बेखौफ आवाज बुलंद कर रही हैं अफगान महिलाएं, उन्हें मंज़ूर नहीं अब “ग़ुलामी”!

काबुल- अफगानिस्तान में तालिबान की दहशत के बीच अफगान महिलाएं अपने अधिकारों के लिए बेखौफ आवाज बुलंद करती नज़र आ रही हैं। वे लगातार तालिबान के खिलाफ काबुल में प्रदर्शन कर रही हैं और आवाज़ें बुलंद कर रही हैं।

इस तरह के बेख़ौफ़ प्रदर्शन के ज़रिए महिलाएँ यह संदेश देना चाह रही हैं कि अज्ञानता और फासीवाद की जंजीरों में अफगान महिलाओं को कोई ताकत कैद नहीं कर सकता। मंगलवार को भी विभिन्न प्लेकार्ड के साथ प्रदर्शन कर रही महिलाओं ने अपनी मांगों से तालिबान को साफ तौर पर अवगत कराया और संकेत दिया कि वे चुपचाप नाइंसाफी को नहीं सहन करने वाली हैं।

तालिबान ने काबुल की सड़कों पर मंगलवार को कई रैलियों में जमा हुए सैकड़ों लोगों को तितर-बितर करने के लिए गोलियां तक चलाईं, लेकिन बेख़ौफ़ महिलाएँ आवाज़ें बुलंद करती रहीं। मंगलवार की इस घटना ने चीन में 1989 में हुए तियानमेन स्क्वायर की घटना की याद दिला दी।

मालूम हो कि 4 जून 1989 को चीन के तियानमेन स्‍क्‍वायर चौक पर चीन की सेना ने प्रदर्शनकरियों के खून से होली खेली थी। हू की मौत के बाद हुए विरोध ने चीन की सरकार की नींद उड़ा कर रख दी थी।

चीन की सरकार के मुताबिक इस घटना में करीब 300 लोगों की जान गई थी, जबकि यूरोप मानता है कि इसमें दस हजार से अधिक लोग मारे गए थे। वहीं चीनी मानते हैं कि इसमें 3 हजार लोगों की मौत हुई थी।

अगर अफ़ग़ानिस्तान की बात करें, तो मंगलवार का नजारा भी कुछ ऐसा ही था। हालाँकि, तालिबान के लोगों ने हवा में ताबड़तोड़ गोलियाँ चलाई, जिससे किसी जगमाल का नुक़सान नहीं हुआ। इस प्रदर्शन में अफगान महिलाओं की मांग थी कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर हक मिले और ऐलान किया कि हम सब एक साथ हैं और हर जुल्म के खिलाफ लड़ेंगे।

अफगान महिलाओं ने समानता, न्याय, लोकतंत्र की मांग करते हुए अपनी आवाज बुलंद की।अफगान महिलाओं का कहना है कि अमेरिका/ नाटो ने उन्हें धोखा दिया है।अफगान महिलाओं ने लगातार जारी प्रदर्शन में यह मांग भी कर रही हैं कि महिलाओं के हक को खत्म किया जा रहा है और जब तक महिलाओं को उनके अधिकार वापस नहीं मिलते हैं महिलाएं चुप नहीं बैठने वाली हैं।

अगर पिछले आँकड़ों पर नज़र डालें तो पता चलता है कि अफगानिस्तान में लगभग 90 फीसदी महिलाओं ने घरेलू हिंसा का कम से कम एक बार किसी ना किसी रूप में अनुभव किया है। और 17 फीसदी महिलाएं यौन हिंसा और 52 फीसदी शारीरिक हिंसा का शिकार हुई हैं।

हर रोज अफगान महिलाओं पर किए जा रहे मानवता को शर्मसार करने वाली घटनाओं से जुड़ी खबरें सोशल मीडिया पर भी देखा और पढ़ा जा सकता है। ऐसे हालात पर पूरा विश्व अफगान महिलाओं के अधिकारों के लिए चिंतित है।

हालाँकि, अफगान समाज में फैली कट्टरता के लिए कुछ हद तक महिलाएं भी जिम्मेदार हैं। उनको सोचना पड़ेगा की, समाज और परिवार की सुख समृद्धि और शांति के लिए ज्यादा बच्चों की नहीं, संस्कार वान बच्चों की आवश्यकता है।

महिलाओं पर अत्याचार करने से पहले तालिबान को सोचना पड़ेगा कि अगर अफगानी महिलाएं आज बच्चे पैदा करना बंद कर दें तो कल का तालिबान कहां पैदा होगा?

सत्ता शक्ति से हासिल तो किया जा सकता है, लेकिन सत्ता पा कर राज करने के लिए अपने नागरिकों का विश्वास और सहयोग अति आवश्यक है। बाहरी ताकतों से मिली शक्ति स्वार्थ से प्रभावित होती है, जो बुरे वक्त पर साथ छोड़ देती है, जबकि अपने लोगों के सहयोग प्यार और विश्वास के बल पर ही सत्ता में टिका जा सकता है।

दोहा में शांति वार्ता में कुछ महिला वार्ताकारों में से एक फौजिया कूफी कहती हैं कि अफगानिस्तान ने पिछले दो दशक में परिवर्तनकारी बदलाव देखे हैं। कूफी कहती हैं, “मैंने तालिबान के साथ वार्ता में इसी अफगानिस्तान के बारे में ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की थी।

मैंने उन्हें आधुनिक वास्तविकताएं अपनाने के लिए कहा था।” वे कहती हैं कि लड़कियों के शिक्षा केंद्रों पर हमले बढ़े हैं। 1996-2001 तक तालिबान ने अपने शासन के दौरान इस्लामी कानून का एक ऐसा रूप लोगों पर थोपा जो महिलाओं के अधिकारों के प्रति पूरी दुनिया में सबसे कठोर कानूनों में से था।

महिलाओं को अपने शरीर और चेहरे को पूरी तरह से बुर्के से ढकना अनिवार्य था। यूएस एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (यूएसऐड) के मुताबिक अफगानिस्तान में 35 लाख लड़कियां स्कूल जाती हैं।

संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक चार दशकों के युद्ध के बाद अफगानिस्तान की साक्षरता दर 43 प्रतिशत है, लेकिन सिर्फ 30 फीसदी महिलाएं ही साक्षर हैं।

वहीं, जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय की सूचकांक के मुताबिक अफगानिस्तान महिलाओं के लिए दुनिया के सबसे खराब देशों में से एक है, अफगानिस्तान के बाद सीरिया और यमन का नंबर आता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक अफगानिस्तान में तीन में से एक लड़की की शादी 18 साल से कम उम्र में करा दी जाती है। ज्यादातर शादियां जबरन होती है।

ऐसे में अब ये देखना अहम होगा कि ये बेख़ौफ़ महिलाएँ अपना संघर्ष कितने दिनों तक जारी रख पाती हैं। ख़ासकऱ के ऐसे माहौल में जब तालिबान का ख़ौफ़ पूरे अफ़ग़ानिस्तान में अपनी पकड़ बना चुका है।

हालाँकि, तालिबान अपने पर्स कॉन्फ़्रेंस में बार-बार कहता रहा है कि तालिबान की ये सरकार, पहले से बिल्कुल अलग होगी जिसमें महिलाओं का ख़ास ख़्याल रखा जाएगा। ऐसे में अब वक़्त ही बताएगा कि क्या सचमुच तालिबान बदल चुका है? लेकिन, आखिरकार अपने अधिकार के लिए अंतिम आवाज अफगान महिलाओं को ख़ुद ही उठानी पड़ेगी।

 

-डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी

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