सुप्रीम कोर्ट का टेलीकॉम कंपनियों को 92 हजार करोड़ चुकाने का निर्देश


वित्तीय संकट से गुजर रही टेलीकॉम कंपनियों को सुप्रीम कोर्ट से जबरर्दस्त झटका लगा है। कोर्ट ने दूरसंचार विभाग (डीओटी) को तीन प्रमुख टेलीकॉम कंपनियों से एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (एजीआर) मद में 92,000 करोड़ रुपये वसूलने की याचिका को मंजूरी दे दी है। इस बकाए का भुगतान कितने दिनों में किया जाएगा, इसका निर्धारण भी कोर्ट ही करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में कहा कि एजीआर में लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम उपयोग के अलावा अन्य आय भी शामिल करने का डीओटी का तर्क उचित है। जस्टिस अरुण मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने इस संबंध में टेलीकॉम कंपनियों की सभी दलीलों को खारिज कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि टेलीकॉम कंपनियों को पूरी राशि ब्याज के साथ विभाग को अदा करनी होगी।

अदालत के फैसले का असर शेयर बाजार पर भी दिखा और वोडाफोन आइडिया के शेयर में 19 फीसद की गिरावट दर्ज की गई।बेंच ने स्पष्ट कर दिया कि इस मुद्दे पर अब कोई मुकदमेबाजी नहीं होगी। अदालत इस राशि की गणना और टेलीकॉम कंपनियों के भुगतान की समय सीमा तय करेगी। इसी साल जुलाई में केंद्र सरकार ने अदालत को बताया था कि भारती एयरटेल, वोडाफोन आइडिया और एमटीएनएल व बीएसएनएल पर लाइसेंस फीस का 92,000 करोड़ रुपये बकाया है।

नई टेलीकॉम पॉलिसी के तहत टेलीकॉम लाइसेंस में कंपनियों को एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू का एक हिस्सा सरकार के साथ साझा करना अनिवार्य कर दिया गया है। यह राशि सरकार को वार्षिक लाइसेंस फीस के तौर पर दी जानी है। इसके अतिरिक्त टेलीकॉम कंपनियों पर स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल के लिए स्पेक्ट्रम यूसेज चार्जेज देना भी होगा।टेलीकॉम कंपनियां टीडीसैट के निर्णय के विरोध में शीर्ष अदालत पहुंची थीं।

टेलीकॉम डिसप्यूट्स सेटलमेंट एंड अपीलेट ट्रिब्यूनल (टीडीसैट) ने अपने फैसले में कहा था कि गैर-टेलीकॉम सेवाओं से प्राप्त रेवेन्यू मसलन किराया, अचल संपत्तियों की बिक्री, लाभांश और ट्रेजरी इनकम को एजीआर में शामिल किया जाना चाहिए। हालांकि टीडीसैट ने एजीआर की परिभाषा से पूंजी प्राप्तियों, डूबे हुए कर्ज, डीलर मार्जिन के वितरण, विदेशी मुद्रा विनिमय में उतार-चढ़ाव, स्क्रैप की बिक्री और लेट फीस को अलग कर दिया था।

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