काठमांडू/नई दिल्ली: नेपाल के पुराने और अनुभवी नेता के.पी. शर्मा ओली को आखिरकार कुर्सी छोड़नी पड़ी। वजह थी भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के खिलाफ भड़का जनआंदोलन, जिसमें 19 लोगों की जान चली गई। यह सिर्फ नेपाल का संकट नहीं है, बल्कि दक्षिण एशिया की राजनीति में एक बड़ा मोड़ है, जहाँ भारत और चीन दोनों नेपाल को अपने पाले में खींचना चाहते हैं।
वैसे तो नेपाल की कहानी अब पुराने नेताओं और नई पीढ़ी के बीच संघर्षपूर्ण हो गई है। नेपाल की कुल आबादी में से करीब 63% लोग 35 साल से कम उम्र के हैं। काम न मिलने की वजह से 35 लाख से ज्यादा नेपाली खाड़ी देशों और मलेशिया जैसे देशों में नौकरी करने जाते हैं। उनके भेजे पैसों से ही नेपाल की आर्थिक व्यवस्था का 24% चलता है।
ऐसे हालात में जब ओली ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बंद करने का ऐलान किया, तो युवाओं के गुस्से ने आग पकड़ ली। उनके लिए यह सिर्फ फेसबुक या टिकटॉक की बात नहीं थी, बल्कि अपनी आवाज उठाने और सवाल पूछने के अधिकार की बात थी। यही से “जनरेशन Z आंदोलन” शुरू हुआ, जिसने ओली की सरकार की नींव हिला दी।
हालांकि, ओली की हार सिर्फ नेपाल की राजनीति का मुद्दा नहीं है। यह भारत और चीन की खींचतान से भी जुड़ा है। नेपाल हमेशा से इन दोनों के बीच बफर स्टेट की तरह रहा है। 2015 में जब भारत-नेपाल सीमा पर नाकाबंदी हुई और पेट्रोल-औषधियों की भारी कमी हो गई, तब ओली ने चीन का रुख किया। उन्होंने चीन के साथ समझौता कर नेपाल को चीनी बंदरगाहों से जोड़ दिया और बाद में नेपाल को चीन की बेल्ट एंड रोड योजना (BRI) का हिस्सा भी बनाया।
गौरतलब है कि भारत का नेपाल से रिश्ता गहरा और पुराना है। खुली सीमाएँ, सांस्कृतिक रिश्ते और 60 लाख से ज्यादा नेपाली भारत में रहते और काम करते हैं। लेकिन ओली के राज में रिश्ते बिगड़े, खासकर जब उन्होंने 2020 में नया नक्शा जारी कर दिया, जिसमें लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया। यह कदम नेपाल में तो लोकप्रिय हुआ, लेकिन भारत का भरोसा डगमगा गया।
अब जब ओली चले गए हैं, नेपाल फिर से दिशाहीन हो गया है। वहीं भारत के लिए भी यह नाजुक वक्त है। मोदी सरकार ने “पड़ोसी पहले” की नीति अपनाई है, और काठमांडू की अस्थिरता इस नीति को कमजोर कर सकती है। ओली के इस्तीफे के कुछ ही घंटे बाद मोदी ने सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमिटी (CCS) की बैठक बुलाई और कहा, “नेपाल की शांति और स्थिरता हमारे लिए सबसे अहम है।” यह चिंता साफ दिखाती है कि भारत को डर है कहीं चीन इस मौके का फायदा न उठा ले।
चीन भी पीछे हटने वाला नहीं है। नेपाल उसके लिए हिमालयी रणनीति का अहम हिस्सा है। तिब्बत से काठमांडू तक रेल लाइन जैसी बड़ी योजनाएँ चीन के सपनों में शामिल हैं। लेकिन नेपाली जनता अब चीनी प्रोजेक्ट्स में फैले भ्रष्टाचार और बंद दरवाजों के सौदों से नाराज है। इसलिए कई लोग मानते हैं कि ओली की गिरावट चीन के लिए भी एक झटका है।
वहीं दूसरी तरफ़, अमेरिका भी चुपचाप नेपाल में हाथ आजमा रहा है। उसने एमसीसी (मिलेनियम चैलेंज कारपोरेशन) योजना लाई, ताकि चीन की BRI का तोड़ दिया जा सके। लेकिन नेपाल की अस्थिर राजनीति इन अमेरिकी योजनाओं को भी अटका सकती है।
इसके अलावा नेपाल की अर्थव्यवस्था भी खराब हालत में है। एशियन डेवलपमेंट बैंक का कहना है कि 2024 में नेपाल की GDP सिर्फ 3.3% बढ़ेगी, जो पूरे दक्षिण एशिया में सबसे कम है। महंगाई करीब 7% है। ऐसे में जनता का गुस्सा इस बात पर है कि सरकार न तो रोजगार देती है, न ठीक से काम करती है, और ऊपर से विरोध करने की आज़ादी भी छीनती है।
अब नेपाल का भविष्य उसके लोकतांत्रिक संस्थानों की असली परीक्षा लेगा। समाचार लिखने तक राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल के भी इस्तीफे की खबरें आ रही हैं, उड़ानों का रुकना, सेना की तैनाती और ओली के घर को आग लगाकर लोगों का जश्न, यह सब बताता है कि देश खतरनाक मोड़ पर खड़ा है। और ये भारत के लिए चुनौती है कि नेपाल को संभाले लेकिन ज़्यादा हावी न दिखे।
पिछली गलतियाँ, जैसे 1989 की नाकाबंदी या 2015 का संकट, दोहराए गए तो जनता और गुस्सा होगी और चीन को मौका मिलेगा। इस बार भारत को नरम और दोस्ताना रास्ता अपनाना होगा, सांस्कृतिक रिश्तों और आर्थिक सहयोग से विश्वास जीतना होगा।
उधर चीन के लिए भी सबक है, सिर्फ नेताओं से सौदे कर लेना काफी नहीं होता। जनता की नब्ज पकड़ना भी जरूरी होता है, वरना उसकी योजनाएँ अधूरी रह जाएँगी।
असल में, ओली की गद्दी से गिरना सिर्फ एक नेता की हार की कहानी नहीं है। यह नेपाल की उस जंग की कहानी है जो एक ओर पुरानी पीढ़ी और दूसरी ओर नई पीढ़ी के बीच है। यह लोकतंत्र और तानाशाही के बीच है। और यह भारत और चीन की खींचतान के बीच है।
ओली का जला हुआ घर शायद एक निशानी है, पुराने दौर के खत्म होने की और एक नए, अनिश्चित दौर की शुरुआत की, जहाँ भारत, चीन और नेपाल की युवा पीढ़ी – तीनों की भूमिका बहुत अहम होगी।
-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via X @shahidsiddiqui