पाकिस्तान सरकार और सेना के भीतर के तत्वों पर लंबे समय से भारत और अफगानिस्तान में जिहादी समूहों का समर्थन करने का आरोप लगाया जाता रहा है, जिसका पाकिस्तान ने हमेशा जोरदार खंडन किया है. अब अमेरिका में पूर्व पाकिस्तानी राजदूत रहे हुसैन हक्कानी ने कहा है कि बदलती दुनिया में पाकिस्तान को व्यवहारिकता की अहमियत पर जोर देना चाहिए और वैश्विक मामलों में अपने नज़रिये पर फिर से विचार करना चाहिए.
पाकिस्तान के द न्यूज के एक लेख में हक्कानी ने जोर देते हुए लिखा है कि पाकिस्तान का पिछले तीन दशकों से अंदरूनी ताकतों के साथ संघर्ष और पड़ोसी देशों के साथ जिहाद में उलझे रहने की वजह से 1991 में सोवियत संघ के पतन और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से विश्व स्तर पर हुए बड़े बदलावों को समझने के लिए जो पाकिस्तान की जो क्षमता थी उस पर बाधा उत्पन्न हुई है.
अमेरिका के साथ का नही उठाया लाभ
उन्होंनें लिखा, “1950 से 1980 के दशक तक जब अमेरिका विश्व व्यवस्था पर हावी था, ऐसे में अमेरिका का सहयोगी रहने के कारण, पाकिस्तान को उस एकध्रुवीय होने का फायदा होना चाहिए था , लेकिन पाकिस्तान में इसके बजाय, भारत के बारे में नकारात्मकता और अमेरिका-विरोध का मूर्खतापूर्ण विकल्प चुना गया, जो आजादी के बाद से राष्ट्रीय डीएनए का हिस्सा रहा है. ”
पाकिस्तान के इतर, देशों में तनाव के बावजूद आर्थिक हित अलग रहे
हक्कानी ने बताया कि अमेरिका-चीन प्रतिद्वंद्विता और चीन और भारत के बीच 1962 के सीमा युद्ध के बावजूद, इन देशों ने राजनीतिक और सुरक्षा मामलों को आर्थिक हितों से अलग रखते हुए व्यापार जारी रखा है. शी जिनपिंग के नेतृत्व में वैश्विक व्यवस्था को आकार देने में चीन की बढ़ती मजबूती को मानते हुए, उन्होंने कहा कि चीन और पश्चिम के बीच साझा आर्थिक हितों ने दोनों पक्षों के कट्टरपंथियों पर अंकुश लगाने का काम किया है, जिससे वैश्विक शांति में योगदान मिला है.
पूर्व राजदूत ने संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की व्यावहारिकता का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि, यूएई फलस्तीनी अधिकारों का मुखर समर्थक और कुछ इजरायली नीतियों का आलोचक रहा है. हालांकि, 2020 में, यूएई ने ‘अब्राहम शांति समझौते’ का नेतृत्व किया, जिससे अरब देशों और इजरायल के बीच संबंध सामान्य हुए, और दोनों पक्षों को संभावित लाभ हुआ. उनके लेख का लब्बो-लुआब यह था कि पाकिस्तान को अपना ध्यान राजनीतिक विवादों, विचारधारा, और श्रेष्ठता के भ्रम से ध्यान हटाकर शिक्षित कार्यबल, धन उत्पादन और वैश्विक परिवर्तनों को अपनाने में लगाना चाहिए.