आज अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस है। हर साल की तरह इस साल भी खास थीम ‘बैलेंस फॉर बेटर’ के साथ इंटरनेशन वुमेन्स डे को सेलिब्रेट किया जा रहा है। लेकिन, क्या आप जानते हैं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है? और भारत में किसी भी महिला को कितने अधिकार हैं?
आइए सबसे पहले जानते हैं ये दिवस सबसे पहले कहां और क्यों मनाया गया। असल में दुनिया में पहली बार महिला दिवस अमेरिका में
मनाया गया। यह साल 1909 में 28 फरवरी को सेलिब्रेट किया गया। सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने न्यूयॉर्क में 1908 में गारमेंट वर्कर्स की हड़ताल को सम्मान देने के लिए इस दिन को चुना। इसके पीछे कारण था कि इस दिन महिलाएं काम के कम घंटे और बेहतर वेतनमान के लिए अपना विरोध दर्ज करवाएं सकें। इसके बाद 28 फरवरी को ही रुसी महिलाओं ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) मनाया और यह पहले विश्व युद्ध के विरोध में किया गया। वहीं, यूरोप में 8 मार्च को पीस ऐक्टिविस्ट्स के समर्थन के लिए औरतों ने रैलियां कीं थीं। इसके बाद आधिकारिक तौर पर यूनाइटेड नेशन्स यानि संयुक्त राष्ट्र ने 8 मार्च, 1975 को पहला अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया। तभी से इस दिवस को दूसरे देशों की तरह भारत में भी बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अब आइए जानें कि घर से लेकर दफ्तर में एक भारतीय महिला के क्या हैं मुख्य अधिकार:
१- गोपनीयता का अधिकार:
आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत बलात्कार की शिकार महिला जिला मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज करवा सकती है और जब मामले की सुनवाई चल रही हो तो वहां किसी और व्यक्ति को उपस्थित होने की आवश्यकता नहीं है।
२-नि:शुल्क कानूनी सहायता का अधिकार
एक महिला को फ़्री कानूनी मदद लेने का अधिकार है और वो इसकी मांग कर सकती हैं। यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह उस महिला को मुफ्त में कानूनी सहायता मुहैया करवाए।
३-देर से भी शिकायत दर्ज करने का अधिकार
बलात्कार या छेड़छाड़ की घटना के काफी समय बीत जाने के बावजूद पुलिस एफआईआर दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकती है।
४-सुरक्षित कार्यस्थल का अधिकार
प्रत्येक ऑफिस में एक यौन उत्पीड़न शिकायत समिति बनाना नियोक्ता का कर्तव्य है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी एक दिशा-निर्देश के अनुसार यह भी जरूरी है कि समिति का नेतृत्व एक महिला करे और सदस्यों के तौर पर उसमें पचास फीसदी महिलाएं ही शामिल हों।
५-जीरो एफआईआर का अधिकार
एक महिला को ईमेल या पंजीकृत डाक के माध्यम से शिकायत दर्ज करने का विशेष अधिकार है।
६-घरेलू हिंसा से सुरक्षा का अधिकार
आईपीसी की धारा 498-ए दहेज संबंधित हत्या की निंदा करती है। इसके अलावा दहेज अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 में न केवल दहेज देने या लेने, बल्कि दहेज मांगने के लिए भी दंड का प्रावधान है। इसके अलावा घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भी महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह संबंधित मामलों में मदद करता है।
७- इंटरनेट पर सुरक्षा का अधिकार
आपकी सहमति के बिना आपकी तस्वीर या वीडियो, इंटरनेट पर अपलोड करना अपराध है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 67 और 66-ई बिना किसी भी व्यक्ति की अनुमति के उसके निजी क्षणों की तस्वीर को खींचने, प्रकाशित या प्रसारित करने को निषेध करती है। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354-सी के तहत किसी महिला की निजी तस्वीर को बिना अनुमति के खींचना या साझा करना अपराध माना जाता है।
८-समान वेतन का अधिकार
समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 समान कार्य के लिए पुरुष और महिला को समान भुगतान का प्रावधान करता है।
९-कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 मानवीयता और चिकित्सा के आधार पर पंजीकृत चिकित्सकों को गर्भपात का अधिकार प्रदान करता है। लिंग चयन प्रतिबंध अधिनियम,1994 गर्भधारण से पहले या उसके बाद लिंग चयन पर प्रतिबंध लगाता है।
१०-प्रॉपर्टी में महिलाओं का अधिकार
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 के मुताबिक लड़की चाहे कुंवारी हो या शादीशुदा, वह पिता की संपत्ति में हिस्सेदार मानी जाएगी। इतना ही नहीं उसे पिता की संपत्ति का प्रबंधक भी बनाया जा सकता है।