आखिर जिस बात का डर था वही हुआ। सरकार और कोर्ट के कई कदम उठाने के बावजूद हमने पटाखे और किसानों ने पराली जलाने से गुरेज नहीं किया और रही बची कसर हवा की धीमी गति ने पूरी कर दी। अब इस हालात के लिए जिम्मेदार सिर्फ सरकार नहीं है, क्योंकि उसने हमें और किसानों को सख्त तरीके से समझाने की पूरी कोशिश की, पर किसी ने इसकी परवाह नहीं की। जिसका नतीजा हमें वायु प्रदूषण सूचकांक और अस्पतालों में देखने को मिल रहा है।
मालूम हो कि दिवाली के तीन दिनों बाद हवा की रफ्तार में कमी की वजह से अचानक बुधवार को राष्ट्रीय राजधानी में हवा ‘खतरनाक’ स्थिति में पहुंच गई। दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) बुधवार दोपहर बाद तेजी से बिगड़ता पाया गया।
सफर इंडिया के मुताबिक, दिल्ली का एक्यूआई 423 की गणना के साथ गंभीर स्थिति में है, जो इस सीजन का सबसे अधिक है। पीएम 2.5 भी गंभीर श्रेणी में है, जबकि पीएम 10, 421 पर रहा, जो बहुत ही खराब श्रेणी में आता है।
इसकी वजह से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के अस्पतालों में मरीजों की संख्या में काफी बढ़ोतर्री पाई गई। अस्पताल पहुंचने वाले मरीजों में अधिकतर सांस की तकलीफ और आंखों की समस्याओं से घिरे लोग शामिल हैं।
गौरतलब है कि दिवाली के बाद दिल्ली में स्मॉग खासकर बच्चों में बहुत सारी चिकित्सा समस्याएं लेकर आता है। जिसकी वजह से अस्पताल में सांस और आंखों की समस्याओं वाले लोगों की संख्या में वृद्धि पाई जाती है।
एक आंकड़े के मुताबिक ओपीडी में 2०-22 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है, जहां मरीजों को आंखों और गले में जलन, शुष्क त्वचा, त्वचा की एलजीर्, पुरानी खांसी और सांस लेने में परेशानी जैसे लक्षणों का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, अस्पतालों का सुक्षाव है कि रोगियों, बुजुगोर्ं और बच्चों को घर के अंदर रहने की कोशिश करनी चाहिए।
डॉक्टरों के मुताबिक, जब भी लोगों को आंखों में लालिमा, सांस लेने में तकलीफ, बेचैनी और लगातार सिरदर्द जैसे लक्षणों का अनुभव हो तो उन्हें तुरंत डॉक्टर को दिखाना चाहिए। दिवाली के बाद दैनिक आधार पर 15-16 रोगी अस्पताल पहुंच रहे हैं, जिनमें तीन-चौथाई मामले अस्थमा और पुरानी फेफड़े की बीमारी से संबंधित हैं। हालांकि, दिवाली के बाद पहले दिन अस्पताल पहुंचने वाले मामले निश्चित रूप से पिछले साल की तुलना में कम थे, लेकिन वे सामान्य ओपीडी के मुकाबले 25 फीसदी अधिक रहे।
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर-2०19 की रिपोर्ट के मुताबिक, वायु प्रदूषण के मौजूदा उच्च स्तर में बढ़ने से दक्षिण एशियाई बच्चे का जीवनकाल दो साल और औसतन छह महीने तक कम हो सकता है। इसके अलावा वायु प्रदूषण गभार्वस्था के दौरान विशेष रूप से हानिकारक है।
सर गंगा राम अस्पताल में फेफड़ों के सर्जन डॉ अरविंद कुमार के मुताबिक, “प्रत्येक 22 माइक्रोग्राम घन मीटर प्रदूषित हवा का अंदर जाना एक सिगरेट पीने के बराबर है। इसलिए, पीएम 2.5 का स्तर 700 है या 300 यूनिट, प्रभाव बुरा ही रहेगा। लोगों को एहतियात बरतने होंगे खासकर जो लोग दमा, ब्रोंकाइटिस या सांस संबंधी अन्य बीमारियों से पीड़ित हों।”
डॉक्टर ने परिवार में किसी को सांस संबंधी बीमारी होने की सूरत में एलर्जी किट भी तैयार रखने की सलाह दी है जिसमें दवाएं, इनहेलर और नेबुलाइजर हो। साथ ही उन्होंने शरीर में पानी की कमी नहीं होने देने को अहम बताया और सब्जियों एवं फलों के जूस के साथ ही ज्यादा से ज्यादा पानी पीने की सलाह दी है।
मालूम हो कि आज दुनिया के 10 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की लिस्ट में कई भारतीय शहरों के नाम दर्ज है। पर्यावरण थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) के स्टेट ऑफ इंडियाज इन्वायरन्मेंट (एसओई) रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण की वजह से देश में 12.5 पर्सेंट मौतें हुईं हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषित हवा के कारण भारत में 10,000 बच्चों में से औसतन 8.5 बच्चे पांच साल का होने से पहले मर जाते हैं जबकि बच्चियों में यह खतरा ज्यादा है। ग्रीनपीस ने भी एक रिपोर्ट में नयी दिल्ली पूरी दुनिया में सबसे प्रदूषित राजधानी शहर बताया है।
आज खुद से पैदा किए इन हालात पर ये कहना गलत नहीं होगा कि “वायु प्रदूषण सूचकांक” और दिल्ली और इसके आस-पास “अस्पतालों में उमड़ी भीड़” हमें आइना दिखा रहे है।
-डॉ. म शाहिद सिद्दीकी
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