पुस्तक समीक्षा: “वुमेन रिफ्यूजी व्यासेस फ़्रॉम एशिया एंड अफ्रीका”, शरणार्थियों की दर्दे दास्ताँ!

नई दिल्ली, १३ जून:  एक्शन एड (इंडिया) ने सोमवार को रिफ्यूजी पर एक नई किताब “वुमेन रिफ्यूजी व्यासेस फ़्रॉम एशिया एंड अफ्रीका“ का विमोचन किया। यह किताब शरणार्थियों के अनुभवों पर केंद्रीत है, जो युवा पाठकों को उस स्थिति से परिचय कराएगा कि क्या होता है जब कोई अपना घर, अपना समुदाय और अपनी एकमात्र दुनिया खो देता है, जिसे वो जानता है या उसके साथ ज़िंदगी के कुछ साल गुज़ार चुका होता है। इस किताब में एशिया और अफ़्रीका की ऐसी ही महिला शरणार्थियों ने अपने अनुभवों को साझा किया है, जिसने अपनों को खोने के साथ-साथ, विभिन्न शरणार्थी शिविरों में अपनी ज़िंदगी की जंग लड़ रही हैं। एक्शन एड (इंडिया) की पुस्तक में भी दुनिया भर में ज़िंदगी से जंग लड़ रही महिला शरणार्थी के उन सभी पहलूओं पर चर्चा की गई है, जिससे उसे गुजरना पड़ता है।

“वुमेन रिफ्यूजी व्यासेस फ़्रॉम एशिया एंड अफ्रीका” पुस्तक विमोचन के मौक़े पर एक्शन एड (इंडिया) के संदीप चाचरा ने कहा, ‘‘ अपना घर और हर वो चीज छोड़ना किसे पसंद है, जिसे आप जानते है। मैं ऐसे बहुत सारे लोगों की कहानियां जानता हूं जिन्हें ऐसा करना पड़ा।मुझे उम्मीद है कि पिछले कुछ सालों में मेरी मुलाकात जिन लोगों के साथ हुई है, उनके माध्यम से एशिया और अफ्रीकी देशों में विस्थापित महिला शरणार्थियों की कहानी साझा करके मैंइस पुस्तक के माध्यम से दूसरों को यह समझने में सहायता कर रहा हूं कि संघर्ष में विस्थापित लाखों लोगों के साथ क्या हो रहा है।’’

उन्होंने आगे कहते हुए ये भी ज़िक्र किया कि कैसे पूरे विश्व में शरणार्थियों की संख्या बढ़ती जा रही है।यूक्रेन संकट का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “ रूस के हमले के चार दिन बाद ही सोमवार को यूरोपीय संघ ने कहा कि क़रीब ४ लाख से ज़्यादा शरणार्थियों ने यूक्रेन से प्रवेश किया।और अभी भी लाखों की तादाद में जा रहे हैं। संकट की घड़ी में  यूक्रेन के लिए यूरोपीय संघ, कनाडा एवं अमेरीका ऐसे उपाय तैयार कर रहे थे जो अस्थायी निवास परमिट के साथ-साथ इन्हें रोजगार दे और सामाजिक कल्याण तक भी पहुंचाए, लेकिन, ऐसे ही संकट के दौर में अफ़ग़ानी, रोहिंग्या, सीरियाई या फिर अफ्रीकी शरणार्थियों के मामले में नहीं दिखा। उनके लिए तो ठीक  से दरवाजे तक नहीं खुले।”

हालाँकि,  रिफ्यूजी पर किताब “वुमेन रिफ्यूजी व्यासेस फ़्रॉम एशिया एंड अफ्रीका“ के विमोचन कार्यक्रम में यूएनएचसीआर के सीनियर प्रोग्राम ऑफ़िसर – एफराइम टैन भी मौजदू थे। उन्होंने दुनिया भर में शरणार्थियों के साथ अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा, “पुस्तक में दर्ज सभी देशों में मैंने शरणार्थियों के दर्द को ख़ुद महसूस किया है। चाहे अफ्रीकी देश सोमालिया, केन्या या कॉन्गो ही क्यों न हो, वहाँ के शरणार्थियों की हालत और बंग्लादेश या भारत में शरण लेकर रह रहे विस्थापित लोग से अलग नहीं है।”

पुस्तक विमोचन के आख़िर में “चाइल्ड राइट एंड यू(क्राइ)” की सीईओ पूजा मारवाह ने भी पुस्तक की गंभीरता का ज़िक्र करते हुए कहा कि मैं उन विस्थापित बच्चों के लिए चिंतित हूँ, जिन्हें स्थायी जगह नहीं होने से शिक्षा या स्वास्थ्य सेवा का लाभ नहीं मिल पाता। ऐसे में  शिक्षा के बिना उनका भविष्य भी संकट में पड़ सकता है। ये पुस्तक सभी नीति निर्धारकों के लिए आईना दिखाने का काम कर सकता है।”

हालाँकि, पुस्तक विमोचन से पहले एक पैनल डिस्कसन में शरणार्थी विषय पर काम कर रहे अलग-अलग संस्थाओं से जुड़े विशेषज्ञों ने भी अपने अनुभव एवं सुझाव रखे। चर्चा में मुख्यरूप से यूएनएचसीआर की तरफ़ से सेलिना मैथ्यू, यूजेएएस से हिंदू सिंह सोंढा , सेव द चिल्ड्रन से  सिद्धारथा पांडे, जेस्युईट रिफ्यूजी सर्विस से फादर लुई अल्बर्ट एवं दिल्ली यूनिवर्सिटी से प्रो. नसरीन चौधरी मौजूद रहे।

-डॉ. म शाहिद सिद्दीक़ी

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