पर्यावरण संरक्षण को पीएम मोदी ने बताया, “एक सामूहिक जिम्मेदारी”, COP28 के ‘सुल्तान’ बोले – “साझेदारी से ही हल संभव”

नई दिल्ली, 22 फरवरी: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को कहा कि पर्यावरण संरक्षण भारत के लिए कोई मजबूरी नहीं बल्कि प्रतिबद्धता है। उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि विकास और प्रकृति एक साथ कदम ताल कर सकते हैं।

उन्होंने यहां ‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट’ (टेरी) द्वारा आयोजित विश्व सतत विकास शिखर सम्मेलन (डब्ल्यूएसडीएस) में एक संदेश के माध्यम से कहा कि भारत ऊर्जा के नवीकरणीय और वैकल्पिक स्रोतों से अपनी बिजली की बढ़ी हुई मांग को पूरा करने का प्रयास कर रहा है।

वहाँ मौजूद संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के सुल्तान और सीओपी-28 (कोप-28) के मनोनीत अध्यक्ष सुल्तान अल जाबेर ने बुधवार को कहा कि यूएई नई दिल्ली के उच्च वृद्धि-कम कार्बन के लक्ष्य में योगदान देने के लिए भारत के साथ साझेदारी के सभी अवसरों का पता लगाएगा।

उन्होंने यह भी कहा कि वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लक्ष्य पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।

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अल जाबेर ने कहा कि भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है और यह इसे ऊर्जा के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक बनाता है। इस प्रकार, भारत का सतत विकास न केवल अपने लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है।

उन्होंने कहा, ‘‘अगले सात साल में 500 गीगावाट स्वच्छ ऊर्जा जोड़ने का भारत का लक्ष्य सही और शक्तिशाली इरादा है। अक्षय ऊर्जा में सबसे बड़े निवेशकों में से एक के रूप में, यूएई और मसदर (नवीकरणीय ऊर्जा निवेश फर्म) भारत के साथ साझेदारी के सभी अवसरों का पता लगाएंगे ताकि इसके उच्च-विकास-कम-कार्बन के लक्ष्य की दिशा में योगदान दिया जा सके।’’ उन्होंने कहा, ‘‘1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को बनाए रखने से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। और, यह भी स्पष्ट है कि हम सामान्य रूप से व्यवसाय जारी नहीं रख सकते।’’

जाबेर संयुक्त अरब अमीरात के जलवायु दूत भी हैं। वह यहां ‘‘द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट’’ द्वारा आयोजित विश्व सतत विकास शिखर सम्मेलन (डब्ल्यूएसडीएस) को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें अनुकूलन, शमन, वित्त, नुकसान और क्षति के लिए हमारे दृष्टिकोण में एक सच्चे, व्यापक बदलाव की आवश्यकता है।’’

1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को बनाए रखने का मतलब है कि ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने और जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब प्रभावों को रोकने के लिए ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए कार्रवाई करना है।

वर्ल्ड सस्टेनेबल डेवलपमेंट समिट (WSDS) में कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर- जेफरी डी सैक्स ने भी तेज़ी से हो रहे जलवायु परिवर्तन पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, “हम यहां भविष्य के बारे में चेतावनी देने के लिए नहीं हैं, बल्कि हम बाढ़, सूखा और अन्य प्राकृतिक आपदा के रूप में आज संकट के बीच खड़े हैं।”

एक पैनल चर्चा में, प्रोफेसर ने अमेरिका की नीति की भी काफ़ी आलोचना की। उन्होंने कहा, “रूस के साथ अनावश्यक युद्ध में यूक्रेन को ढकेलने के लिए यूएसए को ज़िम्मेदार ठहराया।

उधर रोमानिया के प्रधान मंत्री के स्टेट काउंसलर, लेज़्लो बोरबली ने भी सतत विकास प्राप्त करने की चुनौतियों को साझा करते हुए इसकी तुलना रूबिक क्यूब से की। उन्होंने कहा, “जलवायु और सतत विकास एक रूबिक क्यूब की तरह है, बिना इसे सही तरीके से ठीक किए, आप इसके वांछित लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकते।” लास्ज़लो बोरबली ने नागरिक समाज, शिक्षा और सामुदायिक नेटवर्क के महत्व पर भी जोर दिया।

द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (टीईआरआई) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय शिखर सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में गुयाना के उपराष्ट्रपति भरत जगदेव ने भी महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान आकर्षित किया।

डॉ. जगदेव, जो गुयाना के पूर्व दो-कार्यकाल के राष्ट्रपति भी हैं, देश की निम्न कार्बन विकास रणनीति (LCDS) के वास्तुकार और पृथ्वी के चैंपियन हैं, ने कहा कि यह समय है जब दुनिया समाधानों की खोज और समाधान के बीच संतुलन बनाती है। व्यक्तिगत आजीविका और राष्ट्रीय विकास के लिए वन संसाधनों का सही इस्तेमाल करने की आवश्यकता है।

डॉ जगदेव ने आगे कहा, “हम परोपकार के द्वारा (जंगलों) को संरक्षित नहीं कर सकते हैं … हम 2030 तक वनों की कटाई को समाप्त भी नहीं कर सकते।” उन्होंने कहा कि जब तक लोग और देश विकास के लिए वनों का इस्तेमाल करते रहेंगे, तब तक विकसित देशों को वनों के वैकल्पिक उपयोग से बाहर निकलना मुश्किल होगा।

वर्ल्ड सस्टेनेबल डेवलपमेंट समिट (WSDS) के उद्घाटन दिवस के 22वें संस्करण में अमिताभ कांत, G20 शेरपा  और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव भी शामिल हुए।

डब्ल्यूएसडीएस में अपने संबोधन में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने यह भी कहा कि जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता के नुकसान और भूमि क्षरण का मुकाबला राजनीतिक विचारों से परे है और यह एक साझा वैश्विक चुनौती है। उन्होंने कहा, “भारत समाधान का हिस्सा बनने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है।”

उन्होंने कहा कि भारत के जी20 की अध्यक्षता संभालने से सतत विकास के आसपास के संवाद पर वैश्विक ध्यान गया है, विशेष रूप से कार्रवाई के संयुक्त राष्ट्र के महत्वपूर्ण दशक में।

G20 शेरपा-अमिताभ कांत ने कहा कि जलवायु समाधान खोजने के लिए G20 महत्वपूर्ण है। जी20 शेरपा ने बताया कि हरित परिवर्तन को सक्षम करने के लिए “मिश्रित वित्त और ऋण वृद्धि जैसे नए साधन” की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, “जब तक वित्तीय एजेंसियों को सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) और जलवायु वित्त दोनों के लिए वित्तपोषित करने के लिए संरचित नहीं किया जाता है, तब तक दीर्घकालिक वित्तपोषण प्राप्त करना संभव नहीं होगा।”

-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी, Follow via Twitter @shahidsiddiqui

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