मेला मोज़ो” के बहाने भारत-अफ्रीकी संबंध को मज़बूत करने की कोशिश, व्यापारिक मिशन स्थापित करने पर ज़ोर

अफ्रीकी युवा उद्धमियों ने मंगलवार को “मेला मोज़ो” का आयोजन किया, जिसमें दुनिया भर के क़रीब २० देशों के फ़ैशन डिज़ाइनरों के अलावा कवि, गायक और संगीतकारों ने हिस्सा लिया।

शो में शामिल होने वालों में ज़्यादातर अफ्रीकी देशों के युवा थे, जिन्होंने अपने -अपने ढेंग से कला और फ़ैशन को पेश किया। “मेला मोज़ो” की ख़ास बात ये थी कि वहाँ मौजूद सभी अप्फ्रीकी मॉडल्स को भारतीय सेस्कृति और पहनावें में काफ़ी रूची दिखाई दी।

फैशन, कला और संस्कृति के नाम मंगलावार की शाम अपने आप में अनूढी थी जिसका मक़सद है भारत और अफ्रीकी फ़ैशन और संस्कृति से आम लोगों को रूबरू कराना था और एक-दूसरे के देशों में व्यापार की संभावनाओं को तलाशना था।

“मेला मोज़ो” शो की मेजबानी भारतीय एवं अफ्रीकी छात्र संघ के अलावा फ़ैशन जगत से जुड़ी “डिजिकरघा” जैसी दुनिया की जानीमानी संस्थाएँ भी अपने अपने कपड़ों को पेश किया।

डिजिटल एंपावरमेंट फ़ाउंडेशन की “डिजीकरघा” पहले भी लैकमे फ़ैशन शो में हिस्सा ले चुकी है। इस बार “मेला मोज़ो” शो में भी “डिजीकरघा” अपने फ़ैशन डिज़ाइन के साथ-साथ अपनी हुनर को भी साझा किया।

वहीं, अफ़्रीका और यूरोप के देशों से फ़ैशन ब्रांड भी अपने डिज़ाइन को भारतीय लोगों के सामने पेश किया। साथ ही अफ़्रीकन एसोसिएशन ऑफ स्टूडेंट्स इन इंडिया यानि “आसी” के सदस्यों ने भी अफ्रीकी मॉडलों के साथ अफ्रीकी परिधान और कला की प्रस्तुति की।

जबकि भारत और अफ़्रीका के युवाओं के साथ लगातार काम कर रही सामाजिक संस्था एसोसिएशन फ़ॉर कॉम्यूनिटी रिसर्च एंड एक्शन की वैश्विक इकाई “ए.एस.एम.पी” यानि एसोसिएशन ऑफ सोशल मिडिया प्रोफेशनल ने भी भारत-अफ्रीकी संबंधों को मज़बूत करने के लिए अपना महत्वपूर्ण सहयोग दिया।

मालूम हो कि “ए.एस.एम.पी” अफ़्रीका के २८ देशों में युवाओं के साथ कई महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यों में सहयोग दे रहा है। और इस बार “मेला मोज़ो” शो में भी “ए.एस.एम.पी” शामिल हो कर अफ्रीकी युवाओं का मार्गदर्शन किया और आगे भी उन्हें इंटरप्रेन्योरशिप की ट्रेनिंग देने की बात की।

इसके अलावा दिल्ली स्थित ज़िंबाब्वे दूतावास के उप राजदूत एडसन मोयो ने भी भारत और अफ़्रीका की आपसी संबंध को एक नई ऊँचाई देने पर ज़ोर दिया।

उप राजदूत एडसन मोयो ने सद्भावना टुडे से बात करते हुए कहा, “भारत-अफ्रीका के रिश्ते ब्रिटिश काल से हैं जब दोनों पर ब्रिटिश हुकुमत थी। अब तक अफ़्रीका ने भारत से हर क्षेत्र में सीखा है, लेकिन अब हम चाहते हैं कि भारत के लोग अफ़्रीका जाकर वहाँ के लोगों को और जागरुक करें।

ग़ौरतलब है कि भारत और अफ्रीका के बीच अनुक्रियाओं का एक दीर्घ और समृद्ध इतिहास रहा है जिसमें दक्षिण-दक्षिण सहयोग पर आधारित सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विनिमय उल्लेखनीय हैं।

हाल के वर्षों में भी इन सबंधों को आगे बढ़ाने और मजबूत करने के लिये कई कदम उठाए गए हैं। हालाँकि पिछले कुछ दशकों में भारत की अफ्रीका नीति बहुत हद तक निराशा और अनिच्छा से प्रकट की गई प्रतिक्रियाओं के बीच झूलती रही है।

कई मंचों पर तो इस महाद्वीप की ओर रणनीतिक उदासीनता भी दिखाई पड़ी है। नई दिल्ली की विदेश नीति के व्यापक ढाँचे में अफ्रीका महाद्वीप के देशों को अब तक कोई खास महत्व नहीं दिया जाता था, लेकिन अब स्थिति में बदलाव आने लगा है।

भारत के नेता अफ्रीकी देशों की यात्रा भी बहुत कम करते थे और बहुत कम ही ऐसा होता था कि नई दिल्ली की विदेश नीति से संबंधित महत्वाकांक्षाओं में उस पर कोई चर्चा भी की जाती हो।

अफ्रीका के साथ भारत के समकालीन संबंधों का वर्णन अब तक पूरी तरह से हमारी सदियों पुरानी व्यापारिक भागीदारी, समृद्ध प्रवासी भारतीयों द्वारा विकसित सामाजिक-सांस्कृतिक संपर्क सूत्रों और नेहरु युग के दौरान चलाए गए उन राष्ट्रीय आंदोलनों के ऐतिहासिक संवादों पर ही केंद्रित रहता था, जिसमें साम्राज्यवादी शासन के विरोध में चलाए गए संघर्षों के समर्थन और गुट-निरपेक्ष आंदोलन के बदलते भू-राजनैतिक उथल-पुथल का ही उल्लेख रहता था।

इस बयानबाजी से परे, आखिर वे कौन-से तत्व थे, जिनके कारण ये रिश्ते फिर भी आगे बढ़ते रहे. इनके कारण ही राज्य के स्वामित्व वाले उन उद्यमों (SOE) द्वारा, जो पश्चिम एशियाई देशों से ऊर्जा भंडार को दूर करके उसे विशाखित करने का प्रयास कर रहे थे, महत्वपूर्ण परिसंपत्तियों का और लघु व मझौले उपक्रमों (SME) और बहुराष्ट्रीय कंपनियों (MNC) द्वारा अन्य वाणिज्यिक उद्यमों का अधिग्रहण किया गया।

लेकिन पिछले कुल वर्षों में इस मिटते रिश्ते में कई वजहों से ऊर्जा का संचार हुआ।  एक अनुमान के मुताबिक़ 2018 तक इस महाद्वीप की 3.2 फ़ीसदी की दर से आर्थिक उन्नति इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण था।

इसमें विश्व की सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली छह अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हैं। जैसे-जैसे भारत अफ्रीका के देशों में नये सिरे से अपनी गतिविधियाँ बढ़ा रहा है, एक ऐसा गतिशील वातावरण बनने लगा है जिसमें तेज़ी से होते हुए परिवर्तन की लहर दिखाई पड़ने लगी है।

अफ्रीकी सरकारें भी केवल मूक दर्शक नहीं बनी बैठी हैं, बल्कि वे भी आगे बढ़कर सक्रिय होकर इस महाद्वीप की नियति को सँवारने में जुट गई हैं। इसकी बानगी हमें “मेलामोजो” में मौजूद ज़िंबाब्वे के उप राजदूत एडसन मोयो से बातचीत के दौरान मिली।

उप राजदूत एडसन मोयो ने बातचीत के दौरान अफ्रीकी देशों से भारत के व्यापारिक और सास्कृतिक संबंध के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा, “भारत “वसुधैव कुटुंबकम” में विश्वास रखता है और हम भी इस परिवार का हिस्सा हैं। हमें एक दूसरे से कई क्षेत्रों में सहयोग करने की ज़रूरत है, ताकि नई पीढ़ी इसका लाभ उठा सकेगी।

आयोजन में पहुँचे अफ्रीकी युवाओं ने भी काफ़ी रोमांचित दिखे। “मेला मोज़ो” शो के आयोजक ने कहा, “कलाकारों, मॉडलों और डिजाइनरों के साथ हमारे पास जो विविधता है, वह शो को वास्तव में मनोरंजक बनाने वाली है।लेकिन, सबसे ख़ास बात ये है कि भारत और अफ़्रीका की सभी संस्थाओं के सहयोग से हमारा काम आसान हो गया।

खास कर के अफ़्रीकन एसोसिएशन ऑफ स्टूडेंट्स इन इंडिया यानि “आसि” और “ए.एस.एम.पी” यानि एसोसिएशन ऑफ सोशलल मीडिया प्रोफेशनल्स की मदद से इस शो को बड़ी सफलता मिली है।”
“मेला मोज़ो” शो की ख़ासियत बयान करते हुए एसोसिएशन फ़ॉर कॉम्यूनिटी रिसर्च एंड एक्शन यानि एकरा संस्था के प्रतिनिधि के मुताबिक़ “इस शो का सबसे अहम पहलू भारतीय कपड़ों में अफ्रीकी मॉडल का रैंप पर चलना था।

इसके ज़रिए अफ्रीकी मॉडलों ने अलग-अलग संस्कृतियों के लिए संदेश दिया और साबित कर दिया कि हम एक दूसरे के कितने पूरक हैं। हम चाहते हैं कि भारतीय लोग सिर्फ़ कपड़े ही नहीं अफ्रीकी संस्कृति को जानें और सम्मान करें”।

हालाँकि अफ़्रीकन एसोसिएशन ऑफ स्टूडेंट्स इन इंडिया यानि “आसि” के तहत ज़िंबाब्वे देश के छात्रों अध्यक्ष टाटेंडा चिंहामो ने भी डिजीकरघा के कपड़ों का उदाहरण देते हुए कहा कि जिस तरह भारतीय परीधान ने अफ्रीकी मॉडलों को प्रभावित किया, इससे पता चलता है कि डिजीकरघा के फ़ैशन अफ़्रीका में काफ़ी पसंद किए जाएँगे।

छात्रों को “मेला मोज़ो” में बहुत विविधता देखने को मिला, विशेष रूप से वे जो परिधान देख रहे थे और जो संगीत बज रहा था, उसके संदर्भ में उन्हें सोचने समझने को मजबूर किया।” टाटेंडा चिंहामो ने आगे कहा, “हम अपने मॉडलों के चयन में भी विविध थे। पिछले वर्षों के आयोजनों के मुक़ाबले इस साल हमारे पास सभी वर्गों का बेहतर प्रतिनिधित्व था।

पिछले २ साल की महामारी के बाद यकीनन ये एक ख़ास मौक़ा था जहां लोगों को फिर से एक नई उम्मीद दिखी। और ऐसे में “मेला मोजो” की रोमांचक शाम जिसमें अफ्रीकी अपनी सांस्कृतिक विविधता और अफ्रीका और भारत के अंतर्संबंधित फैशन की सुंदरता ने तो चार चाँद लगा दी।

हालाँकि, फ़िलहाल भारत और अफ्रीका को एक मज़बूत आधार बनाने की सख़्त ज़रूरत है जिसमें अधिक कूटनीतिक मिशन स्थापित करना, अधिक व्यापार मिशन, लगातार उच्चस्तरीय अनुबंध शामिल करना होगा।

-डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी

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