बदलाव के युग में कितनी तैयार हैं महिलाएं ?

चिट्टठी के लिए पोस्टमैन का इंतजार, एसटीडी बूथ पर कॉल का इंतजार और फिर ऑटोमैटिक मशीन युग के बाद अब इंडस्ट्री 4.0 का जमाना दस्तक दे चुका है। इंडस्ट्री 4.0 के जमाने में कल-कारखाने और काम करने के तरीके में भी बदलाव साफ देखने को मिल रहा है और जिसका असर दुनिया की आधी आबादी पर भी देखा जा सकता है। ‘आधी आबादी’ यानि ‘महिलाएं’, – कितनी तैयार हैं इस बदलाव के लिए?

भारत जैसे विकासशील देश में, मोबाइल के जरिये सुरक्षा का सवाल हो या घर बैठे ऑनलाइन पेमेंट करना हो, सभी जगह जरूरत बन चुके मोबाइल सुविधा पर पुरुषों का ही एकाधिकार दिखता है। आंकड़ों पर गौर करें तो हम पाते हैं कि देश की आधे से अधिक महिलाओं के पास मोबाइल नहीं है। डिजिटल इंडिया के सपने लिए, भारत इंटरनेट या मोबाइल का इस्तेमाल करने के मामले में तेजी से आगे जरूर बढ़ रहा है, लेकिन इस क्रांति में महिलाएं पुरुषों से काफी पीछे हैं। अगर मोबाइल और इंटरनेट का महिलाओं द्वारा इस्तेमाल पर आंकलन करें तो इंटरनेट प्रयोग करने के मामले में तो स्थिति और भी दयनीय है।

8 नवंबर 2016 से नोटबंदी के बाद से हीं सरकार डिजिटल प्रणाली से भुगतान को बढ़ावा देने में लगी हुई है और लोगों को डिजिटल वर्ल्ड से जोड़ने के तमाम कोशिशें भी कर रही हैं। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत महिलाओं को आ रही है, जो अब तक इस तकनीकी क्रांति का हिस्सा नहीं रहीं। नतीजा ये रहा कि डिजिटल साक्षरता को दिए जा रहे प्रोत्साहन के बावजूद महिलाओं की एक बड़ी आबादी साक्षर नहीं हो पाई है। अगर हम सामाजिक स्थिति का गहन आंकलन करें तो पाते हैं कि महिलाओं के इंटरनेट या मोबाइल से जुड़ने में कई बाधाएं हैं। पारिवारिक दबाव और जानकारी या स्वयं महिलाओं की रूचि ना होना इसकी बड़ी वजह रही है। IMRB की एक रिसर्च के मुताबिक ऑनलाइन आने में महिलाओं के सामने तीन प्रमुख अड़चनें हैं- पहुंच, ज्ञान और जागरूकता । ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के पास घर का कामकाज इतना ज्यादा होता है कि इंटरनेट के लिए समय ही नहीं बचता। दूसरा, उनके पास खुद का मोबाइल भी नहीं होता। ये अड़चनें डिजिटल इंडिया के सपने को चूर-चूर करने के लिए काफी हैं।

डिजिटल इंडिया का सपना तब तक पूरा नहीं हो सकता, जब तक इसमें आधी आबादी शामिल नहीं होती। इस बड़े लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं – लैंगिक असमानता को दूर करने के लिए भरपूर कोशिश कर रही है। समाज की मानसिकता बदलने की इस मुहिम में गैर सरकारी संस्था- जैसे गूगल और एक्सिस बैंक का योगदान बेहद सराहनीय है।

गूगल और एक्सिस बैंक अपने-अपने प्रोग्राम के जरिए देश के ग्रामीण इलाकों में अभियान छेड़ रखा है। शुरुआती दौर में जहां गूगल अपने प्रोग्राम ‘इंटरनेट साथी’ के जरिए 12 राज्यों के करीब तीन लाख गांवों में महिला सशक्तिकरण का लक्ष्य रखा है, वहीं एक्सिस बैंक अपने प्रोग्राम “डिजीप्रयास” के जरिए करीब 10 राज्यों के गांवों को वित्तीय लेनदेन के लिए डिजिटल सिस्टम से जोड़ने के लिए प्रेरित कर रहा है। और ये दोनों ही कार्यक्रम आज के दौर में इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इन दोनों का प्रथम उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं का डिजिटल सशक्तिकरण है, जो कभी तकनीकी क्रांति का हिस्सा नहीं रहीं।

लंदन की ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशन (जीएसएमए) की ‘मोबाइल जेंडर गैप रिपोर्ट 2019′ के मुताबिक भारत में 59% महिलाओं के पास मोबाइल फोन हैं, लेकिन पुरुषों की तुलना में यह आंकड़ा 26% कम है। मोबाइल पर इंटरनेट इस्तेमाल करने के मामले में यही अंतर 56% का है। इसके मुताबिक, 2014 के बाद से अब तक दुनियाभर में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाली महिलाओं की संख्या 25 करोड़ तक बढ़ गई है। जीएसएमए ने इस सर्वे में कम और मध्यम आय वाले 18 देशों के लोगों को शामिल किया था। इसमें सामने आया कि भारत के 59% पुरुष और 42% महिलाएं इंटरनेट को लेकर जागरूक हैं।

हालांकि, आज के दौर में सोशल साइट्स पर मौजूदगी का भी अपना क्रेज है। खासतौर पर ज्यादातर युवा ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर रहें है, लेकिन यहां भी महिलाओं की हिस्सेदारी बहुत ही कम है। इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (IAMAI) की एक रिपोर्ट भी यही कहती है। इस रिपोर्ट के मुताबिक इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों में महिलाओं की भागीदारी सिर्फ 30% के आसपास ही है।

2016 में जीएसएम एसोसिएशन ने अपनी रिपोर्ट में महिलाओं की भागीदारी 38 फिसदी बताया था । इस आंकड़े में भी फेसबुक, ट्विटर और इंस्टाग्राम पर सक्रिय महिलाओं की संख्या भी पुरुषों के मुकाबले काफी कम है। इसी तरह ‘डिजिटल इन अपक 2016’ की रिपोर्ट भी यही पुष्टि करती है, कि भारत में फेसबुक इस्तेमाल करने के मामले में महिलाएं, पुरुषों से काफी पीछे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक कुल फेसबुक यूजर्स में 76 प्रतिशत पुरुष हैं जबकि महिलाओं की संख्या केवल 24 फीसदी ही है।

ये सच है कि भारत में पुरुष प्रधान समाज की वजह से महिलाएं डिजिटल वर्ल्ड का हिस्सा नहीं बन पा रही हैं। लेकिन, निरंतर कोशिश और वक्त की जरूरत का असर जल्द ही उन्हें डिजिटल साक्षर बना देगा। अगर सरकारी और गैर सरकारी संस्थाए ऐसी ही इमानदार कोशिशें करती रहीं, तो यकीनन 2020 तक भारत में कुल इंटरनेट उपभोक्ताओं में से 40 फीसदी महिलाएं हो सकती हैं।

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