‘सांसदों, विधायकों को सदन में बोलने की पूरी आजादी’, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अपमानजनक बयान कोई अपराध नहीं

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने संसद या विधानसभाओं में राजनीतिक विरोधियों के लिए अपमानजनक बयानों (Defamatory Statement) को आपराधिक साजिश का हिस्सा बताने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सदन के भीतर मानहानि का कार्य कोई अपराध नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के सामने एक प्रस्ताव में कहा गया था कि संसद (Parliament) और विधानसभाओं में अपमानजनक बयान सहित हर तरह के काम को कानून से छूट नहीं मिलनी चाहिए. जिससे ऐसा करने वालों के खिलाफ आपराधिक साजिश के तहत दंडात्मक कानूनों को लागू किया जा सके. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक झामुमो की विधायक सीता सोरेन के खिलाफ ‘वोट के बदले रिश्वत’ के आरोप से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की.

सीता सोरेन ने इस मामले से खुद को बरी करने के लिए दिए गए अपने तर्क में कहा कि उन्हें सदन में ‘कुछ भी कहने या वोट देने’ के लिए संविधान के अनुच्छेद 194(2) के तहत छूट हासिल है. वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने कहा कि अगर सदन में डाले गए वोट या भाषण से जुड़े किसी काम को कानूनी कार्रवाई से छूट हासिल नहीं है, तो सदस्यों को सदन के अंदर अपमानजनक भाषण देकर अन्य सदस्यों को बदनाम करने की साजिश के लिए दोषी ठहराया जाएगा. लोकसभा में एक बसपा सदस्य के खिलाफ भाजपा सांसद के हाल ही में दिए गए ‘अपमानजनक बयान’ का जिक्र करते हुए रामचंद्रन ने कहा कि वोट या भाषण से जुड़ी किसी भी चीज के लिए अभियोजन से छूट, भले ही वह रिश्वत या साजिश हो, पूरी तरह होनी चाहिए.

सदन में सदस्यों को बोलने की पूरी आजादी
वकील राजू रामचंद्रन ने कहा कि ऐसा नहीं होने पर सदन के पटल पर अपमानजनक भाषणों को लेकर संभावित साजिश के बारे में जांच होगी. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस मनोज मिश्रा की सात जजों की पीठ ने सदन के अंदर सदस्य जो कुछ भी बोलते हैं, उसके लिए सदस्यों को कानूनी कार्रवाई से पूरी छूट का हवाला देते हुए इस प्रस्ताव से असहमति जताई. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर जो करने का इरादा है वह एक अवैध काम है, तो यह एक आपराधिक साजिश है. सदन के पटल पर तथाकथित मानहानिकारक बयान एक अवैध काम नहीं है और इसे संवैधानिक रूप से कानूनी कार्रवाई से पूरी छूट हासिल है.

सदन अपमानजनक भाषणों से निपटने में सक्षम
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि इसके अलावा अगर किसी अपराध की सामग्री भाषण में ही है, जो अभियोजन से मुक्त है, तो दंडात्मक कानून के तहत कोई दायित्व नहीं हो सकता है. साफ है कि संबंधित सदन ऐसे भाषणों से निपटने के लिए सक्षम हैं. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि जो कुछ भी किसी भी कानून के तहत अपराध है, उसे सदन में आजादी से बोलने या वोट देने के लिए सांसदों को दी गई अभियोजन से छूट के तहत सहारा नहीं मिल सकता है. हालांकि उन्होंने यह तर्क देकर सीता सोरेन के मामले को अलग करने की कोशिश की कि राज्यसभा चुनाव में मतदान का सदन की कार्यवाही से कोई संबंध नहीं है. इसलिए राज्यसभा के सदस्य को चुनने के लिए मतदान के लिए कथित तौर पर ली गई रिश्वत विधायक को अभियोजन के लिए उत्तरदायी बनाएगी.

वोट के लिए रिश्वत का मामला सदन से बाहर होता है
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि रिश्वतखोरी को कभी भी अनुच्छेद 105(2) और 194(2) के तहत छूट के दायरे में नहीं लाया जा सकता क्योंकि अपराध, भले ही संसद या विधानसभा में दिए गए मतदान या भाषण से जुड़ा हो, उसे सदन के अंजाम दिया जाता है. उन्होंने कहा कि ‘एक सांसद द्वारा सदन के अंदर दूसरे सांसद को वोट देने या किसी विशेष तरीके से बोलने के लिए रिश्वत देने की दुर्लभतम घटना को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट को प्रावधानों की व्याख्या करने की जरूरत नहीं है.’ इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दो दिनों की कार्यवाही के तेजी से पूरा होने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया. सीता सोरेन पर 2012 में राज्यसभा चुनाव में एक विशेष उम्मीदवार को वोट देने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था.

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