नई दिल्ली, २७ मार्च- राजधानी दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश बोर्डर यानि नोएडा से ठीक पहले सरिता विहार और कालंदीकुंज रोड पर मार्केट में सोमवार को अवैध रूप से पार्किंग शुल्क लगाने की बात सामने आई। हालाँकि ये कोई अकेला और पहला मामला नहीं था।

दरअसल, स्थानीय पूर्व विधायक आसिफ़ मो. खान और पार्षद अरीबा खान ने मौक़े पर पहुँच कर इसका भंडाफोड़ किया। उनका आरोप था कि दिल्ली पुलिस और एमसीडी की मिलीभगत से ही राजधानी के कई इलाक़ों में खुलेआम अवैध पार्किंग का धंधा चल रहा है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि दिल्ली में पार्किंग में नियमों की हो रही अनदेखी का मामला एक तरफ है और यहां चल रहे अनगिनत अवैध पार्किंग और उसकी वजह से सड़क पर लगने वाले जाम की समस्या एक तरफ।
दिल्ली के #सरिताविहार – #नोएडा रोड पर #एमसीडी का बोर्ड लगाकर पार्किंग से अवैध वसूली का आरोप।पूर्व विधायक आसिफ़ एवं पार्षद अरीबा ख़ान ने पुलिस और एमसीडी की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए कहा कि “दिल्ली में #अवैध पार्किंग का धंधा धड़ल्ले से चल रहा है।” @MCD_Delhi @LtGovDelhi @tweetndmc pic.twitter.com/BC04eHIXFl
— Sadbhawna Today (@TodaySadbhawna) March 27, 2023
मालूम हो कि इससे पहले भी आईबीएम ने दुनिया के बीस बड़े शहरों में पार्किंग के मुद्दे पर एक सर्वेक्षण किया था, जिसमें पार्किंग को लेकर दिल्ली को दुनिया का सबसे खराब शहर माना गया था, जहां पार्किंग के मुद्दे पर सबसे अधिक बहस होती है। इस सर्वेक्षण में नैरोबी और मिलान जैसे शहर दिल्ली के भी पीछे ही खड़े थे। कहने के लिए देश में सबसे अधिक गाड़ियां दिल्ली शहर में ही हैं, लेकिन इनमें दो पहिया वाहन सबसे अधिक है। जहां तक कारों की बात है तो दिल्ली में जगह के अनुपात में मुंबई से पांच गुना कम कार सड़कों पर हैं। फिर भी दिल्ली में आये दिन जाम की समस्या रहती है। इसका सबसे बड़ा कारण है कारों के लिए पार्किंग का अभाव। मुंबई या पुणे जैसे शहरों में जहां अपार्टमेन्ट कल्चर है वहां कारों की पार्किंग बिल्डिंग के भीतर ही बनायी जाती है लेकिन दिल्ली में कार खड़ी करने के लिए अधिकांश सड़कों का सहारा ही लिया जाता है।
ऐसे में दिल्ली के जाम में फंसा कोई व्यक्ति सड़क पर कतार से लगी हुई गाड़ियों को देखकर नहीं समझ सकता कि ये वैध पार्किंग है या फिर अवैध रूप से मुख्य सड़क पर कब्जा करके गाड़ियां खड़ी कर दी गई हैं।
हालाँकि, सरिता विहार और कालंदीकुंज रोड पर अवैध पार्किंग दिल्ली की किसी एक सड़क का हाल नहीं है। फ़्रेंड्स कॉलोनी से लेकर जीटी करनाल रोड पर मजनू के टीले से आप कभी गुजरें तो 50-100 गाड़ियां सड़क पर खड़ी मिलेंगी। तीस हजारी कोर्ट के बाहर ऐसे ही गाड़ियों की कतार खड़ी होती है। कोई आम आदमी कैसे समझे कि जिस पार्किंग की वजह से वह जाम का शिकार हो रहा है, वह पार्किंग वैध या अवैध? दिल्ली की सड़कों से पार्किंग खत्म हो जाए तो यहां की जाम की आधी समस्या का समाधान हो जाए।
इससे पहले भी एक प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, आरटीआई एक्टिविस्ट गोपाल प्रसाद ने जहांगीरपुरी में चलने वाली अवैध पार्किंग के संबंध में बता चुके है, जिसे वहां के कुछ ताकतवर लोग चलाते हैं। वहां एक पूरी सड़क पार्किंग माफियाओं ने बंद करके रखी हुई है। इन सारी गतिविधियों के पीछे जिसका नाम सबसे अधिक आता है, वह पिछले दिनों जहांगीरपुरी दंगा मामले में जेल से लौटकर आया है। इसी तरह, अगर तरीक़े से जाँच की जाए तो पता चलेगा कि कहां, कैसे और कौन-कौन से रसूक वाले इस धंधे से रोज़ाना लाखों की आमदनी करते हैं।
हालाँकि ये सभी को मालूम है कि ऐसी ही अवैध पार्किंग की वजह से जाम लगता है और सैकड़ों लोगों के समय और ईंधन का नुकसान होता है। फिर ऐसी पार्किंग को हटाया क्यों नहीं जाता?
तकनीक की मदद से ऐसा एप बनाया जा सकता है जहां नेवीगेशन के माध्यम से दिल्ली के सभी वैध पार्किंग की जानकारी आम आदमी को उसके मोबाइल पर मिल जाए और वह किसी अवैध पार्किंग की वजह से जाम में फंसे तो मोबाइल पर ही वह अपनी शिकायत दर्ज करा पाए। दिल्ली में सड़क के किनारे-किनारे कुकुरमुत्ते की तरह उग आए अवैध पार्किंग को यदि खत्म कर दिया जाए तो ना सिर्फ जाम से बल्कि प्रदूषण की समस्या से भी दिल्ली वालों को थोड़ी राहत मिलेगी।
अगर एमसीडी की वैध पार्किंग की बात करें तो वहां भी जमकर नियमों की अनदेखी होती है। जैसे तय सीमा से बाहर तक उनकी पार्किंग चलती है। वे अपनी क्षमता से अधिक गाड़ी अंदर बाहर भर लेते हैं। जबकि यह सब नहीं होना चाहिए। अगली बार जब आप एमसीडी की किसी पार्किंग में जाएं तो जरूर गौर कीजिए कि पार्किंग में कीमत का सही ब्योरा कहीं लगाया गया है या नहीं, पार्किंग वाले की शिकायत करने के लिए वहां एक हेल्पलाइन नंबर लिखा है या नहीं। वहां पर्ची हाथ से नहीं बनी होनी चाहिए। बल्कि गौर कीजिए उसके लिए पार्किंग में हैंडहेल्ड उपकरण है अथवा नहीं। पार्किंग चलाने वाले वर्दी में हैं या नहीं। पार्किंग में ठेकेदार का नाम, नंबर और उसके टेंडर की समय सीमा का वर्णन किया हुआ बोर्ड कहीं लगा है या नहीं। वहां निगम द्वारा तय रकम वसूली जा रही है या नहीं।
यहां जिन बातों का ज़िक्र किया गया है।अगर उसमें किसी प्रकार की कोई कमी या शिकायत सामने आती है या किसी प्रकार की पार्किंग संचालकों द्वारा लापरवाही बरती जाती है तो नगर निगम के पास उनका चालान काटने से लेकर ठेका रद्द करने तक का अधिकार है।
लेकिन सारे नियम, कायदे, कानून, अधिकार धरे के धरे ही रह जाते हैं। हर साल पार्किंग माफियाओं पर शिकंजा कसने का अभियान शुरू होता है। लाख डेढ़ लाख चालान का रिकॉर्ड बनता है फिर इस चालान के रिकॉर्ड से खानापूर्ति कर के अभियान को अगले किसी अभियान तक के लिए खत्म कर दिया जाता है। इस पूरे प्रकरण में जनता ठगी की ठगी रह जाती है क्योंकि सड़क पर ना उसे अवैध पार्किंग से निजात मिलती है और ना ही जाम से। आख़िर क्यों?
उम्मीद करनी चाहिए कि आसिफ़ मो. खान जैसे राजनेता एवं पूर्व विधायक और पार्षद आरिबा खान की ये मुहीम शायद आम लोगों को जागरूक करने के साथ -साथ पार्किंग माफियाओं पर भी लगाम लगाने में मददगार साबित होगी और साथ ही दिल्ली वालों को जाम से निजात भी मिल सकेगी।
-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी, Follow via Twitter @shahidsiddiqui