सुप्रीम कोर्ट ने 23 साल बाद क्यों रद्द की रेप के दोषी की सजा? जानिये क्या तर्क दिया

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को 23 साल पुराने रेप केस में आरोपी की सजा रद्द कर दी. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि घटना के वक्त पीड़िता बालिग थी और दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बने थे. जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस सी.टी. रवि कुमार और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में नाकाम रहा की घटना के वक्त लड़की की उम्र 16 साल से कम थी.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा कि जहां तक बात रेप की है, हमें ऐसा कोई सबूत नहीं मिला जिससे साबित होता हो कि याचिकाकर्ता और आरोपी के बीच शारीरिक संबंध बने, भले ही यह आपसी सहमति से हुआ या गैर सहमति से. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने पीड़िता की उम्र की ढंग से जांच ही नहीं की. उम्र का पता स्कूल रजिस्टर और ट्रांसफर सर्टिफिकेट से चलता, लेकिन न्यायालय के सामने यह रखा ही नहीं गया.

कोर्ट ने कहा- मां का पक्ष भी यही
अदालत ने कहा मेडिकल रिपोर्ट में भी पीड़िता की उम्र 16 साल बताई गई है. उसकी मां का वर्जन भी यही है और खुद लड़की को 16 साल का बताया है. कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की उम्र 16 साल से कम रही होती, तब सहमति वाले बिंदु को नजरअंदाज किया जा सकता था और रेप का मामला बनता, लेकिन मेडिकल रिपोर्ट से पता लगता है कि घटना के वक्त लड़की की उम्र 16 साल से ज्यादा थी. बता दें कि साल 2012 में सहमति की उम्र (Age of Consent) 16 से बढ़ाकर 18 साल की गई थी.

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने तीखी टिप्पणी भी की. कहा, ‘रेप का झूठा आरोप किसी के अपमान और नुकसान की वजह बन सकता है…’

क्या है पूरा वाकया?
पूरा वाकया साल 2000 का है. ‘बार एंड बेंच’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक घटना पीड़िता की बहन के ससुराल में हुई थी. पहले तो परिवार वालों ने पीड़िता और आरोपी की शादी कराने की कोशिश की. बाद में आरोपी के परिजनों ने यह कहते हुए इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया कि लड़की उम्र महज 16 साल है. इसके बाद आरोपी के खिलाफ आपराधिक मुकदमा दर्ज कराया गया था.

ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को रेप का दोषी माना और 7 साल के सश्रम कारावास की सजाई थी. बाद पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट (Punjab and Haryana High Court) ने भी सजा को बरकरार रखा. इसके बाद आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

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