स्पिरिट को नशीली शराब में बदला जा सकता है… CJI चंद्रचूड़ की बेंच ने क्‍यों यह कहा? SC के 1997 के फैसले के ख‍िलाफ हो रही सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से जानना चाहा कि जहरीली शराब के जोखिमों के मद्देनजर राज्य अपने नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए औद्योगिक अल्कोहल पर नियमन क्यों नहीं लागू कर सकते हैं? न्यायालय ने केंद्र से यह भी पूछा कि राज्य औद्योगिक अल्कोहल के दुरुपयोग को रोकने के लिए इसपर शुल्क क्यों नहीं लगा सकते.

नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन, विनिर्माण, आपूर्ति और विनियमन में केंद्र और राज्यों की शक्तियों की समीक्षा कर रही है. मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा क‍ि हम सभी जहरीली शराब की त्रासदी के बारे में जानते हैं और राज्य अपने नागरिकों के स्वास्थ्य के बारे में चिंतित हैं. राज्यों को विनियमन की शक्ति क्यों नहीं होनी चाहिए? अगर वे दुरुपयोग रोकने के लिए विनियमन कर सकते हैं, तो वह कोई शुल्क भी लगा सकते हैं.

इससे पहले सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने राज्यों के खिलाफ फैसला सुनाया था, जिसके बाद बड़ी पीठ के समक्ष सुनवाई चल रही है. सात न्यायाधीशों की पीठ ने 1997 में केंद्र के पक्ष में फैसला सुनाया था. इस फैसले में कहा गया था कि केंद्र के पास औद्योगिक अल्कोहल के उत्पादन पर नियामक शक्ति होगी. राज्यों के इस फैसले को चुनौती देने के बाद 2010 में यह मामला नौ न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजा गया था.

नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने मेहता से पूछा कि राज्यों के पास औद्योगिक शराब के लिए एक नियामकीय तंत्र क्यों नहीं हो सकता है? पीठ ने कहा क‍ि स्पिरिट को एक प्रक्रिया के जरिये नशीली शराब में बदला जा सकता है. ऐसे में दुरुपयोग की आशंका है.क्या हम राज्य को यह सुनिश्चित करने के लिए नियामकीय शक्ति से वंचित कर सकते हैं कि इसका दुरुपयोग न हो?

न्यायालय ने कहा क‍ि केंद्र एक राष्ट्रीय इकाई है और आप किसी जिले में क्या हो रहा है, उसे नियंत्रित करने नहीं जा रहे हैं. मान लीजिए, उपभोग के लिए इसे विकृत कर दुरुपयोग करने की प्रबल संभावना है. मेहता ने अपने जवाब में कहा कि औद्योगिक अल्कोहल के विनियमन का काम उद्योग (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1951 के तहत केंद्र के पास है और केवल केंद्र के पास मानव उपभोग के अतिरिक्त अल्कोहल पर उत्पाद शुल्क लगाने की विधायी शक्ति है. उन्होंने कहा कि न्यायालय की व्याख्या केवल औद्योगिक अल्कोहल को प्रभावित नहीं करेगी, बल्कि उद्योग विनियमन और विकास अधिनियम, 1951 की अनुसूची – 1 में शामिल प्रत्येक उद्योग को प्रभावित करेगी. मामले की अगली सुनवाई 16 अप्रैल को होगी.

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *