सिंगापुर के प्रधानमंत्री लॉरेंस वोंग का नई दिल्ली दौरा उम्मीद से कहीं ज़्यादा अहम साबित हुआ। हैदराबाद हाउस में हुई बातचीत सिर्फ़ औपचारिक कूटनीति नहीं थी, बल्कि एशिया की बदलती रणनीतिक तस्वीर को नई दिशा देने की शुरुआत थी। भारत और सिंगापुर, जो गहरे ऐतिहासिक रिश्तों से जुड़े हैं, अब साझेदारी को अगले स्तर पर ले जाकर भविष्य के लिए एक व्यापक एजेंडा तय कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वोंग का स्वागत करते हुए कहा, “आज हमने अपनी साझेदारी का एक विस्तृत रोडमैप तय किया है। हमारा सहयोग अब सिर्फ़ पारंपरिक क्षेत्रों तक सीमित नहीं रहेगा। एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग, ग्रीन शिपिंग, स्किलिंग, न्यूक्लियर एनर्जी और अर्बन वॉटर मैनेजमेंट जैसे नए क्षेत्र अब हमारे सहयोग के केंद्र होंगे।” मोदी के शब्द साफ़ इशारा कर रहे थे कि दोनों देश अब कहीं बड़ी महत्वाकांक्षा के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
इस मुलाक़ात का सबसे बड़ा नतीजा सिंगापुर का भारत की मलक्का जलडमरूमध्य पेट्रोलिंग में दिलचस्पी को औपचारिक रूप से मान्यता देना रहा। यह वही समुद्री रास्ता है जहाँ से दुनिया का एक-तिहाई व्यापार और एशिया की ऊर्जा आपूर्ति गुजरती है। भारत के अंडमान-निकोबार द्वीप इसके बिलकुल पास हैं। ऐसे में मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड और सिंगापुर के साथ भारत का शामिल होना स्वाभाविक है और इंडो-पैसिफिक सुरक्षा ढाँचे में उसकी भूमिका को और मज़बूत करता है। विदेश मंत्रालय के सचिव पी. कुमारण ने भी कहा कि भारत उम्मीद करता है कि मौजूदा पेट्रोलिंग देशों के साथ तालमेल बने और सभी मिलकर काम करें।
लेकिन बात सिर्फ़ समुद्र तक सीमित नहीं रही। इस दौरे में छह बड़े समझौते (MoUs) हुए। इनमें डिजिटल एसेट इनोवेशन, ग्रीन और डिजिटल शिपिंग कॉरिडोर, नागरिक उड्डयन में शोध और ट्रेनिंग, और एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग में स्किल डेवलपमेंट शामिल हैं। इसके अलावा नवी मुंबई में PSA इंटरनेशनल द्वारा बनाए गए भारत-मुंबई कंटेनर टर्मिनल के दूसरे चरण का उद्घाटन हुआ। पीएम मोदी ने इसे सिर्फ़ एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि “भविष्य की सप्लाई चेन का दरवाज़ा” बताया।
सेमीकंडक्टर सहयोग को भी नई अहमियत मिली। सिंगापुर ने भारत में निवेश और डिज़ाइन व फ़ैब्रिकेशन के लिए क्लस्टर बनाने में दिलचस्पी दिखाई। यही नहीं, डिजिटल एसेट इनोवेशन का समझौता दोनों देशों को फिनटेक की नई दुनिया में और मज़बूत साझेदार बनाएगा। चेन्नई में एडवांस्ड मैन्युफैक्चरिंग के लिए नेशनल सेंटर ऑफ़ एक्सीलेंस बनाने पर भी सहमति बनी। प्रधानमंत्री वोंग ने कहा, “अनिश्चित दुनिया में भारत–सिंगापुर साझेदारी भरोसे और साझा मूल्यों पर आधारित है। हम मिलकर वे नई स्किल्स और टेक्नोलॉजी बनाएँगे जो भविष्य की अर्थव्यवस्था को मज़बूत करेंगी।”
नागरिक उड्डयन में भी दोनों देशों ने सहयोग बढ़ाने का फ़ैसला किया, ख़ासकर MRO (मेंटेनेंस, रिपेयर और ओवरहॉल) सेवाओं में। सिंगापुर की विशेषज्ञता और भारत के संसाधन मिलकर देश को क्षेत्रीय हब बना सकते हैं।
सुरक्षा को लेकर भी दोनों देश पूरी तरह एकमत दिखे। प्रधानमंत्री मोदी ने पहलगाम हमले पर संवेदना जताने के लिए वोंग का धन्यवाद किया और FATF जैसे मंचों पर मिलकर आतंकवाद की फंडिंग रोकने का संकल्प दोहराया।
मोदी ने सिंगापुर को भारत की “एक्ट ईस्ट पॉलिसी का महत्वपूर्ण स्तंभ” बताया। वहीं वोंग ने कहा कि सिंगापुर की कंपनियाँ भारत में सस्टेनेबल इंडस्ट्रियल पार्क, सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन और डिजिटल व मैरिटाइम कनेक्टिविटी में निवेश करने को तैयार हैं। उनका संदेश साफ़ था, भारत को सिर्फ़ बाज़ार नहीं, बल्कि भविष्य की अर्थव्यवस्था गढ़ने वाला साझेदार माना जा रहा है।
यह दौरा ऐसे समय हुआ है जब इंडो-पैसिफिक में शक्ति संतुलन की खींचतान तेज़ है। मलक्का पेट्रोलिंग में भारत की मौजूदगी और नए आर्थिक व तकनीकी समझौते इस रिश्ते को आने वाले समय के लिए मज़बूत आधार देंगे। बड़ी ताक़तों के टकराव के बीच भारत और सिंगापुर ने दिखाया है कि मिडिल पावर देश भी स्थिरता और संतुलन बना सकते हैं।
इस मुलाक़ात की असली ताक़त सिर्फ़ समझौतों की संख्या में नहीं, बल्कि दोनों नेताओं की दृष्टि में है। मोदी ने भरोसा दिलाया कि साझेदारी पारंपरिक दायरों से आगे जाएगी, और वोंग ने भरोसे को इसकी नींव बताया। यही इस रिश्ते का सार है—यह अब सिर्फ़ इतिहास पर नहीं, बल्कि भविष्य पर टिका है। मलक्का जलडमरूमध्य की पेट्रोलिंग से लेकर सेमीकंडक्टर क्लस्टर तक, नए पोर्ट टर्मिनल से लेकर स्किलिंग सेंटर्स तक भारत और सिंगापुर मिलकर अगली पीढ़ी की आर्थिक और सुरक्षा साझेदारी गढ़ रहे हैं। यह दौरा साबित करता है कि दोनों देश अब बदलती दुनिया के दर्शक नहीं, बल्कि उसे आकार देने वाले खिलाड़ी हैं।
-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via X @shahidsiddiqui