अमर्त्य सेन भारत की सांस्कृतिक लोकाचार को भूल गए हैं : भाजपा


नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा है कि ‘जय श्री राम’ नारे का बंगाली संस्कृति से कोई ऐतिहासिक संबंध नहीं है। भाजपा ने सेन के इस कथ्य की आलोचना करते हुए शनिवार को कहा कि अर्थशास्त्री सेन भारतीय सांस्कृतिक लोकचार से कट गए हैं, क्योंकि वह ज्यादातर विदेशों में रहते हैं। भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा, “सेन ज्यादातर विदेशों में रहते हैं और उन्हें वहां लगातार रहना चाहिए। भारत के लोगों के प्रति उनका कोई जुड़ाव या योगदान नहीं है। उनके भाषणों का कोई परवाह नहीं करता। जो उनपर निर्भर हैं, वे खत्म हो गए हैं।”

भाजपा के एक अन्य नेता मुकुल रॉय ने कहा कि जय श्री राम नारा अच्छे शासन का एक प्रतीक है और उन्होंने कहा कि सेन कई वर्षो तक विदेश में रहने के कारण निश्चित रूप से देश की परंपराओं को भूल गए हैं।

रॉय ने कहा, “इसमें कोई संदेह नहीं कि वह एक बड़े कद के व्यक्ति हैं। वह जब भी बंगाल आते हैं उन्हें उच्च दर्जे की सुरक्षा मिलती है। उन्हें शांतिनिकेतन और कोलकाता की यात्रा के लिए पायलट कारें मिलती हैं। लेकिन श्री राम कहना समृद्धि और अच्छे शासन का एक प्रतीक है। उनके प्रति पूर्ण सम्मान के साथ मैं महसूस करता हूं कि वह हमारे देश की परंपरा और संस्कृति को भूल गए हैं।”

सेन ने जादवपुर विश्वविद्यालय में शुक्रवार को एक सार्वजनिक सभा में कहा था कि उन्होंने इस तरीके से ‘जय श्री राम’ नहीं सुना है और कहा कि इस नारे का इस्तेमाल अब लोगों की पिटाई के वक्त किया जा रहा है।

सेन ने कहा था, “मैं समझता हूं कि बंगाली संस्कृति से इसका कोई जुड़ाव नहीं है।”

उन्होंने यह भी कहा था कि इसके पहले उन्होंने कभी नहीं सुना था कि बंगाल में राम नवमी का उत्सव बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हाल में यह धार्मिक आयोजन लोकप्रिय हुआ है।

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