टाइगर रिजर्व में सांसत में मेहमान नहीं रास आ रहा नेपाली गैंडों को टाइगर रिजर्व

कभी ट्रेनो के रुप में आफत आती है तो कभी अन्य रुप मं
चन्द्रभूषण शांडिल्य
हमारे देश की पुरातन परंपरा रही है अतिथि देवो भव। और इस परंपरा को अधिसंख्य भरतीय लोग तो लोग वन्यजीव भी मानते हैं। इसी कड़ी में नेपाल के चितवन नेशनल पार्क से गंडक के रास्ते वाल्मीकिनगर स्थित वाल्मीकि टाइगर रिजर्व मंे पहुंचे गैंडो को यहां के वन्यजीवों ने स्वागत किया। जिस कारण हर साल उनके आने का सिलसिला चल निकला।

लेकिन टाइगर रिजर्व के अंदर सक्रिय शिकारी तस्कर व गुजरी रेललाइन इन गैंडो के लिए यम साबित हो रहा है। वाल्मीकि ब्याघ्र परियोजना में मेहमान जानवर (गैंडों) के साथ ही साथ अन्य जीवों का जीवन अब सुरक्षित नहीं रह गया है। आकडो पर नजर डाले तो एक दशक के अंदर आधा दर्जन गैंडो का जीवन रेल की चपेट में आने से समाप्त हो चुका है।

इतना हीं नहीं जंगल से भटक कर सरेह व नदी तट के किनारे रेता में पहुंचने वाले हिरणो, नीलगाय आदि को भी निशाना बनाया जा रहा है। विगत दिनो एक बाघ का सडा हुआ शव वनकर्मियो को मिला था। बाघ व हिरण सरीखे वन्यजीव टाइगर रिजर्व के जीव हैं इन्ही के साथ नेपाली गैंडे भी मर रहे हैं।

जो एक बड़ी घटना है। पिछले महिनों एक मादा गैंडा का शव मिला। यह संयोग ही कहा जाएगा कि वह मादा गैंडा गन्ना के खेत मंे जाकर मरी थी। जिससे कि खेत में काम करने पहुंचे किसानो व मजदूरो ने उस शव को देख लिया और इसकी सूचना तत्काल ही वनकर्मियों व अधिकारियो को मिल गयी थी।

नहीं तो 2011 वाला हश्र होता। जब लाश सडती और दुर्गंध चहुओर फैलती तो उसके मरने का पता चलता। 2011 मंे वीटीआर के कक्ष संख्या 37 में तस्करो ने एक गैंडो को गोली मारकर हत्या कर दी। वन अधिकारियो व कर्मियो को इसकी सूचना 20-25 दिन बाद जब शव सडने लगा तो पता चला।

वर्ष 2009 के अप्रैल माह में शाम सात बजे के करीब जननायक एक्सप्रेस की चपेट में आकर एक गैंडे की मौत हो गयी। इस घटना से पहले 2006 में वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से सटे नहर मेें दो गैंडे गिर गये थे। जिनमें से एक की मौत हो गयी थी। हालाकि इसके बाद वन विभाग व रेल विभाग मेंे खुब आना जाना हुआ।

वार्ताआंें का लंबा दौर चला। बावजूद इसके लिए मेहमान गैंडो के जीवन को बचाने के लिए कोई कारगर कदम नहीं उठाया जा सका। नतीजा यह हुआ कि 2013-14 में एक गैंडा मालगाडी की चपेट में करीब एक किमी तक इंजन के साथ घसिटता हुआ गया और उसकी मौत हो गयी। इधर बीते 19 मई को मादा गैंडा भटहवा टोला के समीप गन्ने के खेत मेें मृत पायी गयी।

हालाकि मौके पर पहुंचे वीटीआर के निदेशक हेमकांत राय ने कहा कि यह मौत स्वाभाविक है। लेकिन गैंडा के मरने के कुछ दिन पहले ही तार व जाली को वन विभाग की ओर से छापेमारी मंें बरामद किया गया था। जिससे स्थानीय ग्रामीणेां की ओर से अंदाजा लगाया जा रहा है कि कहींे शिकारी इस तार का प्रयोग टाइगर रिजर्व के वन्य जीवों को मारने में तो नहीं कर रहे हैं।

गौरतलब है कि वाल्मीकि टसइगर रिजर्व से सटे नेपाल के चीतवन नेशनल पार्क में करीब एक हजार गैंडे हैं। टाइगर रिजर्व में पहले से गैंडे नहीं पाये जाते थे। बरसात के दिनो में गंडक नदी के पानी के साथ सीएनपी से गैंडे बहकर वीटीआर में आ गये। बेहतर हैबिटेशन के कारण वे गैंडे यहीं रह गये।

टाइगर रिजर्व प्रशासन की ओर से इनके रखरखाव के लिए कई प्रोजेक्ट बनाये गये। लेकिन फिर एक के बाद एक हो रही उनकी मौत ने कई प्रश्न चिन्ह को खड़ा कर दिया है। ऐसा प्रतित हो रहा है कि नेपाल गैंडो को वाल्मीकि टाइगर रिजर्व की मेहमानवाजी पसंद नहीं आ रही है।

हालाकि इस बावत वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के निदेशक नेबताया कि रेल ट्रैक पर जानवरो के कट कर मरने की घटना से रोकने के लिए रेल ट्रैकरो को लगाया गया है। ट्रेनो की गति पर लगाम लगाने की कोशिश की जा रही है। जीपीएस से लैस वनकर्मी उनकी निगरानी करते हैं।

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