ट्रंप टैरिफ्स ने वैश्विक व्यापार और भू-राजनीतिक समीकरणों को पूरी तरह से झकझोर कर रख दिया है। अगस्त 2025 में घोषित किए गए टैरिफ्स का सबसे अहम और विवादित पहलू यह है कि भारत और ब्राजील पर 50% तक का आयात शुल्क लगाया गया, जो न केवल एक व्यापारिक निर्णय है, बल्कि एक व्यापक रणनीतिक संकेत भी है। यह टैरिफ सिस्टम में सिर्फ आर्थिक दबाव पैदा करने वाला कदम नहीं है, बल्कि एक गहरी भू-राजनीतिक पुनर्संरचना की दिशा में बड़े बदलाव का संकेत है। जब वैश्विक बहुपक्षीय सहयोग कमजोर हो रहा है, तब नए गठबंधनों और नीतिगत पुनर्गठन की मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर BRICS जैसे आर्थिक और रणनीतिक मंचों के लिए यह एक निर्णायक क्षण बन चुका है।
ट्रंप प्रशासन ने अपने इन टैरिफ्स को ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के नाम पर जायज ठहराया है, लेकिन कई विश्लेषक इसे अमेरिका की बढ़ती संरक्षणवादी नीति और ‘अमेरिका फर्स्ट’ एजेंडे का विस्तार मानते हैं। यह नीति परंपरागत बहुपक्षीय समझौतों और सहयोग की भावना के बिल्कुल विपरीत है। ऐसे में, भारत, जिसकी छवि अमेरिका का एक मजबूत आर्थिक और सामरिक साझेदार होने की रही है, को भी व्यापारिक दबाव के दायरे में लाया जाना यह स्पष्ट करता है कि ट्रंप का रुख सहयोग की बजाय प्रतिस्पर्धा और प्रभुत्व की ओर अधिक झुका हुआ है।
भारत पर लागू किए गए टैरिफ दो चरणों में सामने आए। पहला चरण 7 अगस्त 2025 से प्रभावी हुआ, जिसमें 25% शुल्क लगाया गया। तीन सप्ताह बाद इसमें 25% और जोड़ दिए गए, जिससे कुल टैरिफ 50% तक पहुंच गया। यह भारत के लिए केवल आर्थिक नहीं, बल्कि व्यापक रणनीतिक चुनौती भी है। भारत ने इस चुनौती का सामना केवल पारंपरिक टकराव के रास्ते से नहीं किया, बल्कि एक बहुआयामी रणनीति के जरिए संतुलन और दबाव दोनों को साधा।
भारत ने सबसे पहले ऊर्जा के मोर्चे पर रणनीतिक दांव चला। अगस्त के पहले सप्ताह में भारत ने अमेरिका से कच्चे तेल का आयात लगभग 50% बढ़ाकर 2.71 लाख बैरल प्रतिदिन कर दिया, जो पिछले वर्ष के औसत 1.80 लाख बैरल से कहीं अधिक है। जुलाई तक अमेरिका की हिस्सेदारी भारत के कुल तेल आयात में 8% तक पहुंच चुकी थी। इससे यह संदेश गया कि भारत अमेरिकी ऊर्जा निर्यात का एक अहम ग्राहक है। यदि ट्रंप भारत पर व्यापारिक दबाव बनाते हैं, तो यह समझना भी जरूरी है कि भारत उनके ऊर्जा निर्यात लक्ष्यों के लिए भी केंद्रीय भूमिका निभाता है।
इसके साथ ही, भारत ने कुछ संवेदनशील अमेरिकी उत्पादों जैसे कि आईटी हार्डवेयर और फार्मास्यूटिकल्स पर आयात शुल्क को कम कर दिया, जिससे करीब 23 अरब डॉलर का व्यापार सुरक्षित रहा। यह नीति भारत के व्यापार संतुलन और समझदारी का संकेत है कि वह टकराव नहीं, सहयोग और लचीलेपन के जरिए अपने हितों की रक्षा कर सकता है।
इस बीच भारत ने BRICS मंच पर अपने कूटनीतिक प्रयास तेज कर दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्राजील के राष्ट्रपति लूला दा सिल्वा के बीच हुई हालिया वार्ता इस बात का स्पष्ट संकेत है कि यह संकट केवल व्यापारिक नहीं, बल्कि बहुपक्षीय भू-राजनीतिक चुनौती है। दोनों नेताओं ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और $20 अरब के क्षेत्रीय व्यापार समझौते की दिशा में सहमति बनाई।
ब्राजील के राष्ट्रपति लूला ने ट्रंप की नीति को ‘अपमानजनक’ करार दिया और स्पष्ट किया कि वह अमेरिका से ऐसे किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं हैं जो ब्राजील की संप्रभुता को नुकसान पहुंचाए। ब्राजील ने चीन और भारत के साथ मिलकर क्षेत्रीय व्यापार व्यवस्था को गति दी है और अमेरिका के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (WTO) में औपचारिक शिकायत भी दर्ज कराई है। इससे यह संकेत मिला कि ब्राजील इस संघर्ष को केवल राजनीतिक बयानबाजी तक सीमित नहीं रखना चाहता, बल्कि इसे वैश्विक संस्थानों में चुनौती देने के लिए भी तैयार है।
चीन और रूस ने ट्रंप की टैरिफ नीति को “नव-उपनिवेशवाद” करार दिया है और BRICS के भीतर स्थानीय मुद्राओं में व्यापार को प्राथमिकता देने की रणनीति को दोहराया है। रूस पहले ही चीन और ईरान के साथ स्थानीय मुद्राओं में व्यापार कर रहा है और भारत के साथ भी इस दिशा में सक्रिय चर्चा जारी है। यदि इन प्रयासों को सफलता मिलती है, तो डॉलर पर आधारित मौजूदा वैश्विक व्यापार प्रणाली को गंभीर चुनौती मिल सकती है।
BRICS की भविष्य की रणनीति को लेकर सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या यह संगठन आंतरिक मतभेदों को पीछे छोड़कर एकजुट रह पाएगा? भारत और चीन के बीच सीमा विवाद, रूस पर पश्चिमी प्रतिबंध, और ब्राजील की घरेलू राजनीति जैसी चुनौतियाँ BRICS की सामूहिक क्षमता को सीमित कर सकती हैं। लेकिन हाल की BRICS मंत्रणा में भारत की बढ़ी हुई भागीदारी यह दर्शाती है कि भारत अब केवल सहभागी नहीं, बल्कि नीतियों के निर्माण में नेतृत्वकारी भूमिका निभाना चाहता है।
BRICS देशों के बीच संयुक्त वक्तव्य जारी कर अमेरिकी संरक्षणवाद की आलोचना, क्षेत्रीय भुगतान प्रणालियों का निर्माण, साझा मुद्रा ‘BRIX’ या ‘BRICS क्राउन’ की व्यवहारिकता पर अध्ययन, और रणनीतिक क्षेत्रों में संयुक्त आपूर्ति श्रृंखला प्लेटफॉर्म विकसित करने जैसे मुद्दों पर गंभीर विचार-विमर्श हो रहा है। ये सभी रणनीतियाँ ट्रंप के टैरिफ नीति के जवाब में अधिक प्रासंगिक हो गई हैं।
हालांकि, इन रणनीतियों को लागू करना आसान नहीं होगा। भारत-चीन प्रतिद्वंद्विता, रूस के खिलाफ प्रतिबंधों की स्थिति और ब्राजील की राजनीतिक अस्थिरता जैसे तत्व BRICS की एकजुटता में बाधा डाल सकते हैं। फिर भी ट्रंप की आक्रामक नीति ने इन देशों को अस्थायी रूप से ही सही, साझा मंच पर सक्रिय भागीदारी की दिशा में मजबूर कर दिया है।
इन टैरिफ्स का असर अमेरिका के अंदर भी महसूस किया जाएगा। भारत से आयात होने वाली सस्ती जेनेरिक दवाइयाँ, आईटी हार्डवेयर, वस्त्र और खाद्य उत्पाद अब अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए महंगे हो जाएंगे। इससे अमेरिकी मध्यम वर्ग पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। वहीं यूरोपीय संघ, जापान, ब्रिटेन और दक्षिण कोरिया जैसे देशों ने अमेरिका के साथ विशेष टैरिफ समझौते कर लिए हैं, जिससे इन देशों की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति बेहतर हो जाएगी और BRICS देशों को नुकसान होगा।
यह सच है कि ट्रंप की नीति अमेरिका को अल्पकालिक लाभ दे सकती है, लेकिन दीर्घकालिक स्तर पर यह नीति वैश्विक शक्ति-संतुलन को बदल सकती है। BRICS यदि संगठित रहता है और अपनी रणनीतियों को लागू करता है, तो यह न केवल आर्थिक बल्कि राजनीतिक शक्ति के रूप में भी उभर सकता है।
भारत के लिए यह समय बेहद निर्णायक है। जिस तरह से भारत ने ऊर्जा संतुलन, व्यापार नीति में लचीलापन और BRICS मंच पर सक्रिय कूटनीति का प्रदर्शन किया है, वह यह बताता है कि भारत वैश्विक दक्षिण के नेता के रूप में उभरने की क्षमता रखता है। यह संघर्ष केवल BRICS का नहीं है, बल्कि बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर बढ़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक मौका है।
ट्रंप की आक्रामक नीतियाँ, चाहे वह संरक्षणवाद के नाम पर हो या ‘अमेरिका फर्स्ट’ के तहत, वैश्विक दक्षिण के देशों को अपनी आवाज़ एकजुट करने की नई प्रेरणा दे रही हैं। भारत इस पूरे परिदृश्य में एक केंद्रीय खिलाड़ी है, जो न केवल अपने लिए रणनीतिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, बल्कि BRICS जैसे मंचों को अधिक प्रभावशाली और व्यवहारिक बनाने की दिशा में भी नेतृत्व कर रहा है।
ट्रंप के 50% टैरिफ नीतियाँ BRICS और भारत के लिए जहां गंभीर चुनौती हैं, वहीं यह एक नई वैश्विक भूमिका की संभावनाएं भी खोलती हैं। भारत का संतुलित, बहुआयामी दृष्टिकोण और BRICS के भीतर संवाद व समन्वय की तीव्रता, ग्लोबल साउथ की एक संगठित और वैकल्पिक आर्थिक-सामरिक शक्ति के रूप में उभरने की प्रक्रिया को गति दे सकती है। यह केवल व्यापारिक मसला नहीं है, बल्कि आने वाली वैश्विक व्यवस्था का खाका भी तैयार कर रहा है।
-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via X @shahidsiddiqui