दाना-पानी को मोहताज रोहिंग्या शरणार्थियों को किसकी लगी नज़र ?

दिल्ली में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों के शिविर में शनिवार रात को आग लगना कोई पहली घटना नहीं है। २०१२ से अबतक शिविर में आगज़नी की ये पांचवी घटना थी, जिसमें उनका सारा सामान जलकर ख़ाक हो गया.

नई दिल्ली- बर्मा से जान बचाकर भारत पहुँचे जाफ़र और जोहरा (बदला हुआ नाम) के लिए यह आम रात की तरह थी। उन्हें नहीं मालूम था कि उसके और अन्य लोगों के साथ आज रात क्या घटने वाला है, दक्षिण पूर्वी दिल्ली के कंचन कुंज में स्थित रोहिंग्या शिविर में अपने बर्मी शरणार्थी साथियों की तरह, जाफ़र और जोहरा 12 जून की रात 10 बजे रात का खाना खाने के बाद अपने अपने शिविर में सोने चले गए थे। जाफ़र अपनी मोबाइल को बंद कर जब वह गहरी नींद में सो रहा था, तो उसने लोगों की चीखें सुनीं। हालाँकि ज़ोहरा को अभी तक उसके कानों को चीखें झकझोर नहीं पाए थी।

जाफ़र जब अपनी झोंपड़ी से बाहर निकला और अस्थायी शिविरों को आग की बड़ी लपटों में झुलसते देखा – जहां लगभग 250 रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे थे, वो भी ज़ोर-ज़ोर से मदद और चेतावनी के लिए चीखने लगा। हालाँकि आग इतनी तेज़ थी कि वह केवल अपनी पत्नी और डेढ़ साल के बेटे को बचा सकता था। तभी जाफ़र की चीख सुनकर ज़ोहरा की आँखें अचानक खुल गई और वो भी बाहर की तरफ़ दौड़ पड़ी। समय रात के 11:55 बजे थे। उसने नज़र घुमाकर देखा तो पाया कि भीषण आग के लगने से शरणार्थी शिविर में मौजूद सभी 56 झोंपड़ियां मिनटों में जल कर राख हो गई थी। सभी ने अपना सब कुछ खो दिया था, जिसमें उसके अपनों के भी सामान थे। तेज हवाओं ने आग को बढ़ाने का काम किया।

इस रोहिंग्या शिविर के शरणार्थी दिहाड़ी मजदूर निर्माण श्रमिकों के रूप में काम करते हैं, छोटी दुकानें चलाते हैं और ई-रिक्शा चलाकर अपना गुजारा करते हैं। वे अपनी सारी बचत नकदी में रखते हैं। शनिवार की रात को लगी आग ने कपड़े, बर्तन, खाद्य सामग्री और फर्नीचर इत्यादि के साथ अन्य सामानों के अलावा उनकी सारी नक़दी को भी नष्ट कर दिया। आग में भष्म हुए खंडहर विनाश की गवाही दे रहे थे।

जाफ़र ने अपने बेटे को गोद में लिए रोते हुए कहा, “एक निर्माण स्थल पर मजदूर के रूप में काम करने और महीनों की मेहनत के बाद, मैंने 46,000 रुपये की बचत की थी। मैं जीवन को थोड़ा बेहतर बनाने के लिए ईएमआई पर ई-रिक्शा खरीदने की योजना बना रहा था। आग इतनी तेजी से फैली कि मुझे परिवार को बचाने के लिए दौड़ते समय नकदी उठाने का भी समय नहीं मिला। हम सभी को नए सिरे से जीवन की शुरुआत करनी होगी, ठीक वैसे ही जैसे हमने 2012 में पहली बार दिल्ली आने पर की थी।

एक लुंगी पहने और कमर से ऊपर नंगे अपने बच्चे के साथ, जिसके शरीर पर कोई कपड़े नहीं थे, ने कहा, “हमारे पास पहनने के लिए कपड़े भी नहीं हैं।”
इस ताजा आगज़नी के हादसे में ज़्यादातर परिवारों ने अपनी सारी बचत खो दी है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने अपनी छोटी दुकानों के स्वाह होने के बाद अपनी आजीविका का एकमात्र स्रोत ही खो दिया है, जहां वे खाद्य पदार्थ और अन्य सामाग्री बेचते थे, ज्यादातर शरणार्थियों की उम्मीदें राख में स्वाह हो गईं। जिसमें तीन बच्चों की मां एक महिला शरणार्थी भी थी।

उस महिला शरणार्थी ने बिलखते हुए बताया, “मेरे पति एक निर्माण मजदूर के रूप में काम करते हैं, लेकिन उन्हें हर दिन काम नहीं मिलता है। इसलिए परिवार की आय में योगदान करने के लिए मैं एक छोटी सी दुकान चला रही थी। चूंकि मैं सिलाई में कुशल हूं, इसलिए मैं अतिरिक्त पैसे कमाने के लिए कपड़े सिलाई का काम भी करती हूँ। लेकिन दुकान से लेकर सिलाई मशीन तक सब कुछ अब आग की चपेट में चला गया।

अपने जीवन को नए सिरे से शुरू करने के अलावा, रोहिंग्याओं को अब एक और बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है: उन्हे शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) से फिर से कार्ड हासिल करने होंगे – एकमात्र पहचान पत्र जो उन्हें राजधानी और देश में अपने कानूनी प्रवास को साबित करने के लिए जरूरी है।
हालांकि इस घटना में किसी के हताहत होने की खबर नहीं मिली है, लेकिन आग लगने के कारणों का अभी पता नहीं चल पाया है। आग पर काबू पाने में दो घंटे से अधिक समय लेने वाले दमकल कर्मियों ने बताया कि आग को “मध्यम श्रेणी” की आग माना जाएगा, और प्रथम दृष्टया यह “आकस्मिक” घटना लगती है।
शरणार्थियों को साज़िश का शक

मौके पर मौजूद वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने किसी भी किस्म की संदिग्ध गड़बड़ी के बारे में पूछे जाने पर सवाल को टाल दिया, और कहा कि फोरेंसिक टीम को अभी तक आग के स्पष्ट कारणों का पता नहीं चल पाया है। हालांकि, स्थानीय लोगों और शरणार्थियों ने आरोप लगाया कि यह एक आकस्मिक घटना नहीं थी, बल्कि एक गढ़ी हुई घटना थी।
यमुना प्राधिकरण और यूपी सिंचाई विभाग के कुछ अधिकारी जो विभाग इस जमीन के मालिक हैं, आग लगने से पहले शाम को शिविरों का दौरा करने आए थे, और वहां रहने वालों को जगह खाली करने के लिए कहा था। उन्होंने हमें साफ-साफ कह दिया था कि हमें यह जगह किसी भी कीमत पर छोड़नी होगी। उनके जाने के कुछ घंटे बाद जब सब सो गए थे, तब अचानक से भयानक आग लग गई,” बातचीत के दौरान सभी शरणार्थियों ने आरोप लगाया।

“हम ऐसे समुदाय हैं जिन्हें लगातार सताया जाता रहा है और अपनी मातृभूमि से भागने के लिए मजबूर किया गया था। हमने भारत में शरण ली जैसा कि हमने फिल्मों में सुना और देखा भी था कि भारतीय बहुत दयालु होते हैं। हम रहने की जगह के अलावा कुछ नहीं मांग रहे हैं। हम भी इंसान हैं और हमारे बच्चे भी हैं। मनुष्य और शरणार्थी के रूप में हमारे भी अधिकार हैं। हम आपकी जमीनों पर अतिक्रमण नहीं कर रहे हैं, न ही हम यहां अवैध रूप से रह रहे हैं। हमारे यहां रहने को यूएनएचआरसी ने मान्यता दी है, जिसने हमें इस बाबत एक शरणार्थी कार्ड भी जारी किया है। हमारे अस्थायी तंबू में आग लगाने से आपको क्या मिलेगा?” शरणार्थियों में से एक सवाल करते हुए कहा।
यह ध्यान देने की बात है कि पिछले नौ साल में शिविर में यह पांचवां हादसा है। अप्रैल 2018 में भी रोहिंग्या शरणार्थियों के दिल्ली के एकमात्र शिविर में भोर होने से पहले भीषण आग लगी था और सब नष्ट कर दिया था।

“इसे आकस्मिक आग कहा जाता है, और ऐसी दुर्घटनाएँ बार-बार होती रहती हैं। आम आदमी पार्टी (आप) के एक स्थानीय नेता ने आरोप लगाया कि इन लोगों को डराने के लिए इस घटना की योजना बनाई गई थी ताकि वे शहर छोड़ दें, निष्पक्ष जांच की जानी चाहिए और दोषियों को गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
ओखला के विधायक अमानतुल्ला खान से जब फोन पर संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि वे घटनास्थल नहीं जा सके क्योंकि वे फिलहाल शहर से बाहर हैं। उन्होंने कहा, “किसी भी निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी। पुलिस जांच करे और सच्चाई सामने लाए। अगर यह किसी की करतूत है, जिसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता तो उसे बख्शा नहीं जाना चाहिए। हमें उम्मीद है कि पुलिस निष्पक्ष और गैर-पक्षपाती जांच करेगी।” उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार पीड़ितों को 25,000 रुपये की अनुग्रह राशि देगी ताकि वे अपना जीवन फिर से शुरू कर सकें।

कंचन कुंज शिविर के अधिकांश रोहिंग्या जम्मू के शरणार्थी शिविरों में कम समय तक रहने के बाद दिल्ली पहुंचे थे, जहां उन्हें हिंदुत्व संगठनों ने बार-बार निशाना बनाया था। इस शिविर को अक्सर बांग्लादेशी शरणार्थियों की बस्ती के रूप में जाना जाता है, जिन्हें उनके प्रवास और इतिहास के बारे में बहुत कम जानकारी है।
शरणार्थी शिविर हाल ही में सुर्खियों में तब आया था जब दिल्ली पुलिस ने कई कथित अवैध शरणार्थियों को हिरासत में लिया था ताकि उन पर कानूनी कार्रवाई की जा सके।

म्यांमार में तत्कालीन बौद्ध सरकार और उसके सुरक्षा बलों द्वारा जातीय उत्पीड़न के बाद, रोहिंग्या समुदाय पिछले कई वर्षों से रखाइन राज्य से अपनी जान बचाने के लिए पलायन कर रहा है। चरमपंथी समूहों को लक्ष्य बनाने के नाम पर अक्टूबर 2016 में इस समुदाय के खिलाफ एक सैन्य आक्रमण शुरू किया गया था। म्यांमार ने रोहिंग्याओं को नागरिकता देने से इनकार कर दिया है।

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *