महाराष्ट्र में क्या कमजोर पड़ गए उत्तर भारतीय नेता?


महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों ने उत्तर भारतीय नेताओं को टिकट देने में कंजूसी बरती है। इसी के साथ महाराष्ट्र की राजनीति में कभी बेहद असरदार रही उत्तर भारतीय लॉबी के अब कमजोर पड़ने की भी चर्चाएं शुरू हो गईं हैं।

2014 के चुनाव में भाजपा ने विद्या ठाकुर, मोहित कंबोज, अमरजीत सिंह और सुनील यादव सहित चार लोगों को टिकट दिए थे, वहीं कांग्रेस ने भी आधे दर्जन से ज्यादा उत्तर भारतीय और हिंदी भाषी चेहरों को चुनाव मैदान में उतारा था। मगर इस बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सिर्फ तीन उत्तर भारतीय या हिंदी भाषी नेताओं को टिकट दिया। इसमें मालाड पश्चिम से रमेश सिंह ठाकुर और गोरेगांव से विद्या ठाकुर जहां उत्तर भारतीय नेता हैं, वहीं मंगल प्रभात लोढ़ा की गिनती हिंदी भाषी नेता के रूप में होती है।

टिकट की रेस में शामिल मुंबई भाजपा के महासचिव अमरजीत मिश्रा, पूर्व विधायक राजहंस सिंह, दो बार विधायक रहे अभिराम सिंह, संजय पांडेय, मोहित कंबोज, सुनील यादव जैसे कई उत्तर भारतीय चेहरों को भाजपा से मायूसी हाथ लगी है। इससे उनके समर्थकों में नाराजगी भी बताई जाती है।

वहीं कांग्रेस ने भी इस बार महज पांच हिंदी भाषी नेताओं को टिकट दिए हैं। इनमें घाटकोपर पश्चिम से यशोभूमि अखबार के संपादक आनंद शुक्ल, कांदिवली पूर्व से अजंता यादव, मुलुंड से गोविंद सिंह, मालाड पश्चिम से असलम शेख और चांदिवली से नसीम खान शामिल हैं।

महाराष्ट्र की राजनीति लंबे समय से कवर करने वाले वरिष्ठ पत्रकार विजय सिंह कौशिक इस बार भाजपा से उत्तर भारतीयों को कम टिकट मिल पाने के पीछे गठबंधन को जिम्मेदार मानते हैं। कहते हैं कि 2014 में भाजपा और शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था, मगर इस बार गठबंधन के कारण मुंबई की उत्तर-भारतीयों की ज्यादा आबादी वाली 36 में से आधी सीटें शिवसेना के पास चलीं गईं। जिसके कारण भाजपा के पास उत्तर भारतीयों को टिकट देने के मौके कम थे।

विजय सिंह कौशिक यह भी कहते हैं कि इस बार लगा था कि कांग्रेस अपने परंपरागत उत्तर भारतीय मतदाताओं को फिर से जोड़ने के लिए कुछ ज्यादा टिकट दे सकती है, मगर ऐसा नहीं हुआ। संभवत: उत्तर भारतीय मतदाताओं का कांग्रेस की तुलना में भाजपा से दिल जोड़ लेना कारण हो सकता है।

दरअसल, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि राज्यों से रोजी-रोजगार के सिलसिले में महाराष्ट्र के मुंबई आदि शहरों में करीब 40 लाख लोग रहते हैं। 2014 से पहले तक उत्तर भारतीय कांग्रेस के परंपरागत वोटर रहे। मगर 2014 से चीजें तेजीं से बदलीं। लोकसभा चुनाव में मोदी के करिश्माई नेतृत्व के चलते भाजपा के जबर्दस्त उभार ने समीकरण बदल दिए।

कांग्रेस के खेमे से उत्तर भारतीय नेता ही नहीं बल्कि मतदाता भी भाजपा की तरफ शिफ्ट होने लगे। साल 2014 और 2019 के चुनावों के नतीजे बताते हैं कि कांग्रेस से उत्तर भारतीय मतदाता पीछा छुड़ाता दिखा। इस बीच कांग्रेस छोड़कर कई नेता भी भाजपा में शामिल हुए।

मिसाल के तौर पर कभी कांग्रेस के टिकट पर विधायक रहे राजहंस सिंह, रमेश सिंह अब भाजपा में हैं। उत्तर-भारतीय नेताओं में बड़े चेहरे और कांग्रेस सरकार में महाराष्ट्र के गृह राज्य मंत्री रहे कृपाशंकर भी हाल में पार्टी छोड़ चुके हैं। सूत्रों का कहना है कि इस वजह से कांग्रेस ने भी इस बार उत्तर-भारतीयों को टिकट देने में कंजूसी बरती।

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *