नागालैंड के मोन जिले में 4 दिसंबर को हुई फारिंग में 14 नागरिकों और एक जवान की की मौत के बाद बवाल अभी भी शांत नहीं हुआ है।
वहीं अब नागालैंड कैबिनेट ने केंद्र सरकार से राज्य में सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA, 1958) को वापस लेने का अनुरोध किया है। दअसल, ये यह अधिनियम भारतीय सशस्त्र बलों को ‘अशांत क्षेत्रों’ में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए विशेष अधिकार देता है।
वहीं इससे पहले कोनयाक यूनियन ने सरकार को 5 सूत्रीय ज्ञापन दिया थ। जिसमें फायरिंग की घटना में शामिल जवानों के विरुद्ध कार्रवाई और AFSPA को निरस्त करने की मांग की गई थी।
जानकारी के मुताबिक नागालैंड की सरकार जल्द ही राज्य में इस अधिनियम को वापस लेने के लिए मजबूत सिफारिशों के साथ एक औपचारिक पत्र केंद्र सरकार को लिखेगी। यह निर्णय पूर्वोत्तर के नेताओं के बीच बढ़ती आम सहमति के बीच आया है कि इस क्षेत्र में अफस्पा (AFSPA) को निरस्त किया जाना चाहिए।
सोमवार को नागालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो ने कहा था कि उनकी सरकार ने केंद्र से नागालैंड से इस अधिनियम को हटाने के लिए कहा है। मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा और तिप्राहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन के प्रमुख प्रोद्युत देबबर्मा ने भी इस मांग का समर्थन किया है।
इतना ही नहीं कई नागरिक समाज समूहों, छात्र संगठनों, गैर सरकारी संगठनों, राजनीतिक दलों और आदिवासी समूहों ने भी इस अधिनियम के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है। पूर्वोत्तर भारत में अफस्पा को तत्काल निरस्त करने की मांग अब जोर पकड़ने लगी है।
जानकारी के मुाबिक 4 दिसंबर को मेन जिले में ओटिंग गांव के दिहाड़ी मजदूरों का एक समूह कोयला खदान से पिकअप वैन से घर लौट रहा था, तभी सुरक्षा बलों ने उन पर गोली चला दी।
स्थानीय सूत्रों ने कहा कि गांव के स्वयंसेवक उनकी तलाश में गए थे, क्योंकि वे कई घंटों तक नहीं लौटे थे और वैन में उनके शव पाए गए थे। इस घटना से गुस्से में स्थानीय लोगों ने कथित तौर पर सुरक्षा बलों के दो वाहनों में आग लगा दी।
इधर, घटना के बाद नागालैंड के राज्यपाल जगदीश मुखी ने एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा कि गोलीबारी की घटना की जांच के लिए एक विशेष जांच दल का गठन किया गया है। राज्यपाल ने कहा कि इसमें शामिल सैन्यकर्मियों के खिलाफ कोर्ट ऑफ इंक्वायरी भी गठित की गई है। बता दें कि फायरिंग में मरने वालों में नागा जनजाति के लोग थे।