कर्मचारियों के भविष्य निधि संगठन (इपीएफ़ओ) ने बीते वित्त वर्ष में जमा हुई राशि पर ब्याज़ दरों को दो किश्तों में देने का ऐलान किया है, जिसका केंद्रीय यूनियनें विरोध कर रही हैं और कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।
बुधवार को हुई सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ ट्रस्टीज़ (सीबीटी) की बैठक में तय हुआ कि 2019-2020 में जमा हुई राशि पर ब्याज़ की पहली किश्त 8.15% की जाएगी और दिसम्बर 2020 तक बकाया .35% ब्याज़ का भुगतान किया जाएगा।
सीबीटी की ये 226वीं बैठक थी और इससे पहले मार्च 2020 में हुई सीबीटी की बैठक में पीएफ़ पर 8.50% की ब्याज़ दर घोषित की गई थी। अब उनका कहना है कि बाज़ार में काफ़ी घाटा हो गया है इसलिए पहले के वादे के पूरा करना संभव नहीं है।
इसके अलावा सरकार ने न्यू पेंशन स्कीम की तरह ही एक नई पेंशन स्कीम लाने की बात भी कही गई जिसमें नियोक्ता यानी कंपनियों को पीएफ़ में कम पैसा जमा करना पड़ेगा। पहले 12% मैनेजमेंट को देना पड़ता था और 12% मज़दूर की सैलरी से कटता था।
हालांकि एक अच्छी बात ये है कि पीएफ़ से जुड़े जीवन बीमा की भुगतान राशि को छह लाख रुपये से बढ़ा कर सात लाख रुपये करने की घोषणा की गई है लेकिन उसकी कोई डेट नहीं बताई गई कि कबसे ये लागू होगा।
इसका कारण ये है कि पीएफ़ का बहुत सारा पैसा शेयर बाज़ार में लगा है और सरकार का कहना है कि दिसम्बर तक रिटर्न आ जाएगा और तब शेष ब्याज़ दे दिया जाएगा। लेकिन ये सुनिश्चित नहीं है कि मनमाने लॉकडाउन के कारण अगर रिटर्न में घाटा हुआ तो सरकार ये ठीकरा भी घाटे पर फोड़ देगी।
ईपीएफ़ओ एक स्वायत्त संस्था है, जिसमें ट्रेड यूनियन, सरकार और नियोक्ताओं के प्रतिनिधि होते हैं और इसके अध्यक्ष श्रम मंत्री होते हैं।
ट्रेड यूनियन नेताओं का कहना है कि कभी इपीएफ़ओ कर्मचारियों की जमा राशि पर 15% तक ब्याज़ देता था।
यूपीए के दौरान ये ब्याज़ दर पांच प्रतिशत तक आ गई थी जब पी चिदंबरम केंद्रीय वित्त मंत्री हुआ करते थे।
असल में देश भर के करोड़ों मज़दूरों के लाखों करोड़ रुपये का बंदोबस्त करने वाली संस्था इपीएफ़ओ पर शुरू से ही सरकार का कड़ा नियंत्रण रहा है लेकिन यूनियनें भी मज़दूरों-कर्मचारियों के हितों के लिए सजग रही हैं।
लेकिन सरकारों ने समय समय पर जनता की इस कमाई को पूंजीपतियों के हवाले करने के तरह तरह के हथकंडे अपनाए हैं। सबसे बड़ा झटका पीएफ़ राशि को शेयर मार्केट में लगाने से हुआ है, जिसे एक्सचेंज ट्रेडेड फ़ंड का नाम दिया गया है।
यूनियनें खुले बाज़ार में मज़दूरों की कमाई का पैसा लगाने का विरोध करती रही हैं लेकिन सरकारों ने ज़बरदस्ती ये काम किया।
बीबीसी के अनुसार, पहले रिटर्न -8 प्रतिशत के ऊपर था, जो लुढ़ककर -23 प्रतिशत से भी नीचे चला गया, इसलिए मज़दूर वर्ग को बाकी .35% ब्याज़ के बारे में भूल ही जाना चाहिए।
इपीएफ़ओ के अनुसार, अप्रैल-अगस्त 2020 के दौरान कुल 94.15 लाख लोगों ने पीएफ़ से 33,445 करोड़ रुपये निकाले हैं|
ये बताता है कि इस दौरान मेहनतकश वर्ग को नौकरी जाने, लॉकडाउन और अन्य असुरक्षाओं के ख़तरे का सामना करना पड़ा, क्योंकि पीएफ़ का पैसा बहुत मुसीबत में ही निकाला जाता है।