलिए उन्होंने वकालत करने का फैसला किया और रीवा जिला के जवां ब्लाक स्थित ईश्वरचंद्र विद्यासागर कॉलेज से एलएलबी कि पढ़ाई अच्छे अंको से उत्तीर्ण की, और डिग्री लेने के बाद जब वह स्टेट बार काउंसिल जबलपुर में अधिवक्ता के रूप में पंजीयन करने का आवेदन दिया तो उन्हें पता चला कि जिस कॉलेज से उन्होंने डिग्री हासिल की उस कॉलेज की मान्यता ही नहीं है, यह नोटिस जैसे ही उनको बार काउंसिल की तरफ से प्राप्त हुआ तो उनके साथ जितने भी छात्र उस कॉलेज के थे उन सभी में निराशा छा गई और थोड़ा बहुत प्रयास करने के बाद वह सब हार मानकर बैठ गए, लेकिन पंकज उपाध्याय जी ने कहा कि अगर न्याय पाताल में भी होगा तो हम उसे खोज कर लाएंगे और उन्होंने लड़ाई लड़ने का निश्चय किया।

महाविद्यालय के प्राचार्य, विश्वविद्यालय के कुलपति, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री एवं राष्ट्रपति तक उन्होंने आवेदन भेजे, हर उस जिम्मेदार अधिकारी का दरवाजा खटखटाया जो जिम्मेदार थे,
लेकिन जब उन्हें सफलता कहीं से नहीं मिली तो उन्होंने हाई कोर्ट में पिटीशन दायर कर दिया, जिन लोगों की कॉलेज थी वह क्षेत्र के बाहुबली थे उन्होंने पंकज उपाध्याय जी को डराने-धमकाने का प्रयास किया, लेकिन जब वह नहीं माने तो उन पर जानलेवा हमला भी करवाने का प्रयास किया गया, लेकिन “जाको राखे साइयां-मार सके ना कोय”

पंकज उपाध्याय जी अपनी इस न्याय की लड़ाई को लड़ते रहें और 4 साल तक रीवा और जबलपुर की दूरियां नापते रहे, लोग उन्हें पागल कहने लगे कि इतने बड़े-बड़े लोगों से क्यों लड़ाई लेते हो तुम इनका कुछ नहीं कर पाओगे, लेकिन वह सिर्फ यही कहते कि अगर इस दुनिया में कहीं न्याय है.. सत्य है.. तो हमें जीत जरूर प्राप्त होगी।

जब पूरे रिश्तेदार और साथी गण पंकज उपाध्याय जी की तरफ पीठ फेर लिए तब उस समय उन्हें हौसला देने के लिए उनके पिता श्री गंगा प्रसाद उपाध्याय और उनके मित्र देवेंन्द्र द्विवेदी का ही साथ था, जिनसे वह अपने दिल की बात कर सकते थे।
अंततोगत्वा सच्चाई की जीत हुई और पंकज उपाध्याय जी हाई कोर्ट से केस जीत गए, पूरे क्षेत्र में पंकज जी के नाम की चर्चा जोरों पर होने लगी और आज पंकज उपाध्याय जी अपने मेहनत,परिश्रम और संघर्ष के बल पर रीवा जिले के एक सफलतम अधिवक्ता हैं, उनका मानना है की संघर्षों में ना घबराना यह प्रेरणा उन्हें अपने मां से मिली और आज वह जो कुछ भी हैं अपनी मां के ही आशीर्वाद के फलस्वरुप ही है, पंकज उपाध्याय जी चाहे वह विद्यालय की शुरुआत हो या अधिवक्ता के रूप में, यह कार्य पैसों के लिए नहीं बल्कि निस्वार्थ लोक कल्याण की भावना से कर रहे हैं।

आज भी वह गरीबों-मजलूमो जिनका कोई सहारा नहीं होता उनका निशुल्क केस लड़ते हैं, एवं उन्हें मार्ग व्यय वा भोजन व रात्रि विश्राम भी अपने आवास में करवाते हैं।

यह राह नहीं है फूलों की, कांटे ही इस पर मिलते हैं, लेकर के दर्द जमाने का, बस हिम्मत वाले चलते हैं।

                                                                                                                                                                             -देवेंन्द्र द्विवेदी, रीवा.

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One thought on “बैसनपुर्वा गांव के पंकज ने खिलाया चट्टान में दूब !

  1. बैसनपुर्वा की धरा धन्य हो गई 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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