सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एहतियाती हिरासत या निवारक निरोध (Preventive detention) एक कठोर उपाय है और शक्तियों के ‘मनमाने या नियमित प्रयोग’ पर आधारित इस तरह के किसी भी कदम को शुरु में ही हतोत्साहित किया जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने एक बंदी की अपील खारिज करने वाले तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की.
चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने गुरुवार को कहा कि निवारक हिरासत की आवश्यक अवधारणा यह है कि किसी व्यक्ति की हिरासत उसे उसके किए गए किसी काम के लिए दंडित करने के लिए नहीं है, बल्कि उसे ऐसा करने से रोकने के लिए है.
पीठ ने कहा, ‘निवारक हिरासत एक कठोर उपाय है, शक्तियों के मनमाने या नियमित अभ्यास के परिणामस्वरूप हिरासत के किसी भी आदेश को शुरुआत में ही हतोत्साहित किया जाना चाहिए.’