भारत की स्वतंत्रता-प्राप्ति से एक साल पहले, गुजरात के मध्य क्षेत्र में, एक क्रांति का जन्म हुआ, जो पोल्सन डेयरी की अनुचित व्यापार प्रथाओं के खिलाफ एक छोटे विरोध के रूप में शुरू हुई और एक विशाल आंदोलन में बदल गई, जिसने भारत के डेयरी परिदृश्य को नया स्वरुप प्रदान किया. कैरा (अब खेड़ा) जिले के किसानों ने सरदार वल्लभभाई पटेल के मार्गदर्शन में एक सहकारी समिति- कैरा जिला सहकारी दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड का गठन किया.
अमूल मॉडल का पालन करने के मूल उद्देश्य के साथ, 1965 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की स्थापना की गई थी, जिसके बाद 1973 में डॉ. वर्गीज कुरियन उर्फ मिल्क मैन ऑफ इंडिया के नेतृत्व में जीसीएमएमएफ का गठन हुआ. जीसीएमएमएफ, किसानों को लाभकारी रिटर्न और उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण उत्पाद प्रदान करने के मिशन के साथ गुजरात की डेयरी सहकारी समितियों के अग्रणी संगठन के रूप में उभरा। गुजरात में शुरू हुआ सहकारी आंदोलन न केवल भारत के लिए, बल्कि दुनिया भर के विकासशील देशों के लिए एक मॉडल बन गया।
पीएम मोदी के मुताबिक सहकारिता आंदोलन की सफलता की मिसाल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले हफ्ते ही गुजरात कोऑप मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन (जीसीएमएमएफ) के स्वर्ण जयंती समारोह में भाग लेते हुए कहा, “50 साल पहले गुजरात के गांवों ने सामूहिक रूप से जो पौधा लगाया था, वह अब बरगद का भव्य पेड़ बन गया है. आज इस विशाल बरगद के पेड़ की शाखाएं देश-विदेश तक फैल गयीं हैं.” जीसीएमएमएफ एक सहकारी दिग्गज कंपनी है, जो प्रतिष्ठित डेयरी ब्रांड- अमूल की मालिक है.
1970 में, इस सहकारी समिति ने “श्वेत क्रांति” का नेतृत्व किया, जिसने अंततः भारत को दुनिया में दूध के सबसे बड़े उत्पादक के रूप में स्थापित कर दिया. देश का महिला-कार्यबल 10 ट्रिलियन रुपये के कारोबार के साथ भारत के डेयरी क्षेत्र की अभूतपूर्व वृद्धि के पीछे की प्रेरक शक्ति है. आज अमूल को जो उल्लेखनीय सफलता मिली है, उसका श्रेय काफी हद तक महिला कार्यबल की भागीदारी को जाता है.