प्राथमिक पाठशालाओं में छत्तीसगढ़ी बोलियां पढ़ाई जाएंगी : बघेल


छत्तीसगढ़ के जगदलपुर में गणतंत्र दिवस के मुख्य समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने ध्वजारोहण किया और परेड की सलामी ली। परेड में सरेंडर नक्सली पोड़ियामी नंदा ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और तिरंगे को सलामी दी। ऐसा पहली बार हुआ है, जब किसी सरेंडर नक्सली ने परेड के दौरान सलामी दी हो। इस दौरान मुख्यमंत्री ने स्कूल शिक्षा में नए सत्र से स्थानीय बोली को शामिल करने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि अब छत्तीसगढ़ की महान विभूतियों की जीवनी और संविधान की प्रस्तावना पर भी चर्चा होगी।

लालबाग परेड मैदान में आयोजित समारोह में मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि गणतंत्र की सफलता की कसौटी जनता से सीखकर, उनकी भागीदारी से, उनके सपनों को पूरा करने में है। छत्तीसगढ़ की माटी और छत्तीसगढ़ की जनता से बड़ी कोई पाठशाला नहीं है। मैं जितनी बार बस्तर आता हूं, सरगुजा जाता हूं या गांव-गांव का दौरा करता हूं तो हर बार मुझे कोई नई सीख मिलती है। इससे पहले मुख्यमंत्री ने छत्तीसगढ़ी में भाषण की शुरुआत करते हुए कहा- जम्मो संगी-जहुंरिया, सियान-जवान, दाई-बहिनी अऊ लइका मन ला जय जोहार, 71वें गणतंत्र दिवस के पावन बेरा म आप जम्मो मन ल बधाई अउ सुभकामना देवत हंव।

मुख्यमंत्री ने कहा- जब केंद्र में यूपीए सरकार थी तब ’शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009’ में प्रावधान किया गया था कि बच्चों को यथासंभव उनकी मातृभाषा में पढ़ाया जाए। आगामी शिक्षा सत्र से प्रदेश की प्राथमिक शालाओं में स्थानीय बोली-भाषाओं छत्तीसगढ़ी, गोंडी, हल्बी, भतरी, सरगुजिया, कोरवा, पांडो, कुडुख, कमारी आदि में पढ़ाई की व्यवस्था की जाएगी। सभी स्कूलों में प्रार्थना के समय संविधान की प्रस्तावना का वाचन, उस पर चर्चा जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। छत्तीसगढ़ की महान विभूतियों की जीवनी पर परिचर्चा जैसे आयोजन किए जाएंगे।

मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे यह कहते हुए बहुत गर्व का अनुभव होता है कि बस्तर के हमारे अमर शहीद गैंदसिंह और उनके साथियों ने सन् 1857 की पहली क्रांति के ज्ञात-इतिहास से बहुत पहले परलकोट विद्रोह के जरिये गुलामी के खिलाफ जो अलख जगाई थी, वह भूमकाल विद्रोह के नायक वीर गुण्डाधूर और शहीद वीरनारायण सिंह के हाथों में पहुँचकर मशाल बन गई। मैं यह सोचकर भी बहुत रोमांचित हो जाता हूंं कि अमर शहीद मंगल पांडे, भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, रानी लक्ष्मी बाई जैसे क्रांतिकारियों की पावन परंपरा का हिस्सा छत्तीसगढ़ भी बना था।

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