भारत के चंद्रयान-3 ने 23 अगस्त को विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को चंद्रमा के दक्षिण ध्रुवीय इलाके में सफलतापूर्व लैंड कराके इतिहास रच दिया. इसके बाद प्रज्ञान और विक्रम ने चांद के इस इलाके में कई खोज कीं. फिर जब चांद पर रात हो गई तो दोनों गहरी नींद में चले गए. बता दें कि भारतीय रक्षा अनुसंधान संगठन ने इस सफल चंद्र अभियान को महज 7.5 करोड़ डॉलर में पूरा किया है. इस लागत पर कोई दूसरा देश सफल मिशन मून के बारे में सोच भी नहीं सकता है. इसरो को उम्मीद है कि जब चांद पर दिन होगा तो रोवर व लैंडर की नींद टूटेगी और वे फिर से चांद की सतह पर खोज में जुट जाएंगे. वहीं, यूरोपीयन साइंस मीडिया का कहना है कि अब प्रज्ञान और विक्रम का जागना मुश्किल है. जानते हैं कि इसके पीछे उनका क्या तर्क है?
यूरोपीय विज्ञान मीडिया का कहना है कि जैसे ही दो सप्ताह बाद चंद्र दिवस खत्म होगा रोवर प्रज्ञान के लिए मिशन खत्म हो सकता है. दरअसल, अब तक दुनिया ने उन रोवर अभियानों को देखा है, जो कई साल तक चले. इस धारणा के बनने में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के मंगल अभियान पर गए रोवर की बड़ी भूमिका है. यूरोपीयन साइंस मीडिया का कहना है कि उन रोवर्स में मल्टी मिशन रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर यानी एमएमआरटीजी बिजली संयंत्र हैं, जो कई साल तक चलते हैं. ये बहुत ज्यादा महंगे भी होते हैं. चंद्रयान-3 मिशन के रोवर प्रज्ञान में एमएमआरटीजी का इस्तेमाल नहीं किया गया है. ऐसे में चंद्र दिवस खत्म होने पर उसका काम करना मुश्किल है.
सौर ऊर्जा पर निर्भर है चंद्रयान-3 का रोवर प्रज्ञान
इसरो पहले ही बता चुका है कि चंद्रयान-3 का रोवर प्रज्ञान प्रज्ञान सौर ऊर्जा पर निर्भर है. फिलहाल चंद्र रात्रि चल रही है. प्रज्ञान ने विक्रम की मदद से अपने अब तक के मिशन में काफी डाटा इसरो को भेजा है. फिलहाल वह हाइबरनेट कंडीशन में है. चंद्रमा की सतह पर रात में तापमान -120C तक गिर जाता है. वहीं, इसरो ने अंतरिक्ष यान के इलेक्ट्रॉनिक्स इतने कम तापमान को सहन करने के लिए नहीं बनाए थे. अभी बैटरी चार्ज है और रिसीवर भी चालू है. इसरो को उम्मीद है कि चांद रात बीतने पर यह 22 सितंबर को फिर से सक्रिय होकर मिशन जारी रख सकता है. वैसे मिशन का इंजीनियरिंग उद्देश्य चंद्रमा पर सुरक्षित उतरना और चंद्रमा पर रोवर की ड्राइव करने की क्षमता का प्रदर्शन करना था. मिशन ने अब तक इन उद्देश्यों को पूरा किया.