भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) कर्मचारी यूनियन ने केंद्रीय बैंक से बिमल जालान समिति की सिफारिशों के व्यापक और लंबी अवधि के निहितार्थो और उसके अपरिवर्तनीयता को देखते हुए उस पर सर्वसम्मति बनाने की अपील की है। आरबीआई के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता वाली समिति ने शुक्रवार को आर्थिक पूंजी फ्रेमवर्क पर अपनी रिपोर्ट केंद्रीय बैंक को सौंपी। रिपोर्ट में बताया गया है कि आरबीआई को कितनी आरक्षित निधि अपने पास रखनी चाहिए। साथ ही, लाभांश का भुगतान सरकार को करना चाहिए।
केंद्रीय बैंक कर्मचारी यूनियन ने एक बयान में कहा, “आरबीआई बैंकिंग सेक्टर के लिए आखिरी कर्जदाता है। वित्तीय या आर्थिक संकट या किसी वैश्विक उथल-पुथल के दौरान इसकी वित्तीय स्थिति का कमजोर होना महंगा साबित हो सकता है। सरकार के बजटीय घाटे में अंतर होने और सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग खराब होने से जोखिम बढ़ जाता है।”
यूनियन ने आरबीआई थिंक टैंक सेंटर फॉर एडवांस्ड फाइनेंशियल रिसर्च एंड लर्निग और कोलंबिया यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित और विकासशील देशों के 47 केंद्रीय बैंकों के तुलन पत्र के अध्ययन का भी जिक्र किया।
यूनियन ने कहा कि अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि अन्य केंद्रीय बैंकों की तुलना में आरबीआई की मुख्य पूंजी पर्याप्त नहीं है।
यूनियन ने इस पर आरबीआई के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन, वाई. वी. रेड्डी, डी. सुब्बा राव और रघुराम राजन जैसे विशेषज्ञों की राय जानने और मसले पर सर्वसम्मति बनाने की मांग की है।