बजट विशेष: इस बार की ‘DigitAll’ थीम वाली बजट में क्या है ख़ास?

नई दिल्‍ली। मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार का ये आखिरी पूर्ण बजट होगा। ऐसे में ये कयास लगाए जा रहे है कि बजट लोक-लुभावना होगा और सभी आयु वर्ग के लिए कुछ ना कुछ हो सकता है।क्योंकि पिछले दिनों काउंसिल ऑफ़ मिनिस्टर्स की बैठक में पीएम ने नसीहत दी थी कि सरकारी योजनाओं की जानकारी को आम लोगों तक पहुंचाया जाए। इसके मद्देनज़र बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष, नेता प्रतिपक्ष 2 फरवरी को प्रेस वार्ता करेंगे। बीजेपी के केंद्रीय मंत्री 4 और 5 फरवरी को देश भर में 50 शहरों में प्रेस वार्ता और सम्मेलन करने वाले हैं। बीजेपी के सभी सांसद भी इस अभियान के अंतर्गत अपने संसदीय क्षेत्र में बजट को लेकर कार्यक्रम करेंगे और अपने क्षेत्र की जनता को बजट की बारीकियों से अवगत कराएंगे।

सांसद अपने क्षेत्र में जाकर लोगों को बताएंगे कि बजट में उनके लिए क्या खास है और आने वाले समय में इससे उन्हें क्या फायदा मिल सकता है। इस प्रचार अभियान के लिए बीजेपी ने एक समिति बनाई है, जिसका संयोजक बिहार के पूर्व उप-मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद सुशील मोदी को बनाया गया है। बीजेपी चाहती है कि बजट के प्रावधानों को देश के सभी जिलों में सम्मेलन आयोजित कर प्रखंड स्तर तक पहुंचाया जाए।

ग़ौरतलब है कि 1 फरवरी यानि बुधवार को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संसद में मौजूदा वित्त वर्ष के लिए बजट पेश करेंगी। अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इस साल बजट में आख़िर क्या ख़ास है, जिसकी वजह से भाजपा बजट को घर-घर पहुँचाने की बात कर रही है।

पिछले कुछ वर्षों की बजट थीम पर नजर डालें तो कभी बजट वुमन सेंट्रिक कहलाया, कभी ‘आत्मनिर्भर भारत’ वाला, तो कभी ‘डिजिटल इंडिया’ की थीम पर जारी हुआ। पिछले 9 वर्षों में मोदी सरकार में पेश हुई बजट थीम और उसके नतीजों का खास पैटर्न नजर आता है।

बजट थीम जिस सेक्टर पर रही, उसके आने के बाद वही सेक्टर चुनौतियों की चपेट में आ गया। जिस सेक्टर की भलाई को लेकर कल्पना की गई; आने वाले समय में उसी सेक्टर का सबसे ज्यादा खस्ताहाल देखने को मिला। कभी अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों तो कभी महामारी की चपेट में आकर मोदी सरकार के बजट की थीम अपने रास्ते से डगमगा गई।

2014 में मोदी सरकार का पहला बजट वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश किया। इस बजट की थीम थी- ‘सबका साथ-सबका विकास’, लेकिन इसके तुरंत बाद ही देश भर में अल्पसंख्यकों पर हमले हुए। 2015 में दादरी का चर्चित अखलाक हत्याकांड सामने आया और गिरजाघरों पर भी हमले देखने को मिले। असहिष्णुता को लेकर देश भर में हंगामा हुआ; फिर JNU विवाद सुलग उठा। इन सबके विरोध में साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों ने अपने अवॉर्ड वापस किए। ‘सबका साथ-सबका विकास’ वाले नारे के साल भर के भीतर ही देश अलग-अलग खेमों में बंटता दिखा।

मोदी सरकार का दूसरा बजट 28 फरवरी, 2015 को पेश किया गया। इस बार कई थीम थीं। जिसमें मुख्य रूप से ‘कालेधन पर लगाम’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘कारोबार को सुगम बनाने का संकल्प’ सर्वोपरि था। लेकिन इसके अगले ही साल देश में नोटबंदी लागू हो गई, जिसके चलते आने वाले कई साल तक सरकार इन तीनों थीमों को पार लगाने में जुटी रही। नोटबंदी के चलते ढेरों छोटे व्यापारियों की कमाई बंद हो गई। CMIE यानी ‘सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी’ के एक अनुमान के मुताबिक नोटबंदी के शुरुआती 1 महीने में ही छोटे उद्योगों को लगभग 1.5 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ। कई कंपनियां तो पूरी तरह ठप हो गईं। इस साल के बजट का मेन फोकस ‘कालेधन’ को लेकर भी नतीजा सिफर रहा। बाद में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि नोटबंदी का उद्देश्य कालाधन वापस लाना था ही नहीं।

साल 2016-17 का बजट भी वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश किया। इस बजट के केंद्र में किसान रहे। अगले 5 सालों में किसानों की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य रखा गया। 5 साल पूरे होने से पहले ही यह थीम भी दम तोड़ती नजर आई। सरकार से जुड़े लोगों ने 2016-17 के बजट को ‘गांव-गरीब-किसान’ का बजट कहा। लेकिन 2020 में तीन कृषि कानून अध्यादेश के जरिए लाए गए। जिसके विरोध में जगह-जगह पर किसानों की नाराजगी सड़कों पर उतर आई। 2021 आते-आते आंदोलन ने हिंसक रूप अख्तियार कर लिया। सरकार और किसानों में लंबे वक्त तक तलवार खिंची रही। आखिरकार सरकार को अपनी तलवार वापिस म्यान में रखनी पड़ी।

2017-18 का बजट वित्त मंत्री के रूप में अरुण जेटली का चौथा बजट था। इस बजट में हेल्थ केयर, शिक्षा, रोजगार, MSME, इंफ्रा सेक्टर और स्ट्रक्चरल रिफॉर्म्स पर फोकस रहा। लेकिन इसके 3 साल बाद जब कोविड आया तो उसे संभालने में देश का इन्फ्रास्ट्रक्चर नाकाफी साबित हुआ। अस्पताल से लेकर श्मशान तक लंबी लाइनें देखी गईं। हालांकि, इस दौरान पहले से तैयार डिजिटल इकोनॉमी से लोगों को थोड़ी राहत मिली।

2018-19 का बजट बतौर वित्त मंत्री अरुण जेटली का आखिरी बजट था। इस बजट में ‘आयुष्मान भारत योजना’ की घोषणा हुई। 10 करोड़ परिवारों को 5 लाख रूपए प्रतिवर्ष के स्‍वास्‍थ्‍य बीमा कवच से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया। 2019-20 तक योजना के पूर्ण रूप अमल में आने की उम्मीद थी, लेकिन 2020-21 में आई कोविड की दो लहरों ने स्वास्थ्य बीमा के कवच को चटका दिया। कई अस्पतालों ने कोविड में इस योजना का लाभ देने से इनकार कर दिया। दूसरी तरफ, कोविड के दौरान बड़ी आबादी अस्पताल के बेड, ऑक्सीजन और दवाइयों के लिए दर-दर भटकती रही।

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पीयूष गोयल ने अंतरिम बजट पेश किया। इसमें कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं हुआ, सिवाय ‘पीएम किसान निधि’ योजना के। इसके तहत देश के छोटे और सीमांत किसानों को हर साल 6 हजार रुपए नकद देने का फैसला किया गया, यानी 500 रुपए महीने। सरकार की इस नीति की देश भर में प्रशंसा हुई। साल 2019-20 में मोदी सरकार 2.0 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया। यह उनका और किसी भी पूर्णकालिक महिला वित्त मंत्री का पहला बजट था। इस बजट में निर्मला सीतरमण ने कहा कि देश के विकास के लिए अमीरों को ज्यादा टैक्स देने की जरूरत है। बजट में अमीर टैक्सपेयर्स पर सरचार्ज की दो दरें पेश की गईं।
सुनने में यह क्रांतिकारी कदम लगा। माना जा रहा था कि इसके बाद अमीर और गरीब के बीच की खाई थोड़ी कम होगी, लेकिन कुछ अलग ही देखने को मिला। जनवरी 2020 से जून 2021 के बीच गौतम अडानी की संपत्ति 7 गुना बढ़ गई। यही नहीं, अडानी 2022 में अमेरिकी बिजनेसमैन जेफ बेजोस के बाद दुनिया के दूसरे सबसे अमीर इंसान भी बन गए। इधर, कोविड के चलते देश की अर्थव्यवस्था में नकारात्मक वृद्धि हुई और प्रति व्यक्ति आय भी कम हुई।

साल 2020-21 के लिए निर्मला सीतारमण ने बजट में मुख्य रूप से तीन बातों पर फोकस किया-

1. केयरिंग सोसाइटी का निर्माण 2. सबका आर्थिक विकास और 3. महत्वाकांक्षी भारत का निर्माण

इस बजट के पेश होने के कुछ महीने बाद ही देश ने कोविड का भयंकर दौर देखा। इस दौरान समाज का स्याह पक्ष भी उजागर हुआ। बच्चों ने कोविड से मरे मां-बाप की लाशों को लेने से इनकार कर दिया। नदियों में तैरती लाशों ने भी दुनिया भर का ध्यान खींचा। सबसे मुश्किल वक्त में ‘केयरिंग सोसाइटी’ में एक-दूसरे की केयर करने वाले लोग कहीं नजर आए तो कहीं नदारद मिले। ऑक्सीजन सिलेंडर, जरूरी दवाएं और अस्पताल के बेड तक की कालाबाजारी दिखी। इस साल लोगों की महत्वाकांक्षा भी खुद को किसी तरह जिंदा रखने तक सिमट गई और देश की इकोनॉमी लगभग ठप हो गई।

साल 2021-22 में कोविड की वजह से निर्मला सीतारमण ने देश का पहला डिजिटल बजट पेश किया। इस बार के बजट में स्वास्थ्य बजट को बढ़ाकर 2,23,846 करोड़ रुपए किया गया। जो 2020-21 में 94,452 करोड़ रुपए था। कोविड वैक्सीन के लिए 35 हजार करोड़ रुपए रखे गए। भारत ने न केवल स्वदेशी वैक्सीन बनाई बल्कि कई देशों को मुहैया भी कराई। कोविड के खौफनाक अनुभव के बाद हेल्थ सेक्टर के बजट बढ़ाने का विशेषज्ञों ने स्वागत किया। लेकिन साथ में यह भी कहा गया कि ऐसा फैसला अगर कोविड के शुरुआती दौर में होता तो कई जानें बच जातीं।

साल 2022-23 का बजट मुख्य रूप से ‘आजादी के अमृत महोत्सव पर अगले 25 साल का लक्ष्य’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर केंद्रित रहा। लेकिन इस बजट के पेश होने के बाद आत्मनिर्भर होने की जगह देश का व्यापार घाटा बढ़ गया। हमने दूसरे देशों से आयात ज्यादा किया, जबकि उसके मुकाबले में निर्यात कम हो गया।

हालाँकि आर्थिक मामलों के जानकार बताते हैं- सरकार और संसद यानी विधायिका का काम है योजना और कानून बनाना। दूसरी ओर, कार्यपालिका यानी ब्यूरोक्रेसी का काम है उसे लागू करना और आम लोगों को उसका लाभ पहुंचाना। अब चाहे सरकार जितनी अच्छी योजनाएं बना ले; जब तक उन्हें लागू करने वालों की नीयत और इच्छाशक्ति सही नहीं होगी; बजट अपनी थीम से भटकता रहेगा।

अतीत के अनुभवों से ये सीख मिलती है कि केंद्र सरकार ने जिन-जिन योजनाओं को बड़े दिल से प्यार के साथ पेश किया, उनका अंजाम उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा।

‘सबका साथ-सबका विकास’ अल्पसंख्यकों पर हमले के शोर में दब गया। ‘खेती-किसानी’ वाली थीम किसानों को भड़का गई। कालाधन वापस लाने और व्यापार को आसान बनाने की थीम नोटबंदी में नोटों को राख कर गई। लाखों छोटे बिजनेस पर बड़े ताले लटक गए। वित्त मंत्री ने जब अमीरों पर अधिक टैक्स लगाने और अमीर-गरीब की खाई को पाटने की बात की तो पहले से अमीरों की संपत्ति आठ-दस गुना बढ़ गई और प्रति व्यक्ति आय घट गई। आम आदमी के सिर पर कर्ज दोगुना हो गया।

वैसे, इस बार की बजट थीम ‘DigitAll’ है। यानी सरकार सबको टेक-सेवी बनाने का सोच रही है; तो आप अपने गैजेट्स चाक-चौबंद कर लें, पैसा कहीं भी खोसेंगे, नजर आ ही जाएगा।

-डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी, Follow via Twitter @shahidsiddiqui

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *