संसद में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर तीखी बहस: सवाल भी बड़े, संदेश भी साफ

नई दिल्ली की संसद में मंगलवार का दिन किसी युद्ध के मोर्चे से कम नहीं था। ‘ऑपरेशन सिंदूर’, जो कि पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में भारत की सैन्य कार्रवाई थी—उस पर चर्चा ने माहौल को और गरमा दिया। संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बीच तीखा टकराव हुआ। इस बहस में सिर्फ राजनीति नहीं, बल्कि सैन्य नीति, कूटनीति और नेतृत्व की पारदर्शिता को लेकर गंभीर सवाल उठे।

राहुल गांधी ने सरकार पर बड़ा आरोप लगाया कि भारतीय वायुसेना को ‘बांधकर’ लड़ाई में भेजा गया। उन्होंने कहा कि सेना को पूरा राजनीतिक समर्थन नहीं दिया गया और उन्हें पहले से ही यह निर्देश थे कि पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम को न छूएं। उन्होंने कहा, “सेना ने कोई गलती नहीं की, गलती राजनैतिक नेतृत्व ने की।” राहुल ने यहाँ तक कह दिया कि “CDS अनिल चौहान को खुलकर बोलना चाहिए कि उनके हाथ बंधे हुए थे।”

राहुल ने चेतावनी भरे अंदाज़ में कहा, “अगर आप युद्ध करते हैं, तो पूरी ताकत और आज़ादी के साथ कीजिए। आधे मन से लड़ने से नुकसान हमारा ही होता है।”

प्रधानमंत्री मोदी ने इन आरोपों को पूरी तरह खारिज करते हुए कहा कि भारत ने पाकिस्तान को ऐसा सबक सिखाया कि “आतंक के आका आज भी रातों को चैन से नहीं सो पा रहे।” उन्होंने बताया कि अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से उनकी बातचीत हुई थी, और उन्होंने दो टूक कहा था, “अगर पाकिस्तान गोली चलाएगा, तो हम तोप चलाएंगे।”

मोदी ने जोर देकर कहा कि ऑपरेशन सिंदूर को रोकने या धीमा करने का आदेश किसी भी देश ने नहीं दिया था। इसके साथ ही उन्होंने कांग्रेस पर पुराने ऐतिहासिक फैसलों को लेकर जमकर निशाना साधा। प्रधानमंत्री ने कहा कि नेहरू ने पाकिस्तान को सिंधु नदी का 80% पानी दिया, PoK को युद्ध के बाद वापस नहीं लिया, और 1971 में 90,000 पाकिस्तानी कैदियों को छोड़ दिया, बिना किसी रणनीतिक सौदे के।

उन्होंने तंज कसा, “जो लोग आज पूछ रहे हैं कि PoK कब लाएंगे, पहले वो जवाब दें कि PoK जाने कैसे दिया?”

लेकिन पीएम मोदी की ये बातें भी संसद के बाहर की रणनीतिक बहस को नहीं रोक पाईं। सूत्रों के मुताबिक अमेरिका, यूएई और रूस को इस हमले की जानकारी दी गई थी—हालांकि सलाह नहीं ली गई। कुछ राजनयिकों का कहना है कि यह हमला सीमित था, और इसका मकसद एक तय सीमा तक जाकर शांति बहाल करना था ताकि BRICS सम्मेलन से पहले माहौल बिगड़े नहीं।

कुछ रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों ने कहा कि सेना को कुछ खास लक्ष्यों तक ही सीमित रखा गया था। “हमें बताया गया था कि क्या करना है, लेकिन ये भी साफ था कि क्या नहीं करना है,” एक पूर्व एयर मार्शल ने कहा। इससे ये सवाल उठता है, क्या यह ऑपरेशन एक सख्त संदेश था, या सिर्फ राजनीतिक दिखावा?

इस बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी दावा कर दिया कि उन्होंने भारत-पाक युद्ध को रोकने में भूमिका निभाई। भारत सरकार ने उनके बयान को “कहानी” कहकर खारिज कर दिया, लेकिन इससे एक बार फिर ये सवाल खड़े हो गए कि आखिर ऑपरेशन के बाद अचानक युद्धविराम का फैसला कैसे हुआ?

राहुल गांधी का यह बयान कि CDS खुलकर बोलें, यह सिर्फ राजनीतिक बयान नहीं था, बल्कि ये सवाल है कि क्या सेना को पूरी आज़ादी मिली? या फिर उन्हें सिर्फ राजनीतिक इशारों के तहत सीमित ऑपरेशन के लिए भेजा गया?

भारत आज एक उभरती शक्ति है, जिसे चीन, पाकिस्तान और पश्चिमी दुनिया तीनों गंभीरता से देख रहे हैं। ऐसे में अगर हम कोई सैन्य संदेश दें, तो वह आधा-अधूरा या अस्पष्ट न हो। अगर ऑपरेशन सिंदूर आतंकवादियों को चेतावनी थी, तो संसद में हो रही बहस देश के नागरिकों के लिए एक इम्तहान है—क्या हमारे फैसले पारदर्शी हैं? क्या सेना और राजनीति में भरोसे की मजबूत दीवार है?

संसद की यह बहस सिर्फ दलों की लड़ाई नहीं थी। यह तय करने की लड़ाई है कि भारत की सुरक्षा नीति में जनता का भरोसा कितना गहरा है। यह जरूरी है कि राजनीति के कोहरे में रणनीति का रास्ता न गुम हो।

-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via X  @shahidsiddiqui

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