सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि यदि कानूनी प्रक्रिया ‘कच्छप गति’ से आगे बढ़ती है तो न्यायिक व्यवस्था से वादकारियों का मोहभंग हो सकता है. इसके साथ ही न्यायालय ने पुराने मामलों की तेजी से सुनवाई और निपटान सुनिश्चित करने के लिए कुछ दिशानिर्देश जारी किए, जिनमें से कुछ उच्च न्यायालयों के लिए भी हैं.
न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने लंबित मामलों को लेकर राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) के देशव्यापी आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि इस मुद्दे से निपटने के लिए ‘बार एवं बेंच’ के संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता है.
पीठ ने कहा, … तो हो सकता है मोहभंग
पीठ ने कहा, ‘‘कानूनी प्रक्रिया जब कच्छप गति से आगे बढ़ती है तो वादियों का मोहभंग हो सकता है. एनजेडीजी के आंकड़ों के अनुसार, कुछ मुकदमे 50 साल से लंबित हैं और इसे लेकर हमने अपनी पीड़ा व्यक्त की है. पीठ ने पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों के कुछ पुराने मामलों का भी उल्लेख किया, जिनका 65 साल से अधिक समय में भी निपटारा नहीं हो सका है.
‘बार-बार स्थगन मांगने में सावधानी बरतनी चाहिए’
न्यायमूर्ति कुमार ने कहा, ‘‘जब (मामलों के निपटारे में) देरी जारी रहेगी, तो वादकारियों का न्यायिक प्रणाली से भरोसा उठ जाएगा.’’ पीठ ने कहा कि वादियों को बार-बार स्थगन मांगने में सावधानी बरतनी चाहिए.
लबित मामलों से निपटने के लिए दिए दिशानिर्देश
न्यायाधीशों ने लंबित मामलों से निपटने के लिए 11 दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा, ‘‘…पीठासीन अधिकारियों की अच्छाई को उनकी कमजोरी के रूप में नहीं लेना चाहिए.’’ पीठ ने कहा कि पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों की निगरानी संबंधित उच्च न्यायालयों द्वारा की जानी चाहिए.