नई दिल्ली: रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के स्वागत के लिए दिल्ली पूरी तरह से तैयार है और दोनों देशों के नेताओं के बीच वार्षिक शिखर सम्मेलन का आगाज आज सोमवार यानि 6 दिसंबर से होने जा रहा है।
पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से रूसी राष्ट्रपति का भारत दौरा टल गया था, लेकिन इस साल पुतिन का ये दौरा भारत के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होने वाला है। खासकर भारत और रूस के बीच के संबंधों को लेकर नई कहानी का आगाज होने वाला है।
वैसे भी पुतिन की ये यात्रा पिछले पांच से छह सालों की तुलना में कहीं ज्यादा अहम है। क्योंकि ट्रंप के कार्यकाल के दौरान अमेरिका के साथ अति-निर्भरता ने भारत-रूस के बीच रिश्तों में थोड़ी नर्मी आ गई थी।
लेकिन, वक़्त के साथ भारत भी अब महसूस कर रहा है कि अमेरिका के साथ अति निर्भरता शायद बहुत विश्वसनीय नहीं है। हाल ही में क्वाड के साथ जो हुआ वह भारत को दिखाता है कि अमेरिकी अचानक क्वाड से ऑकस में खुद को लेकर आ गया है। और इसके बाद अफगानिस्तान में भी अमेरिका से भारत को ‘धोखा’ भी एक उदाहरण है।
इसके अलावा भारत को खाड़ी देश, खासकर सऊदी अरब को लेकर ज्यादा चिंता भी एक बड़ी वजह है। भारत को पता है कि अगर वह रूस के साथ संबंधों को पहले की तरह मजबूत नहीं करता है, तो रूस धीरे-धीरे चीन के साथ मजबूत होने से और भी मजबूत हो जाएगा”।
हालाँकि भारत का अमेरिका की तरफ़ झुकाव आज नहीं हुआ, बल्कि करीब 25 साल पहले जब राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) शासन कर रहा था और रक्षा के मुद्दे पर देश में लंबी चर्चा हो रही थी, उस वक्त से भी भारत अमेरिका की तरफ झुकने लगा था।
भारत ने रूस से दूरी बनानी शुरू कर दी थी, लेकिन, मास्को सैन्य हार्डवेयर में हमारा बहुत बड़ा व्यापारिक भागीदार बना हुआ है क्योंकि आप रातों-रात अपने सैन्य हार्डवेयर को बदल नहीं सकते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि, ‘रूस बिना स्वार्थ भारत का मददगार और सहयोगी बना रहा है, लेकिन अमेरिका के साथ ऐसा नहीं है।अमेरिका पर आंख मुंदकर भरोसा नहीं कर सकते हैं।’
उधर चीन की दखल को देखते हुए भारत को रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम की जरूरत है। वैसे भी फ़्रांस, इजराइल और कनाडा सहित अन्य देशों से भारत रक्षा उपकरण खरीद रहा हैं। ऐसे में अपने संबंधों पर फिर से चर्चा करना और रूस के साथ अपने संबंध को और मज़बूत बनाने में परहेज नहीं करना चाहिए।
और इसके लिए पुतिन का भारत दौरा एक बहुत ही अहम मौक़ा है क्योंकि इससे पहले कोविड की वजह से पुतिन का दौरा स्थगित कर दिया गया था और इस बार बहुत सारे ऐसे सकारात्मक मुद्दे हैं जिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन को चर्चा करनी है।इसके अलावा दस साल के लिए एक रक्षा समझौते के साथ-साथ १० समझौतों पर हस्ताक्षर भी होने हैं।
हालाँकि, रूस के साथ रक्षा समझौतों को लेकर अमेरिकी प्रतिबंधों का खतरा भी बढ़ गया है। इस सिलसिले में अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता ने कहा है कि रूस से एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम खरीदने को लेकर भारत के खिलाफ प्रतिबंधों की संभावित छूट पर अमेरिका ने कोई फैसला नहीं किया है।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेक्शन एक्ट’ (CAATSA) के तहत किसी देश को विशेष छूट देने का प्रावधान नहीं है। वाशिंगटन ने संकेत दिया था कि रूसी एस-400 सिस्टम की खरीद से CAATSA प्रतिबंधों को लगाया जा सकता है।
दरअसल, CAATSA एक अमेरिका का संघीय कानून है जो ईरान, उत्तर कोरिया और रूस पर प्रतिबंध लगाता है. CAATSA अमेरिकी प्रशासन को उन देशों पर प्रतिबंध लगाने के लिए शक्ति देता है, तो रूस के साथ प्रमुख रक्षा सौदा करते हैं।
जबकि दोनों देशों के बीच हुए रक्षा सौदे को लेकर अमेरिकी प्रतिबंधों के खतरे के मद्देनजर भारत ने भी अमेरिका को दो टूक जवाब दिया है कि वो ‘किसी के दबाव’ में नहीं आने वाला है।
भारतीय रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने लोक सभा में एक लिखित जवाब देते हुए कहा- रक्षा मंत्रालय की तरफ से कहा गया है, ‘रूस से S-400 सिस्टम की डिलीवरी के लिए 5 अक्टूबर 2018 को एक करार किया गया. सरकार को रक्षा उपक्रमों की खरीद को प्रभावित करने वाले सभी घटनाक्रमों के बारे में जानकारी है।
आपको बता दें है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के भारत आने से पहले भारत और रूस के बीच रक्षा, स्पेस, व्यापार, ऊर्जा और टेक्नोलॉजी के समझौतों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसी सिलसिले में शनिवार को दिल्ली में रूसी राजदूत निकोलाई कुदाशेव ने भी पुतिन के भारत दौरे की अहमियत का ज़िक्र करते हुए कहा कि इस दौरे के दौरान कई समझौतों पर हस्ताक्षर होंगे और पुतिन-मोदी का साझा बयान भी जारी होगा।
कुदाशेव ने कहा, “साझा बयान एक व्यापक दस्तावेज होगा, जिसमें हमारे संबंधों के सभी आयाम होंगे। इसकी शुरुआत वैश्विक मामलों से होगी। आधुनिक दुनिया में संयुक्त राष्ट्र की की भूमिका की चर्चा होगी। इसके बाद इसमें अफगानिस्तान समेत क्षेत्रीय मुद्दे शामिल होंगे।
ग़ौरतलब है कि भारत और रूस का अफ़ग़ानिस्तान के मसले पर सलाह-मशविरे का लंबा इतिहास रहा है। ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान में शांति और स्थिरता पर दोनों ही देशों की अहम हिस्सेदारी है।
ऐसे में दोनों देशों के लिए नए तरीक़े से चर्चा और समझौता बेहद ज़रूरी है। 21वां भारत-रूस शिखर सम्मेलन एक अहम पड़ाव साबित होगा जिसमें भाग लेने के लिए छह दिसंबर को ख़ुद रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नई दिल्ली पहुंचेंगे। ब्रासीलिया में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के बाद से पुतिन और पीएम मोदी के बीच यह पहली आमने-सामने की बातचीत होगी।
राष्ट्रपति पुतिन की यात्रा पर दिल्ली में रूसी राजदूत ने बताया कि इस मौके पर जारी होने वाले साझा बयान में कोविड को लेकर चिंता के अलावा सबसे ज्यादा महत्व द्विपक्षीय संबंधों, हमारे रिश्तों को नए आयाम देने, नई तकनीकों, विचारों, लोगों व क्षेत्र बीच बेहतर संबंध पर होगा।
अपने बयान में रूसी राजदूत ने यह भी कहा कि राष्ट्रपति पुतिन का दौरा असाधारण होगा। आमतौर पर ऐसी यात्राओं में द्विपक्षीय सहयोग को गति देने, आर्थिक व व्यावहारिक समझौतों जैसी उम्मीदें होती हैं, लेकिन ये सब सामान्य आयाम हैं।
इनके अलावा भी इस दौरे में कई अहम बातें होंगी यात्रा के दौरान दोनों देशों के रिश्तों को नए आयाम मिलेंगे। कई समझौते, ज्ञापन व अंतरराष्ट्रीय व क्षेत्रीय मुद्दों पर दोनों देशों की साझा राय प्रकट की जाएगी।
दूसरी तरफ, भारत को भी राष्ट्रपति पुतिन की यात्रा से काफ़ी उम्मीदें है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पुतिन की भारत यात्रा से पहले अमेठी के कोरवा में पांच लाख से अधिक एके-203 असॉल्ट राइफलों के प्रोडक्शन की योजना को कैबिनेटकी सुरक्षा समिति से अंतिम मंजूरी सहित सभी आवश्यक मंजूरी दे दी गई हैं।जिसपर रूसी राष्ट्रपति की यात्रा के दौरान मुहर लगने वाली है।
सरकार इसे भारत में रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता को एक बड़ा बढ़ावा देने की कोशिश के रूप में देख रही है।इसके अलावा भारतीय सेना द्वारा 7.5 लाख राइफल्स हासिल किए जाने वाले पहले 70,000 में रूसी निर्मित कंपोनेंट्स को शामिल किया जाएगा।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बताया कि रूसी राष्ट्रपति पुतिन की यात्रा से पहले दोनों देशों के रक्षा और विदेश मामलों के मंत्रियों की भी मीटिंग होनी है। यह मीटिंग भी छह दिसंबर को नई दिल्ली में ही है।
6 दिसंबर की सुबह रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस.जयशंकर और रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव, रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु, सैन्य-तकनीकी सहयोग पर इंटरगवर्नमेंटल कमीशन के सह-अध्यक्षों की बैठक से होगी।
जबकि भारत-रूस शिखर सम्मेलन 6 दिसंबर की दोपहर को होगा। इस समिट में द्विपक्षीय संबंधों की संभावनाओं की समीक्षा की जाएगी। दोनों देश रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे।
हालाँकि भारत और रूस के बीच रक्षा सहयोग सोवियत संघ के ज़माने से है। लेकिन, इस बदले-बदले फ़िज़ा में राष्ट्रपति पुतिन का कुछ घंटों का भारत दौरा कितना असरदार होगा, ये सोमवार को होने वाला वार्षिक सम्मेलन के बाद साझा बयान से पता चलेगा।
डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी