जर्मनी चुनाव: एंजेला मर्केल के बाद कौन?

कनाडा के बाद अब जर्मनी के मतदाताओं ने भी देश के राजनीतिक परिदृश्य को हिला डाला है। या यूँ कहें कि सीडीयू/सीएसयू और एसपीडी के प्रभुत्व को इतिहास की ओर खिसका दिया गया है।

इस चुनाव में तक़रीबन 6 करोड़ से ज्यादा वोटर्स ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया, जहां क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक पार्टी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच कांटे की टक्कर है। डॉयचे वेले की प्रधान संपादक मानुएला कास्पर-क्लैरिज लिखती हैं कि यह एक जरूरी बदलाव है और बदलाव हो चुका है।

रविवार को मतदान के बाद जर्मनी का जनादेश स्पष्ट है। जनता ने अपने स्पष्ट लहजों में संकेत दे दिया है कि पिछले विशाल गठजोड़ के छोटे छोटे समझौतों का समय अब खत्म हो चुका है।

अब जलवायु परिवर्तन जैसी बड़ी चुनौतियों का सामना करने का वक्त है। डिजिटलीकरण और जर्मनी का आधुनिकीकरण, जो वक़्त की मांग है। ये पहाड़ से काम अब छोटे दलों के सहयोग से ही पूरे किए जा सकते हैं।

अब जितने भी गठबंधनों की संभावनाएं नजर आ रही हैं, उनमें ग्रीन्स और फ्री डेमोक्रैट्स की भूमिका अहम होगी। उनके बिना कुछ नहीं हो पाएगा, और यह एक अच्छी बात भी है।

जनता क्या चाहती है? ग्रीन्स पार्टी को मिले मतों की बड़ी संख्या दिखाती है कि जर्मन मतदाता जलवायु परिवर्तन के लिए चिंतित हैं। इन मतों के भरोसे ग्रीन्स गठबंधन के लिए किसी भी बातचीत में खूब आत्मविश्वास के साथ जाएंगे।

उनके साथ बहुत से लोग हैं तो जाहिर है वे अपनी मांगों के लिए ज्यादा जोर भी लगा पाएंगे। लेकिन जर्मनी बदलाव के लिए शायद उतना तैयार नहीं है, जितना ग्रीन्स और उनकी चांसलर पद की उम्मीदवार अनालेना बेयरबॉक ने उम्मीद की थी।

खासकर वहां, जहां बदलाव के लिए धन देना होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि नवउदारवादी एफडीपी के बिना सरकार बनाना लगभग असंभव है। फ्री डेमोक्रैट्स असल में ग्रीन्स की कुछ इच्छाओं पर पानी फेर सकते हैं।

उनका भरोसा बाजार, डिजिटलीकरण और लाल फीताशाही कम करने में है। वे जलवायु परिवर्तन तो चाहते हैं लेकिन टैक्स बढ़ाए बिना।

अब ये होगा कैसे, यह उन्हें गठबंधन के लिए होने वाली बातचीत के दौरान स्पष्ट करना होगा। जमैका गठबंधन एक चीज जो एकदम स्पष्ट है, वो है रूढ़िवादियों की हार। सीडीयू/सीएसयू को हालांकि मतों का उतना नुकसान नहीं हुआ है जितना कुछ सर्वेक्षणों में दिखाया गया था, फिर भी पिछले चुनाव की तुलना में जो बड़ी गिरावट आई है, उसे आप किसी और तरह से नहीं कह सकते।

उनके चांसलर पद के उम्मीदवार आर्मिन लाशेट ने जर्मनी के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन-वेस्टफालिया में प्रीमियर रहते हुए कुछ उपलब्धियां हासिल की थीं, फिर भी वह बतौर चांसलर उम्मीदवार मतदाताओं का भरोसा नहीं जीत पाए। सीडीयू की सहयोगी बावेरिया की पार्टी सीएसयू का समर्थन भी घटा है।

1949 के बाद उनका यह सबसे खराब चुनाव नजर आ रहा है। 16 साल सरकार में रहने के बाद सीडीयू और सीएसयू की यह कथित यूनियन अब विपक्ष के लिए तैयार है।

बेशक, सीडीयू/सीएसयू नई सरकार बनाने की भरसक कोशिशें करेंगे। इसके लिए कथित जमैकन गठबंधन किया जा सकता है और जमैकन गठबंधन जमैका के झंडे के रंग से आया है, यानी काले, हरे और पीले का गठबंधन।

मतलब सीडीयू/सीएसयू का ग्रीन्स और एफडीपी से गठजोड़ और यह संभव है। भले ही कंजरवेटिव्स दूसरी सबसे बड़ी पार्टी हैं, फिर भी ऐसा हो सकता है. पिछले कुछ दशकों में तीन बार ऐसा हो चुका है कि चांसलर का पद जर्मन संसद की सबसे बड़ी पार्टी के नेता को नहीं मिला।

क्योंकि सरकार उसकी बनती है, जिसके पास गठबंधन में बहुमत हो। मैर्केल 2.0 मध्य-वामपंथी दल एसपीडी के नेता ओलाफ शॉल्त्स के सामने यही चुनौती है। उनकी पार्टी तो सबसे बड़ी बन गई है।हालांकि चुनाव में टक्कर कांटे की थी लेकिन उन्होंने बाजी तो मार ली।

चुनाव प्रचार की शुरुआत में सर्वेक्षणों में एसपीडी को मात्र 12 प्रतिशत ही मत मिल रहे थे लेकिन शॉल्त्स ने पासा पलट दिया। परन्तु, वह निजी तौर पर क्या सोचते हैं और किसे वह सबसे अहम मानते हैं, यह अब भी स्पष्ट नहीं है। वह मैर्केल 2.0 जैसे लगते हैं। यानी उनके बारे में आप अनुमान लगा सकते हैं, तथ्यों पर टिकते हैं और भवनाओं में ज्यादा नहीं बहते। ऐसा लगता है कि मतदाताओं को भी यह पसंद है।

अब शॉल्त्स को दिखाना होगा कि वह क्या कर सकते हैं। अगर वह जर्मनी के अगले चांसलर बनना चाहते हैं तो उन्हें जल्दी ही ग्रीन्स और एफडीपी के साथ गठबंधन की बातचीत शुरू करनी होगी। एक लाल, पीला और हरा – ट्रैफिक लाइट – गठबंधन उनका लक्ष्य है।

लेकिन यह आसान नहीं होगा. उन्हें छोटे दलों को कई छूट देनी होंगी। हालांकि उनकी नाक के ठीक नीचे सीडीयू भी यही कर रही होगी। नतीजा क्या होगा, अभी कोई नहीं जानता. लेकिन जनता ने अपनी बात कह दी है।

वे नहीं चाहते कि अंगेला मैर्केल की राजनीति जारी रहे। पिछले दशकों के मुकाबले सीडीयू और एसपीडी जैसी बड़ी पार्टियों की ताकत में बड़ी कमी आई है। जर्मन राजनीति और रंग-बिरंगी होने वाली है। यह भविष्य के बड़े मुद्दों पर बात करने का मौका है. यह जलवायु के भले के लिए आधुनिक राजनीति करने का मौका है।

आइए जानते हैं, चैंसलर की दौड़ में शामिल उन उम्मीदवारों के बारे में

आर्मिन लॉशेट, मध्यपंथी-दक्षिणपंथी सीडीयू/ सीएसयू

60 वर्षीय लॉशेट एंगेला मर्केल की पार्टी क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (सीडीयू) के नेता हैं और जर्मनी की सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत नॉर्थ राइन वेस्टफालिया (एनआरडब्ल्यू) के प्रीमियर हैं।

पार्टी की तरफ़ से चांसलर का उम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने बावेरिया से आने वाले नेता मार्कस सोडर को बेहद कम अंतर से पछाड़ा है और उम्मीदवारी हासिल की है. इस दौड़ में पार्टी ने लॉशेट का समर्थन किया।

आर्मिन लॉशेट ने मर्केल-शैली के मध्यमार्गी होने का कोई भी दिखावा अचानक छोड़ दिया है और वे एक परंपरावादी दक्षिणपंथी सेनानी के रूप में सामने आए हैं।

उनके रूढ़िवादी सहयोगी इससे भले ही रोमांचित हैं, लेकिन यह इस बात का संकेत है कि उनका अभियान कितना ख़राब प्रदर्शन कर रहा है।

हाल के दिनों तक सीडीयू/सीएसयू को उम्मीद थी कि वह मध्य जर्मनी में मैदान मार लेगी और 30 प्रतिशत तक मत आसानी से हासिल करेगी. लेकिन अब ऐसा असंभव लग रहा है। ऐेस में लॉशेट ने अचानक दक्षिणपंथी रवैया अपना लिया है और वो रूढ़िवादी वोटरों को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं।

एनालेना बेयरबॉक, ग्रींस

एनालेना बेयरबॉक एंगेला मर्केल के उत्तराधिकारी की दौड़ में अकेली महिला उम्मीदवार हैं और वो अब तक ग्रीन पार्टी की पहली चांसलर उम्मीदवार भी हैं।

बेयरबॉकउत्तरी शहर हेनोवर के पास एक गांव की रहने वाली हैं और पूर्व ट्रेमपोलीन चैंपियन हैं. 40 वर्षीय बेयरलोक ने हैमबर्ग और लंदन में क़ानून और राजनीति की पढ़ाई की है और यूरोपीय संसद में ग्रींस पार्टी के लिए काम किया है।

बेयरबॉक साल 2013 से जर्मनी की संसद की सदस्य हैं। वो दो जवान बेटियों की मां हैं और उन्होंने परिवार से जुड़े मुद्दों और पर्यावरण पर ज़ोर दिया है। सीडीयू/सीएसयू और सोशल डेमोक्रेट्स के मुक़ाबले वो रस और चीन के प्रति अधिक सख़्त नजरिया रखती हैं।

ओलाफ़ स्कोल्ज़- मध्यमार्गी वामपंथी, सोशल डोमेक्रेट (एसपीडी)

आर्मिन लॉशेट की तरह ही 62 वर्षयी ओलाफ़ स्कोल्ज़ भी जर्मनी की राजनिति में कामयाबी से पदों पर रहे हैं। वो इस समय जर्मनी के वित्त मंत्री हैं और चांसलर एंगेला मर्केल के डिप्टी हैं। चुनाव अभियान के दौरान उनके चांसलर बनने की संभावनाओं को मज़बूती मिली है।

माना जा रहा है कि उनके हाथों में देश सुरक्षित रहेगा। स्कोल्ज़ 1998 से 2011 तक सांसद रहे हैं. ताज़ा पोल में आधे से अधिक मतदाताओं ने उन्हें चांसलर के लिए अपनी पहली पसंद बताया है।

उत्तर-पश्चिमी जर्मनी के ओस्नाब्रक इलाक़े से आने वाले स्कोल्ज़ युवावस्था में ही राजनीति में शामिल हो गए थे और समाजवादी आंदोलन का हिस्सा बन गए थे. उन्होंने क़ानून की पढ़ाई की है।

एसपीडी के भीतर उन्हें एक रूढ़िवादी नेता माना जाता है. उनके और उनकी पत्नी ब्रिटा अर्नस्ट का कोई बच्चा नहीं है। महामारी के दौरान उन्हीं के नेतृत्व में सरकार ने कारोबारियों और श्रमिकों के लिए 904 अरब डॉलर का राहत पैकेज लागू किया था। जर्मनी के लोग मर्केल के कार्यकाल की स्थिरता चाहते हैं, ऐसे में स्कोल्ज़ मतदाताओं की पहली पसंद बने हुए हैं।

द फ्री डेमोक्रेट्स – मुक्त बाज़ार समर्थक उदारवादी

चाहे एसपीडी आगे रहे या सीडीयू उसे बाज़ार समर्थक एफ़डीपी का समर्थन चाहिए ही होगा। 2017 में एफ़डीपी सीडीयू/सीएसयू और ग्रींस के साथ गठबंधन की वार्ता से ये कहते हुए बाहर हो गई थी कि ख़राब सरकार चलाने से बेहतर है सरकार से बहार रहना।

42 वर्षीय क्रिस्चियन लिंडनर पार्टी की तरफ़ से चांसलर के उम्मीदवार हैं। ताज़ा पोल के मुताबिक पार्टी को 11 फ़ीसदी वोट मिल सकते हैं।लिंडनर साल 1995 में पार्टी में शामिल हुए थे और 2009 में सांसद चुने गए थे।

उन्होंने बोन यूनिवर्सिटी से राजनीति शास्त्र की डिग्री ली है और सेना में वो एक रिजर्व अधिकारी भी हैं। उन्होंने जर्मनी को अधिक मॉडर्न , अधिक डिजीटल और अधिक स्वतंत्र करने का नारा दिया है। एफ़डीपी टैक्स की दरों को कम करना चाहती हैं और व्यक्तिगत प्रयासों पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहती है।

एफ़डीपी को लगता है कि उसका वक़्त आ गया है। लिंडनर अति-आत्मविश्वासी हैं और चार साल पहले जब वो गठबंधन से बाहर हो गए थे तब उनपर ज़िम्मेदारी से हटने का आरोप लगाया गया था। तब से उन्होंने एफ़डीपी की छवि सुधारी है और एक ऐसी पार्टी के तौर पर पेश किया है जो जर्मनी के अफ़सरों को लगाम में रखना चाहती है।

जैसे, पार्टी मध्य-वामपंथी या मध्य-दक्षिणपंथियों के साथ काम करने की क्षमता रखती है। यदि लिंडनर इस बार अपने आप पर काबू रखते हैं तो पार्टी गठबंधन में किंगमेकर के तौर पर उभर सकती है।

कट्टरपंथी पार्टी ऑल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफ़डी)

प्रवासी विरोधी पार्टी एएफ़डी साल 2017 में पहली बार संसद में दाख़िल होने में कामयाब रही थी। प्रवास संकट से उपजे ग़ुस्से का फ़ायदा उठाते हुए पार्टी प्रमुख विपक्षी दल बन गई है और अब उसके पास 91 सीटें हैं।

लेकिन तब से पार्टी का समर्थन गिर रहा है और उसे अब लगभग दस फ़ीसदी लोगों का समर्थन प्राप्त है।उसके दो प्रमुख उम्मीदवार हैं एलिस वीडेल और टीनो क्रुपाला।

एएफ़डी यूरोपीय संघ की विरोधी है और इस्लाम को जर्मनी की संस्कृति और परंपराओं के लिए ख़तरा मानती हैं. कोविड महामारी से पहले ही पार्टी का समर्थन गिरने लगा था क्योंकि प्रवासियों को लेकर मतदाताओं की चिंताएं कम हो रही थीं।

ये माना जा रहा है कि एएफ़डी सरकार का हिस्सा नहीं होगी. अधिकतर जर्मन पार्टी की विचारधारा को ज़हरीला मानते हैं। पार्टी का नारा है- जर्मनी लेकिन सामान्य- इसका यही मतलब निकाला जा रहा है कि जर्मनी में अल्पसंख्यकों के लिए जगह नहीं है। सभी अन्य पार्टियों ने एएफ़डी के साथ गठबंधन की संभावनाओं को नकार दिया है।

वामपंथी- द लेफ्ट (लेफ्ट डाई लिंके)

माना जा रहा है कि डाई लिंके भी गठबंधन का हिस्सा हो सकती है। जर्मनी की पुरानी पार्टी ईस्ट जर्मन सोशलिस्ट पार्टी की अवशेषों से इस पार्टी का गठन हुआ था. 90 के दशक में जो वामपंथी एसपीडी से अलग हुए उन्हें भी पार्टी में जगह मिली।

पार्टी को 6 फ़ीसदी वोट मिल सकते हैं जो संसद में दाख़िल होने की 5 प्रतिशत की शर्त से एक ही अंक ऊपर है. पार्टी के प्रमुख उम्मीदवार हैं जेनीन विस्लर और डाइटमार बार्त्शच।डाई लिंके की चांसलर बना लेने की कोई संभावना नहीं है।

लेकिन ओपिनियन पोल से संकेत मिलते हैं कि यदि एसपीडी के नेतृत्व में वामपंथी सरकार बनी तो डाई लिंके शामिल हो सकती है। जर्मनी में वामपंथी विचारधारा के लोग इस पार्टी को पसंद करते हैं. हालांकि पार्टी नेटो के ख़िलाफ़ है और इससे वो लड़खड़ा सकती है।

हालांकि, ताज़ा स्थिति के मुताबिक़ अभी एक चीज तो स्‍पष्‍ट है कि एंजेला मर्केल अभी गठबंधन बनने तक अपने पद पर रह सकती हैं और ऐसा क्रिसमस तक चल सकता है। एंजेला मर्केल के उत्‍तराधिकारी के पास अगले चार साल तक अब यूरोप की इससे सबसे मजबूत अर्थव्‍यवस्‍था को गति देने का जिम्‍मा होगा। यही नहीं जलवायु परिर्वतन मतदाताओं के एजेंडे में सबसे ऊपर है।

– डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी

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