ईरान और सऊदी अरब के बीच व्यापार फिर से शुरू हो गया है। दोनों अरब देशों ने मार्च में संबंधों को सामान्य बनाने के प्रयासों को आगे बढ़ाया है। एक ईरानी अधिकारी ने यह घोषणा की है।
मार्च में द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने के लिए तेहरान और रियाद के बीच हुए समझौते पर व्यापार मंत्री रजा फातेमी-अमीन ने मंगलवार को मीडियाकर्मियों से यह बात कही।
रविवार को, ईरान के सड़क और शहरी विकास मंत्री मेहरदाद बज्रपाश ने घोषणा की थी कि देश को हज उड़ानों के अलावा, प्रति सप्ताह दोनों देशों के बीच तीन नियमित उड़ानें शुरू करने के लिए सऊदी अरब से एक प्रस्ताव प्राप्त हुआ है।
ईरान और सऊदी अरब ने राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करने और दो महीने के भीतर दोनों देशों में दूतावासों और मिशनों को फिर से खोलने के लिए मार्च में एक समझौता किया था।
हालाँकि ऐसे में भारत के संदर्भ में ये देखना अहम हो जाता है कि खाड़ी देशों में भारत के हितों, अमेरिका की घटती दिलचस्पी और चीन के प्रभाव बढ़ाने की कोशिशों के बीच क्या बदलेगा। इस बदलते समीकरण से कितना फ़ायदा भारत जैसे देशों का होगा? ये देखना दिलचस्प होगा।
दरअसल, 6 अप्रैल को बीजिंग में आयोजित एक बैठक में, ईरानी विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियान और उनके सऊदी समकक्ष प्रिंस फैसल बिन फरहान अल सऊद ने तत्काल प्रभाव से राजनयिक संबंधों को फिर से शुरू करने की घोषणा करते हुए एक संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए थे।
How Iran and Saudi Arabia's #diplomatic breakthrough could impact India? An #Iranian official announced on Tuesday that #trade between #Tehran and Saudi Arabia has resumed. Here's the report @Iran_in_India @KSAembassyIND @IrajElahi @IndembAbuDhabi @Saudi24 #Iran #SaudiArabia pic.twitter.com/6qqvHAxZIY
— Dr. Shahid Siddiqui (@shahidsiddiqui) April 27, 2023
भारत को कितना फ़ायदा, कितना नुकसान
”दस सालों में भारत की विदेशनीति में हुए बड़े बदलावों में से एक भारत का खाड़ी देशों से बदलता रिश्ता भी है। भारत में बदली हुई सरकार के साथ इस क्षेत्र को ज़्यादा गहराई और रणनीतिक दृष्टि से देखा गया है।’’
ये कहना था भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर का, जब उनसे यूएई, सऊदी अरब समेत अन्य खाड़ी देशों के साथ भारत के बदलते रिश्तों पर सवाल पूछा गया।
भारत का खाड़ी के देशों से कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सहयोग लगातार बढ़ रहा है। ऊर्जा और सुरक्षा के क्षेत्रों में भारत इन देशों के साथ कई पक्षों पर काम कर रहा है।
अधिकतर खाड़ी देशों के साथ भारत के अच्छे संबंध रहे हैं। इस रिश्ते में सबसे अहम है तेल और गैस का कारोबार. इसके अलावा खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीयों की बड़ी संख्या और अपने घर भेजे जानी वाले पैसे भी इस रिश्ते के अहम पहलू हैं।
पिछले साल भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच ‘व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता’ (सीईपीए) हुआ है। सीईपीए संधि के तहत सामानों का कारोबार बढ़ाने के साथ सेवाओं का व्यापार और निवेश बढ़ाने पर भी ज़ोर दिया जाता है।
भारत सबसे ज़्यादा कच्चा तेल इराक़ से खरीदता है और उसके बाद सऊदी अरब का नंबर है। हालांकि, इस बीच रूस से भारत के कच्चे तेल के आयात में काफ़ी बढ़ोतरी हुई है।
ऐसे में सऊदी अरब और ईरान के बीच बदलते रिश्तों के साथ भारत की वहां भूमिका को लेकर भी चर्चा होने लगी है।
इसी चर्चा का अहम हिस्सा चीन भी है, जिसकी सऊदी और ईरान के समझौते में प्रत्यक्ष भूमिका दिख रही है।
वैसे भी इन देशों की उलझन में अमेरिका और इसराइल के हितों ने स्थितियों को और पेचीदा कर दिया है।
क्योंकि भारत के दोनों देशों से हित जुड़े हुए हैं इसलिए भारत को अपनी विदेश नीति में बेहद संतुलन बनाकर चलना पड़ा है।
लेकिन, जानकारों की मानें तो फिलहाल भारत के लिए स्थितियां थोड़ी अनुकूल दिख रही हैं क्योंकि भारत के दो दोस्त जो पहले आपसी दुश्मन थे, अब दोस्त बन रहे हैं। भारत की दुविधा कुछ कम हो सकती है।
हालाँकि,दूसरी तरफ़ जानकारों का मानना है कि भारत और खाड़ी देश के बीच भारत की व्यवस्थागत समस्याएं और राजनीतिक समीकरण भी अहम हो जाते हैं और यहां पर भारत के हाथ कुछ हद तक बंध जाते हैं।
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशिया के विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर एके पाशा कहते हैं, ”चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के ज़रिए अपना प्रभाव और व्यापार बढ़ा रहा है, जो भारत को भी करना चाहिए लेकिन भारत के पास उतनी पूंजी नहीं है जितनी चीन के पास है। चीन राजनीतिक प्रभाव भी प्रत्यक्ष तौर पर इस्तेमाल कर सकता है जो भारत नहीं करना चाहता। भारत अमेरिका और इसराइल को नाराज़ नहीं करना चाहता है. चीन ऐसा कर सकता है क्योंकि उसका अमेरिका के साथ सीधा तनाव है।’’
वहीं, जेएनयू के हीं प्रफेसर संजय के भारद्वाज कहना है कि भारत को डिलवरी करने में थोड़ा ज़्यादा समय लग जाता है क्योंकि ये एक लोकतांत्रिक देश है, चीन की तरह फ़ैसले नहीं ले सकता है।इसलिए कोई भी फ़ैसला लागू करने में देरी रहती है। इसमें चीन थोड़ा फायदा उठा लेता है।
हालांकि, अभी जानकार सऊदी अरब और ईरान के संबंधों को और परखने पर ज़ोर देते हैं। उनके मुताबिक दोनों देशों के इतिहास को देखते हुए ये बदलते रिश्ते अनिश्चितता की स्थिति मैं हैं।
-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी, Follow via Twitter @shahidsiddiqui