जर्मन युद्धपोत ‘बायर्न’ अपने आख़िरी पड़ाव पर भारत पहुँचा, चीन-जर्मनी रिश्तों पर क्या होगा असर !

पर्यटन व पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे के साथ जर्मनी के राजदूत लिंडनर। (फ़ोटो स्रोत- ट्विटर @AmbLindnerIndia)

मुंबई– हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र को लेकर जर्मनी की नीति की घोषणा के बाद आख़िरकार शुक्रवार को जर्मनी का युद्धपोत ‘बायर्न’ मुंबई पहुँच गया। इसे इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती महत्वाकांक्षाओं के खिलाफ एक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

देश में कोविड की तीसरी लहर को देखते हुए इस जहाज को वर्चुअल तरीके से लोगों को दिखाई जाएगी। जर्मनी के इस बैयर्न युद्धपोत की मुंबई में जर्मनी के भारत स्थित राजदूत वाल्टर जे लिंडनर और महाराष्ट्र सरकार के प्रोटोकॉल, पर्यटन व पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे ने अगवानी की।

अब यह पोत मुंबई तट पर डेरा डालेगा। भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखलंदाजी के चलते जर्मनी ने इसे क्षेत्र में भेजा है।

इसे जर्मनी ने साल २०२१ अगस्त में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में “गश्त और प्रशिक्षण” के एक अभियान पर भेजा था। उसके बाद दक्षिणी चीन सागर में प्रवेश कर यह करीब २० सालों में ऐसा करने वाला पहला जर्मन युद्धपोत बन गया था। २०२१ में जब ‘बायर्न’ को इस इलाके में भेजा गया था तब उस समय की सरकार ने यह स्पष्ट कहा था कि इस मिशन के जरिए देश यह संदेश देना चाहता है कि वो इस इलाके को लेकर चीन के दावों को नहीं मानता। और भी कई देश चीन के इन दावों को खारिज करते रहे हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जापान, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं, जो प्रशांत क्षेत्र में चीन के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए अपनी गतिविधियों का विस्तार कर रहे हैं।

जर्मनी के राजदूत लिंडनर ने मुंबई में इस मौके पर कहा कि हमें इस क्षेत्र में मुक्त समु्द्री मार्ग चाहिए। प्रशांत क्षेत्र में शांति जरूरी है। क्षेत्र के सभी ३२ देशों को अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानूनों का पालन करना चाहिए। ठाकरे ने कहा कि जर्मनी के युद्धपोत की अगवानी करना सम्मान की बात है। दोनों देशों के संबंध बहुत अच्छे हैं। हमारे लिए यह महत्वपूर्ण है कि हम एक देश के रूप में दुनिया को स्वतंत्रता, लोकतंत्र व स्थिर समुद्री रास्ते कायम रखने का संदेश दें।

मुंबई रवाना होने से पहले मीडिया से बातचीत के दौरान राजदूत वाल्टर जे लिंडनर ने युद्धपोत के भारत आगमन पर कहा, “यह भारत के साथ जर्मनी के मजबूत संबंध और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बढ़ते महत्व, राजनीतिक और आर्थिक रूप से” को दर्शाता है। जर्मनी और भारत दोनों व्यापारिक राष्ट्र हैं और व्यापार के माध्यम से अपने जीएनपी (सकल राष्ट्रीय उत्पाद) का एक बड़ा हिस्सा उत्पन्न करते हैं। मुक्त व्यापार, खुले समुद्री मार्गों पर आधारित और नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए सम्मान और हिमायत, बहुत सारे रोजगार पैदा करता है। इसलिए जर्मनी के समुद्री हित निहित हैं जो हम भारत के साथ साझा करते हैं।”

बातचीत के दौरान चीन से रिश्ते को लेकर भी एक सवाल के जवाब में लिंडनर ने बताया, “मूल्यों के साथ-साथ हितों में भी हमारे बीच काफी मतभेद हैं।” “यह स्पष्ट है कि हम तब बोलेंगे जब नेविगेशन की स्वतंत्रता और इस नियम-आधारित प्रणाली पर सवाल उठाया जाएगा या परीक्षण किया जाएगा। देशों को सत्ता के कानून को कानून की शक्ति के ऊपर नहीं रखना चाहिए।”

उन्होंने आगे कहा, “जर्मनी के साथ-साथ यूरोपीय संघ के लिए, चीन कुछ पहलुओं में एक प्रमुख भागीदार है। व्यापार संबंध मजबूत रहे हैं और आगे भी रहेंगे। इसके अलावा, आपको जलवायु परिवर्तन जैसी कुछ सबसे अधिक दबाव वाली वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए चीन की आवश्यकता है। लेकिन, निस्संदेह, चीन एक आर्थिक प्रतियोगी भी है और महत्वपूर्ण रूप से अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित प्रणाली में एक प्रणालीगत प्रतिद्वंद्वी है।”

साक्षात्कार के अंत में जर्मन राजदूत लिंडनर ने कहा, “विवादों को शांतिपूर्वक और अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर हल किया जाना चाहिए। अगर इस नियम-आधारित आदेश को चुनौती दी गई तो हम चुप नहीं रहेंगे। हम इस दृढ़ विश्वास को इस क्षेत्र के कई शक्तिशाली भागीदारों के साथ साझा करते हैं – भारत के साथ हमारे रणनीतिक साझेदार और लोकतांत्रिक मित्र के रूप में, लेकिन जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई अन्य देशों के साथ भी, जहां बायर्न ने अपनी यात्रा पर पिछले छह महीनों के दौरान पोर्ट कॉल्स भी किए।”

मालूम हो कि अगस्त २०२१ में अपनी यात्रा शुरू करने वाला जर्मन युद्धपोत ब्रैंडेनबर्ग-श्रेणी का फ्रिगेट (बैयर्न) भारत पहुंचने से पहले दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरा। इस दौरान इसने उत्तर कोरिया के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों की निगरानी में भी भाग लिया। बायर्न एक गश्ती और प्रशिक्षण मिशन पर है जिसका आख़िरी पड़ाव भारत है और फरवरी २०२२ में यह युद्धपोत जर्मनी वापस लौट जाएगा।

अब ये देखना दिलचस्प होगा कि इस युद्धपोत के भारत पहुँचने से चीन-जर्मनी रिश्तों पर क्या असर पड़ता है। पिछले साल ऐसी खबरें आई थीं कि सितंबर में ‘बायर्न’ शंघाई पोत पर रुकना चाह रहा था, लेकिन चीन ने इसकी इजाजत नहीं दी थी।

– डॉ. म. शाहिद सिद्दीक़ी
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