कनाडा चुनाव- जगमीत सिंह का चला जादू, जस्टिन ट्रूडो का देंगे साथ !

कनाडा चुनाव में इस बार भले ही जस्टिन ट्रूडो फिर सरकार बनाने में कामयाब हो गए, लेकिन असल मायने से ये चुनाव परिणाम एनडीपी के लिए उम्मीदों से भरा है।

यानि इस बार हाउस ऑफ कॉमन्स में शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए एनडीपी का साथ बेहद ज़रूरी है। मालूम हो कि इस बार जस्टिन ट्रूडो की लिबरल पार्टी को सबसे अधिक सीट १५७ मिली हैं। लेकिन यह सरकार बनाने के लिए काफी नहीं है।

बहुमत के लिए १७० का आंकड़ा चाहिए। ऐसे में भारतीय पंजाबी मूल के जगमीत सिंह के नेतृत्व वाली न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी प्रमुख भूमिका निभाने को तैयार है। इस बार न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने २५ सीटें जीती हैं और इस पार्टी के समर्थन मिलने से जस्टिन ट्रूडो एक बार फिर अपनी सरकार बना सकते हैं।

हालाँकि, इन चुनाव में एनडीपी से काफ़ी उम्मीदें थीं, लेकिन उन्हें पूरा नहीं कर पाई। २०१९ की तुलना में न्यू डेमोक्रेट्स ने इस बार अपने अभियान पर दोगुना यानि २५ मिलियन डॉलर खर्च किया था, और इसके बावजूद पहले की तुलना में सिर्फ एक सीट ही अधिक मिलीं।NDP ने २०१९ के अपने वोट शेयर १५.९८% को बढ़ाकर १७.७% कर लिया है लेकिन हाउस ऑफ कॉमन्स में उसे केवल एक अधिक सीट पर जीत मिली है।

व्यक्तिगत तौर पर जगमीत सिंह इंडो-कनाडाई लोगों के बीच एक लोकप्रिय नेता हैं और लगभग ३८% वोटों के साथ बर्नाबी साउथ से फिर से जीत हासिल कर उन्होंने यह साबित भी किया।

लेकिन, फिर भी एनडीपी को ब्लॉक क्यूबेकॉइस के पीछे कॉमन्स में चौथे स्थान से ही संतुष्ठ होना पड़ेगा। जबकि ग्रीन पार्टी को इस चुनाव में मुँह की खानी पड़ी। इसी प्रकार, मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी यानि कंज़रवेटिव पार्टी को भी वोटरों ने कुछ ख़ास समर्थन नहीं दिया।

२०१९ के मुक़ाबले इस बार सिर्फ़ २ सीटें ही ज़्यादा मिलीं।

लेकिन अगर हम पूरे चुनाव पर नज़र डालें तो ये साफ़ पता चलता है कि कनाडा के लोगों ने अपने विवेक से पार्टी के सभी नेताओं को सबक़ सिखाया है। इस चुनाव में जहां भारतीय मूल के १८ नेताओं ने जीत दर्ज की है जिनमें 16 पंजाबी मूल के हैं, वहीं 2019 चुनावों में २० भारतीय मूल के नेताओं ने जीत दर्ज की थी और इसमें से १९ पंजाबी मूल के थे।

जबकि लिबरल पार्टी के चंदरकांत आर्य एकमात्र नॉन-पंजाबी नेता हैं जिन्होंने जीत दर्ज की है। १६ पंजाबी मूल के जीते हुए नेताओं में से १४ दूसरी या उससे अधिक बार जीतने में सफल रहे हैं। २ पंजाबी नेताओं ने पहली बार जीत दर्ज की है।

रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन (वैंकूवर दक्षिण), मंत्री बर्दिश चागर (वाटरलू) और मत्री अनीता आनंद (ओकविला) सहित सभी प्रमुख पंजाबी चेहरे फिर से चुने गए हैं। पांच पंजाबी महिला अंजू ढिल्लों, रूबी सहोता, सोनिया सिद्धू, अनीता आनंद और बर्दिश चागर ने जीत दर्ज की है।

खास बात ये है कि ४४वें संसदीय चुनाव के बाद साफ है कि भारत में “मिनी पंजाब” के नाम से जाने वाले कनाडा की संसद में भारतीय-कनाडाई लोगों का एक बड़ा दल होगा। जहां इस बार भारतीय मूल के १८ उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है।

कुल मिलाकर, लिबरल पार्टी की चाल सफल रही, जिसमें जस्टिन ट्रूडो ने सिर्फ़ अपनी सत्ता ही नहीं बचाई, बल्कि मुख्य प्रतिद्वंदी पार्टी यानि कंज़रवेटिव पार्टी के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है।इस चुनाव परिणाम से एरिन ओ टूल को अपनी कुर्सी बचानी मुश्किल हो गई है। पार्टी के अंदर ही एरिन ओ टूल के ख़िलाफ़ आवाज़ें उतनी शुरू हो गई है।

अगर हम पूरे चुनाव पर नज़र डालें तो पता चलता है कि वोटरों ने इस बार काफ़ी सूझबूझ से काम लिया है।

नेतृत्व की सामूहिक विफलता के लिए सभी नेताओं को उनकी हैसियत का एहसास करा दिया है। और साथ में ये भी स्पष्ट कर दिया है कि उन्हें अब लंबे वक़्त तक चुनाव या वोट करने की इच्छा नहीं है। ऐसे में अब देखना लाज़िम है कि क्या जस्टिन ट्रूडो दूसरी पार्टियों की मदद से अपना कार्यकाल पूरा कर पाएँगे।

वैसे भी ३६ दिनों के चुनावी कैंपेन और ६०० मिलियन डॉलर के खर्चे वाले चुनाव के बाद भी कनाडा का नया हाउस ऑफ कॉमन्स पिछले से बहुत अलग नहीं दिखेगा। १५ अगस्त को मौजूदा प्रधानमंत्री और सत्तारूढ़ लिबरल पार्टी के नेता जस्टिन ट्रूडो ने मध्यावधि चुनाव का ऐलान किया था।

-डॉ. म. शाहिद सिद्दीकी

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