आम बजट में दिल्ली, अर्थव्यवस्था व शिक्षा के लिए कुछ भी नहीं : सिसोदिया


दिल्ली के वित्त मंत्री मनीष सिसोदिया ने शनिवार को आम बजट-2020 की आलोचना करते हुए कहा कि इस बजट में शिक्षा या अर्थव्यवस्था के लिए कुछ भी नहीं है। मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा कि आम बजट को लेकर काफी उम्मीदें थीं, विशेषकर दिल्ली के लोगों को काफी उम्मीदें थी और खासकर जब राज्य विधानसभा के चुनाव केवल एक सप्ताह दूर हैं, ऐसे में लोग बेहतर की उम्मीद कर रहे थे।

केंद्रीय करों में दिल्ली की हिस्सेदारी नहीं बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री ने केंद्र की आलोचना की।

उन्होंने कहा, “दिल्ली को लेकर बजट पर हमारी भी नजर थी, लेकिन यहां के लोगों के साथ बजट छलावा है। उन्होंने कहा कि साल 2001 से दिल्ली के सेंट्रल शेयर कम किए जा रहे हैं। सेंट्रल टैक्स के मुताबिक, 42 फीसदी राज्यों को दिए जाते हैं। इस हिसाब से दिल्ली को सात हजार करोड़ मिलना चाहिए था।”

दिल्ली के उप मुख्यमंत्री ने कहा कि आज दिल्ली के लोग 1.5 लाख करोड़ रुपया टैक्स देते हैं। इस हिसाब से हमें ज्यादा मिलना चाहिए था, लेकिन दिल्ली को इस बार भी 325 करोड़ रुपए ही मिले हैं।

सिसोदिया ने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा, “दिल्ली के लोगों से आपकी क्या दुश्मनी है। एमसीडी के साथ भी धोखा हुआ है। एक पैसा नगर निगम को नहीं दिया गया। सारे देश में नगर निगम को दिया गया है, लेकिन दिल्ली के एमसीडी को नहीं दिया गया।”

सिसोदिया ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि भाजपा तो एमसीडी चुनाव में किए गए वादों को भूल जाती है और पता नहीं वह नए वादे कैसे ले आते हैं। उन्होंने इस बजट को फेल करार दिया।

उन्होंने कहा कि इस बजट ने दिल्ली के लोगों को बड़े पैमाने पर धोखा दिया है और विशेष रूप से महत्वपूर्ण शिक्षा के क्षेत्र में निराशा मिली है।

सिसोदिया ने आयकर प्रस्तावों को एक ‘जटिल घोषणा’ कहा।

उन्होंने कहा कि बहुत उम्मीद थी कि वेतनभोगी वर्ग को आयकर पर कुछ छूट मिल जाएगी। मगर भाजपा सरकार ने अपनी जटिल घोषणा से वेतनभोगी वर्ग को भी धोखा दिया है।

उन्होंने कहा, “अगर किसी को बचत पर कोई छूट नहीं मिलेगी, तो नए विकल्प का क्या उपयोग रहेगा?”

उन्होंने कहा, “मुझे उम्मीद थी कि भाजपा सरकार शिक्षा का बजट बढ़ाएगी, क्योंकि उनकी ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुसार जीडीपी का छह फीसदी शिक्षा पर खर्च किया जाना चाहिए।”

उन्होंने बताया कि पिछले साल शिक्षा बजट जीडीपी का 3.6 फीसदी था और इस वर्ष उन्होंने इसे घटाकर 3.2 फीसदी कर दिया है।

उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में एफडीआई के लिए भी सरकार की आलोचना की।

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