प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिन की जापान यात्रा (29–30 अगस्त 2025) भारत–जापान रिश्तों के इतिहास में एक नया मोड़ लेकर आई है। यह यात्रा केवल साझेदारी को गहरा करने तक सीमित नहीं रही, बल्कि दोनों देशों को एशियाई सदी का साझा नेतृत्वकर्ता बनाने की दिशा में आगे बढ़ा दिया है। इस दौरान आर्थिक सहयोग, सुरक्षा, तकनीक, पर्यावरण और लोगों के बीच जुड़ाव जैसे कई बड़े क्षेत्रों में अहम समझौते और घोषणाएँ हुईं।
सबसे महत्वपूर्ण रहा भारत–जापान संयुक्त दृष्टि पत्र 2035, जिसमें आने वाले 10 साल के लिए सहयोग का पूरा रोडमैप तय किया गया है। इसमें आठ बड़े क्षेत्र शामिल हैं – अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, गतिशीलता (मोबिलिटी), टिकाऊ विकास, तकनीक, स्वास्थ्य, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और राज्यों व प्रांतों के बीच साझेदारी।
सुरक्षा के मामले में भी दोनों देशों ने बड़ा कदम उठाया। सुरक्षा सहयोग पर संयुक्त घोषणा के ज़रिए रक्षा और सुरक्षा में सहयोग बढ़ाने का ढांचा तैयार किया गया है। बदलते क्षेत्रीय हालात और इंडो-पैसिफिक में नई चुनौतियों को देखते हुए यह कदम दोनों देशों की भूमिका को और मज़बूत करेगा।
मानव संसाधन के क्षेत्र में भी अहम पहल हुई। मानव संसाधन आदान-प्रदान की कार्ययोजना के तहत दोनों देशों में कुल पाँच लाख लोगों का आदान-प्रदान होगा, जिनमें अगले पाँच साल में 50 हज़ार भारतीय कुशल और अर्धकुशल पेशेवर जापान में काम करेंगे। यह सिर्फ कामगार भेजने की बात नहीं है, बल्कि दोनों समाजों के बीच स्थायी पुल बनाने की दिशा में बड़ा कदम है।
पर्यावरण और टिकाऊ विकास के मोर्चे पर भी कई अहम घोषणाएँ हुईं। संयुक्त क्रेडिटिंग मैकेनिज़्म पर सहमति पत्र भारत में डिकार्बोनाइजेशन तकनीकों को बढ़ावा देगा और जापानी निवेश को आकर्षित करेगा। स्वच्छ हाइड्रोजन और अमोनिया पर संयुक्त घोषणा टिकाऊ ईंधन में शोध और निवेश को प्रोत्साहित करेगी। इसके साथ ही विकेंद्रीकृत अपशिष्ट जल प्रबंधन पर एमओयू और पर्यावरण सहयोग पर सहमति पत्र प्रदूषण नियंत्रण, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन से निपटने में दोनों देशों को साथ लाएंगे।
तकनीक और नवाचार के क्षेत्र में भी यात्रा बेहद उपयोगी रही। डिजिटल पार्टनरशिप 2.0 पर एमओयू से डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर, एआई, आईओटी और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में साझा अनुसंधान और प्रतिभा विकास होगा। इसी कड़ी में भारत–जापान एआई पहल शुरू की गई, जिसमें बड़े भाषा मॉडल, प्रशिक्षण और स्टार्ट-अप सहयोग पर ज़ोर होगा।
महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति श्रृंखला को मज़बूत करने के लिए भी कदम उठाए गए। खनिज संसाधनों पर सहमति पत्र के तहत संयुक्त अन्वेषण, प्रसंस्करण और भंडारण पर काम होगा। यह दोनों देशों के लिए रणनीतिक रूप से अहम है क्योंकि इन खनिजों की ज़रूरत ऊर्जा, तकनीक और रक्षा जैसे क्षेत्रों में बढ़ रही है।
स्पेस यानी अंतरिक्ष सहयोग पर भी ऐतिहासिक समझौता हुआ। इसरो–जाक्सा चंद्रयान-5 मिशन समझौता चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों की संयुक्त खोज का रास्ता खोलेगा। यह भारत की किफायती तकनीक और जापान की उन्नत क्षमता को एक साथ जोड़ देगा।
संस्कृति और शिक्षा पर भी ध्यान दिया गया। सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर सहमति पत्र से कला, संग्रहालय और धरोहर संरक्षण में सहयोग बढ़ेगा। वहीं एसएसआईएफएस और जापान के विदेश मंत्रालय के बीच एमओयू से राजनयिकों, अधिकारियों और शोधकर्ताओं के बीच संपर्क मज़बूत होगा। इसी तरह, विज्ञान और तकनीक सहयोग पर संयुक्त बयान से शोधकर्ताओं और संस्थानों के बीच साझेदारी बढ़ेगी और स्टार्ट-अप आधारित नवाचार को प्रोत्साहन मिलेगा।
इन सबके अलावा कई अन्य अहम नतीजे भी सामने आए। जापान ने अगले 10 साल में भारत में लगभग 10 ट्रिलियन येन (65 अरब डॉलर) के निजी निवेश का लक्ष्य तय किया है। आर्थिक सुरक्षा पहल के तहत सेमीकंडक्टर, ऊर्जा, दवा, टेलीकॉम और खनिजों में आपूर्ति श्रृंखला मज़बूत होगी। अगली पीढ़ी की मोबिलिटी साझेदारी रेलवे, एविएशन, शिपिंग और लॉजिस्टिक्स को बढ़ावा देगी, जिसमें ‘मेक इन इंडिया’ पर खास ध्यान होगा। इसी तरह, एसएमई फोरम से छोटे और मझोले उद्योगों के बीच साझेदारी बढ़ेगी। सस्टेनेबल फ्यूल पहल किसानों की आजीविका और ऊर्जा सुरक्षा दोनों को सहारा देगी।
एक और खास पहल रही राज्यों और प्रांतों के बीच रिश्ते मज़बूत करने की। आने वाले समय में दोनों तरफ से तीन-तीन उच्च स्तरीय दौरे होंगे और कंसाई व क्यूशू जैसे प्रांतों के साथ नए व्यावसायिक और सांस्कृतिक मंच तैयार किए जाएंगे। इससे साझेदारी केवल राजधानी स्तर तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि ज़मीनी स्तर तक पहुँचेगी।
कुल मिलाकर, यह यात्रा भारत–जापान रिश्तों में रणनीतिक छलांग साबित हुई है। दोनों देश न केवल अपने आपसी सहयोग को मज़बूत कर रहे हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन, आपूर्ति श्रृंखला की कमजोरियाँ, नई तकनीक और सुरक्षा अस्थिरता जैसी वैश्विक चुनौतियों से भी मिलकर निपट रहे हैं। यह यात्रा इस बात का प्रतीक है कि भारत और जापान अब सिर्फ साझेदार नहीं, बल्कि एशियाई सदी के सह-निर्माता बनने की ओर बढ़ चुके हैं।
अगर इन सभी समझौतों और पहलों को पूरी तरह लागू किया गया, तो यह न केवल भारत–जापान रिश्तों को बदल देगा, बल्कि एशिया में शक्ति, सहयोग और नवाचार के समीकरणों को भी नया रूप देगा।
-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via X @shahidsiddiqui