दिल्ली शराब घाटाला मामले (Delhi liquor policy scam) में जेल में बंद दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया (Manish Sisodia) की दिवाली सलाखों के पीछे मनेगी या बाहर, इसका फैसला 30 अक्टूबर को हो जाएगा. दिल्ली आबकारी नीति केस में जेल में बंद आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 30 अक्टूबर को फैसला सुना सकता है. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच मनीष सिसोदिया की जमानत पर फैसला सुनाएगी. 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने मनीष सिसोदिया की जमानत पर फैसला सुरक्षित रख लिया था.
दरअसल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस वी एन भट्टी की पीठ ने मनीष सिसोदिया की दो अलग-अलग जमानत याचिकाओं पर उनके वकील अभिषेक मनु सिंघवी तथा केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. मनीष सिसोदिया की तरफ से वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अदालत में कहा था कि सीधे तौर पर मनीष सिसोदिया से जुड़ा कोई साक्ष्य है ही नहीं.
मनीष सिसोदिया के वकील ने कहा था कि सभी साक्ष्य दस्तावेजी प्रकृति के हैं और सिसोदिया को सलाखों के पीछे रखने की कोई जरूरत नहीं है. उनके भागने का भी कोई खतरा नहीं है. बता दे कि ईडी का आरोप यह है कि नई शराब नीति ही धोखा देने के लिए बनाई गई. जबकि सिसोदिया का कहना है कि नई नीति समितियों द्वारा विचार-विमर्श के बाद पारदर्शी तरीके से बनाई गई और तत्कालीन एलजी ने इसकी मंजूरी दी थी.
हालांकि, जांच एजेंसी ईडी ने मनीष सिसोदिया की जमानत का विरोध करते हुए कहा था कि मनीष सिसोदिया एक प्रभावशाली व्यक्ति हैं और अगर उनको जमानत दी जाती है तो केस पर इसका असर पड़ सकता है. सीबीआई ने आबकारी नीति ‘घोटाले’ में कथित भूमिका को लेकर सिसोदिया को 26 फरवरी को गिरफ्तार किया था. वह उस समय से हिरासत में हैं. वहीं, ईडी ने सीबीआई की प्राथमिकी पर आधारित धनशोधन मामले में 9 मार्च को तिहाड़ जेल में पूछताछ के बाद सिसोदिया को गिरफ्तार कर लिया था. मनीष सिसोदिया ने 28 फरवरी को दिल्ली मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया था.
दिल्ली हाईकोर्ट ने 30 मई को सीबीआई मामले में मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि उपमुख्यमंत्री और आबकारी मंत्री के पद पर रहने के नाते, वह एक ‘प्रभावशाली’ व्यक्ति हैं तथा वह गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं. उच्च न्यायालय ने धनशोधन मामले यानी मनी लॉन्ड्रिंग में तीन जुलाई को उन्हें जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि उनके खिलाफ आरोप ‘बहुत गंभीर प्रकृति’ के हैं.