कश्मीर मसला : ट्रंप के बयान से अनावश्क पैदा हुई घबराहट


गृहमंत्री अमित शाह कश्मीर समस्या का समाधान करने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। ऐसे अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के हालिया बयान से अनावश्यक घबराहट पैदा कर दिया।

वेस्टफेलियन संप्रभुता प्रणाली व कानून के तहत कश्मीर भारत का आंतरिक मसला है, लेकिन कथित तौर पर विलय के विवादित स्वरूप और माउंटबेटन और नेहरू द्वारा मसले को संयुक्त राष्ट्र में ले जाने से यह द्विपक्षीय मसले में बदल गया।

प्रदेश को आजाद करना और कुछ स्वायत्तता प्रदान करना दो भौगोलिक खंड लद्दाख और जम्मू संभाग की भी क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पूरा करने का एक विकल्प रहा है।

स्वायत्तता की चाहत न सिर्फ घाटी के लोगों की है बल्कि जम्मू और लद्दाख की ओर से भी भारत के संविधान के उसी दायरे के तहत क्षेत्रीय स्वायत्तता की मांग की जा रही है। लेकिन सुन्नी बहुल घाटी ने पूरे प्रदेश को बंधक बना लिया है यही कारण है कि अन्य संभागों को मुक्त कराने की आवश्कता है।

भारत के संविधान के दायरे में तथाकथित इस स्वायत्तता और संविधान के अनुच्छेद 370 के द्वारा प्रदत्त विशेष दर्जा का क्या अभिप्राय है?

भारत के प्रधानमंत्रियों ने संविधान के दायरे के तहत ही एक संकल्पना व्यक्त की है। वर्तमान प्रधानमंत्री द्वारा प्राप्त परिस्थिति का क्या लाभ है?

विश्लेषकों की राय में दिल्ली समझौता भारत और कश्मीर के बीच अनुबंधात्मक संबंध में एक निर्णायक क्षण था। अब्दुल्ला के दिमाग में संदेह का बीजारोपण हुआ और सही मायने में इससे भारत के साथ एकीकरण का मार्ग सुगम हुआ और स्वायत्तता प्रदान नहीं किया गया जैसा कि अनुच्छेद 370 में उल्लेख किया गया है।

जब कोई अब तक प्रकाशित दस्तावेज के उपयोग करते हुए 70 साल पुराने कश्मीर के सवाल पर विचार करता है तो यह सफर ज्यादा दिलचस्प बन जाता है और जल्द ही समझ में आ जाता है कि इस समस्या को किसी एक रंगे चश्मे से देखने की आवश्यकता नहीं है।

अमित शाह को मालूम है कि उनको स्थानीय आतंकवाद का खात्मा करना है और सीमापार से घुसपैठ को बंद करना है। इसके अलावा, भारतीय संघ के साथ बड़े पैमाने पर आवागमन व समन्वय बनाने के साथ-साथ चुनाव करवाकर प्रदेश में लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल करना है।

अगर, समस्याओं के समाधान के तरकस में परिसीमन आयोग की स्थापना, विवादास्पद अनुच्छेद 35 एक को समाप्त करना और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर विचार करने की आवश्यकता है तो यह हो सकता है।

पिछले कई दशकों से देश में बनने वाले एक के बाद एक प्रधानमंत्री ने कश्मीर मसले को लेकर कई दिखावटी बातचीत की। उनमें से वे भी शामिल हैं जिन्हें सही मायने में प्रदेश की चिंता थी। जवाहरलाल नेहरू की राय में जम्मू-कश्मीर उनके लिए भारतीय धर्मनिरपेक्षवाद का ‘शॉप विंडो’ है।

कई अन्य ने वादे किए लेकिन किसी ने इस दिशा में कुछ काम नहीं किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि वह संविधान के दायरे में स्थायी समाधान चाहते हैं।

अगर प्रधानमंत्री मोदी अतीत से निकलकर सार्थक हल चाहते हैं तो उनको परिवर्तनकारी बदलाव के मार्ग का अनुसरण करना होगा जिसमें आवागमन और समन्वय का वादा किया गया है। इसके लिए अनुच्छेद 35 ए के तहत स्थायी आवास के प्रावधान को समाप्त करने की आवश्कता है।

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