अयोध्या मामला : विवाद पर फैसला सुनाने के लिए न्यायाधीश विभिन्न भूमिकाओं में


करीब दो महीने से प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ हाल के इतिहास में राजनीतिक रूप से विवादित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की गहन सुनवाई कर रही है।

न्यायाधीशों और वकीलों के बीच तीखी बहस सुप्रीम कोर्ट में सभी गतिविधियों का मुख्य केंद्र बन गई है। बड़ी संख्या में वकील (जो मामले में शामिल नहीं हैं) भी अदालत के आगंतुक क्षेत्र (विजिटर्स एरिया) में धार्मिक विश्वास और कानून के साथ इसके जुड़ाव से संबंधित बहस को सुनने के लिए जमा हो जाते हैं।

पांचों न्यायाधीशों ने 70 वर्ष पुराने अयोध्या विवाद मामले में फैसला सुनाने के लिए अपनी विभिन्न भूमिकाओं के लिए अभिनव कार्यप्रणाली को शामिल किया है, जो उनके अलग-अलग कौशल को दर्शाता है।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगाई ने दोनों पक्षों के बहस को काफी धर्य के साथ सुना है और वकीलों को उनका पक्ष रखने के लिए खुली छूट दी है।

गोगोई अदालत के सुचारू संचालन में ईमानदार रहे हैं। हालांकि वह जांच प्रश्न पूछने से दूर रहे हैं, लेकिन उन्होंने पीठ के अन्य न्यायाधीशों को मामले के कई गंभीर पहलुओं पर व्यस्त रखा है। उन्होंने 18 अक्टूबर तक बहस पूरी करने की रूपरेखा भी तैयार की है, ताकि पीठ 17 नवंबर को उनके सेवानिवृत्ति से पहले ही मामले में फैसला सुना दे।

गोगोई ने सभी पक्षकारों के लिए समय सीमा तैयार किया है, जिसके अंतर्गत रामलला विराजमान, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड को उनके दिए समय में ही बहस को पूरा करना है। मंगलवार को, अदालत में जब तीखी बहस होने लगी तो, उन्होंने हस्तक्षेप करते हुए मुस्लिम पक्षों से कहा कि हिंदू पक्षों को भी उनका पक्ष रखने के लिए बराबरी का मौका दिया जाएगा।

मुस्लिम पक्ष बार-बार अपने पक्ष को दोहरा रहे थे, जिसपर उन्होंने बहस में हस्तक्षेप करते हुए कहा, “हमें बार-बार एक ही चीज बताया जा रहा है। आप क्या सोचते हैं कि इस तरफ (पांच न्यायाधीशों की पीठ) कोई अपना दिमाग नहीं लगाता। हमने इस बारे में कई बार चर्चा की है। अब उन्हें (हिंदूओं के वकील को) बहस करने दीजिए।”

गोगाई ने यह स्पष्ट किया है कि सभी पक्षों को 2.77 एकड़ विवादित भूमि के स्वामित्व के क्रॉस-अपील के लिए उनके सहमति के साथ टिके रहना होगा।

वरिष्ठता में दूसरे स्थान पर न्यायमूर्ति एस.ए. बोबडे ने मामले में संलिप्त पक्षों से विश्वास और मान्यताओं पर प्रश्न पूछे हैं। उन्होंने मुस्लिम पक्षों से उनके पवित्र स्थान का सार पूछा है और हाल ही में हिंदू पक्षों से भगवान के जन्मस्थल से जुड़ी दिव्यता की प्रसांगिकता के बारे में पूछा है।

बोबडे ने एक मुस्लिम वकील से पूछा कि क्या वे राम चबूतरा को भगवान राम की जन्मस्थली मानते हैं और बाद में अदालत में इस बयान से मुकरने के बाद फिर उससे पूछताछ की। बोबडे ने एएसआई रिपोर्ट पर हमला करने वाले मुस्लिम पक्षों के बहसों को भी आराम से संभाला।

उन्होंने मुस्लिम पक्षों से कहा, “हम एएसआई रिपोर्ट से तैयार किए गए निष्कर्ष की वैधता की जांच करेंगे। दोनों पक्षों को इसपर विश्वास करना होगा, क्योंकि कोई भी प्रत्यक्षदर्शी नहीं है।”

न्यायमूर्ति डी.वाई चंद्रचूड़ ने कानूनी परिप्रेक्ष्य से विश्वास के पहलुओं की जांच की है और कई बार मौजूदा कानून शासन के दायरे में दोनों पक्षों के तर्को की प्रासंगिकता की जांच की है। देखा जाए तो, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने दोनों पक्षों से सबसे ज्यादा प्रश्न किए। उन्होंने इलाहबाद उच्च न्यायालय के 6,000 पन्नों के फैसले का भी संदर्भ दिया।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण उच्च न्यायालय के फैसले से सहमत दिखे। उन्होंने प्रत्यक्षदर्शियों से जिरह के दौरान कई प्रासंगिक सूचनाओं को निकालने में दक्षता दिखाई और वकीलों से भी मामले में संलिप्त मान्याताओं से संबंधित प्रश्न पूछे। उनकी पूछताछ ने कई बार वकीलों को असहज भी कर दिया। सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश राजीव धवन ने कहा था, “मैं आक्रमकता देख सकता हूं।”

बाद में धवन ने हालांकि अपने इस बयान के लिए माफी मांग ली।

न्यायमूर्ति एस.ए.नजीर ने मामले में वकीलों को धैर्य से सुना। उन्होंने एएसआई रिपोर्ट पर मुस्लिम पक्षकारों को फटकार भी लगाई। उन्होंने कहा, “आप कमिश्नर की रिपोर्ट (एएसआई) को किसी अन्य आम राय से तुलना नहीं कर सकते।”

जब वकीलों ने कहा कि इस रिपोर्ट में न्यूनतम प्रमाणिक मूल्य है और यह केवल एक राय है, इस पर न्यायमूर्ति नाजीर ने कहा, “अगर ये आपके अनुसार विज्ञान नहीं है तो, आप कैसे साक्ष्य अधिनियम के अनुच्छेद 45 का का हवाला दे रहे हैं?”

जैसे-जैसे 18 अक्टूबर की समयसीमा नजदीक आती जाएगी, यह जाहिर है कि न्यायधीश पक्षों के साथ जोरदार बहस करेंगे।

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