
”दिल्ली का प्रदूषण 25 प्रतिशत कम हो गया है. दिल्ली ही एकमात्र ऐसा शहर है जहां पर प्रदूषण बढ़ने की बजाए गिर रहा है.”
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपने एक ट्वीट में ये दावा किया था.
उन्होंने ये भी कहा था कि राजधानी में जहरीली हवा को कम करने के लिए आगे और काम करना होगा.
दिल्ली में कुछ वर्षों से प्रदूषण एक गंभीर समस्या बना हुआ है. यहां सर्दी के मौसम में हालात और ख़राब हो जाते हैं.
नवंबर 2018 में, वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की बताई गई सुरक्षित सीमा से 20 गुना ज़्यादा हो गया था.
प्रदूषण बढ़ने के पीछे लगातार बढ़ता ट्रैफ़िक, निर्माण कार्य, औद्योगिक गतिविधियां, कचरा और पराली जलाना और त्योहारों में पटाखे फोड़ना जैसे कारण जिम्मेदार हैं. वहीं, मौसम बदलने के कारण वातावरण में लंबे समय तक इकट्ठा होने वाली प्रदूषित हवा भी एक वजह बनती है.
क्या सुधार हुआ?
अरविंद केजरीवाल ने प्रदूषण कम होने की बात तो कही लेकिन ये नहीं बताया कि वो किस तरह के प्रदूषण के 25 प्रतिशत कम होने की बात कर रहे हैं.
लेकिन, दिल्ली आधारित एक शोध समूह सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरंमेंट (सीएसई) ने सरकारी आंकड़ों का अध्ययन किया और नतीजे थोड़े अलग पाए.
इसके मुताबिक सबसे खराब प्रदूषकों में से एक छोटे PM2.5 कणों का औसत स्तर 2012-14 की अवधि के मुकाबले 2016-18 से तीन वर्षों के दौरान 25% कम था.
इस अवधि के दौरान सीएसई ने ये बातें भी पाईं-
पीएम2.5 का रोजाना का स्तर घटा है.
सबसे ज़्यादा प्रदूषित दिनों की संख्या कम हुई है.
कम पीम2.5 प्रदूषण स्तर वाले दिनों की संख्या बड़ी है.
प्रदूषण से निपटने के लिए हाल के सालों में दिल्ली नगर निगम ने कई तरीके अपनाए हैं.
इसमें गाड़ियों में साफ़ ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना, ऑड-ईवन लागू करना, प्रदूषित औद्योगिक ईंधन के इस्तेमाल को रोकना, शहर में ज़्यादा प्रदूषण फैलाने वाले वाहनों को आने से रोकना आदि तरीके शामिल हैं.
साथ ही केंद्र सरकार ने भी इस संबंध में कई कदम उठाए हैं. जैसे कि माल की आवाजाही के लिए दिल्ली की सीमा के बाहर सड़कें तैयार करना और नए ईंधन उत्सर्जन मानक बनाना.
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हालांकि, सीएसई का ये भी कहना है कि साफ हवा के राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दिल्ली को अपने मौजूदा पीएम2.5 स्तर को 65 प्रतिशत तक घटाना होगा.
2018 के आधारिक प्रदूषण आंकड़ों का विश्लेषण दिखाता है कि पिछले साल दिल्ली में पीएम 2.5 का औसत संक्रेंदण 115 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है, ”बहुत कम संकेंद्रण के बावजूद भी प्रदूषण के छोटे कणों का सेहत पर बुरा असर पड़ता है.”
प्रदूषण के दूसरे कण
हालांकि, पीएम2.5 सेहत के लिए काफ़ी ख़तरनाक होता है लेकिन हवा में मौजूद दूसरे कण भी समस्याएं पैदा करते हैं.
पीएम10 मोटे कण होते हैं लेकिन फिर भी ये नाक या गले से फेफड़ों में जा सकते हैं जिससे अस्थमा जैसी बीमारियां हो सकती हैं.
सर्रे यूनिवर्सिटी के ग्लोबल सेंटर फॉर क्लीन एयर रिसर्च के प्रशांत कुमार के एक अध्ययन के मुताबिक दिल्ली में पीएम10 का स्तर स्थिर होने या गिरने के कुछ प्रमाण मिले हैं. उन्होंने ये अध्ययन चार जगहों के आंकड़ों के आधार पर किया है.
लेकिन, वो कहते हैं कि पीएम2.5 का मौजूदा स्तर राष्ट्रीय मानकों और विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देशों से अब भी ज़्यादा है.
वह बताते हैं कि साफ और प्रदूषण कम फैलाने वाले ईंधन पर ज़ोर देना सिर्फ एक आंशिक समाधान है क्योंकि पीएम 10 पार्टिकुलेट ब्रेक और टायर के धूल से भी पैदा होते हैं.
प्रशांत कुमार कहते हैं, ” अल्ट्राफाइन पार्टिकल्स की तरफ भी ध्यान ही नहीं दिया जाता है जो आकार में 100 नोनोमीटर से भी कम होते हैं.”
साथ ही ऐसे कई अन्य हानिकारक तत्व हैं जो गाड़ियों और उद्योंगो से आते हैं जैसे कि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) और ओजोन जैसी गैसें.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरंमेंट की अनुमिता रॉय चौधरी का कहना है, ”हमने दिल्ली में ओज़ोन और नाइट्रोजन गैसों के बढ़ते स्तर को देखा है. गर्मियों में ओज़ोन एक उभरती हुई समस्या है.”
दिल्ली दूसरे शहरों से बेहतर?
ये कह पाना मुश्किल है क्योंकि दूसरे शहरों के मुकाबले दिल्ली में हवा की गुणवत्ता की जांच बहुत अच्छी तरह से होती जाती है.
दिल्ली में 38 अलग-अलग जांच केंद्र हैं जबकि कुछ छोटी जगहों पर पुराने केंद्र ही बने हुए हैं.
साल 2016 और 2018 की तुलना करते हुए केंद्र सरकार के आधिकारिक आंकड़ों और डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों का अध्ययन करने वाली इस साल आई एक रिपोर्ट के मुताबिक सिर्फ दिल्ली में ही नहीं बल्कि दूसरे शहरों में भी पीएम2.5 कणों में कमी आई थी.
यह भी बताया गया है कि दिल्ली के बाहर कुछ औद्योगिक इलाक़ों में पीएम2.5 और पीएम10 दोनों का संकेंद्रण बहुत ज़्यादा है.
दिल्ली और केंद्र सरकार दोनों में स्थानीय प्राधिकरणों ने प्रदूषित हवा से निपटने के लिए और कदम उठाने की बात कही है, जिसमें पीएम2.5 को 20 प्रतिशत और पीएम10 को 30 प्रतिशत तक करने का लक्ष्य शामिल है.