दिल्ली और मॉस्को के रिश्ते एक बार फिर चर्चा में हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव की मुलाकात ऐसे समय हुई जब अमेरिका ने भारतीय सामान पर 50% तक शुल्क लगा दिया है और पश्चिमी देश भारत पर रूस से तेल खरीदकर “जंग की मशीन” चलाने का आरोप लगा रहे हैं। इसके बावजूद दोनों देशों ने साफ कर दिया कि उनका रिश्ता दबाव से नहीं टूटेगा।
रूस से भारत का ऊर्जा समीकरण पूरी तरह बदल गया है। 2022 से पहले भारत की तेल खरीद में रूस का हिस्सा सिर्फ 2% था, आज यह बढ़कर लगभग 35% हो गया है। रूस अब भारत का सबसे बड़ा तेल सप्लायर है। 2023 में रूसी तेल की खरीद 1,000% से भी ज्यादा बढ़ गई।
व्यापार का कुल आंकड़ा भी रिकॉर्ड स्तर पर है, 2023-24 में भारत–रूस व्यापार $65 अरब तक पहुंच गया। लेकिन इसमें बड़ी असमानता है। $60 अरब से ज्यादा रूस का निर्यात है जबकि भारत का रूस को निर्यात सिर्फ $4-5 अरब के बीच है। जयशंकर ने कहा कि दवाइयों, कृषि और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में भारत का निर्यात बढ़ाना जरूरी है।
भारत दुनिया की सबसे बड़ी जेनेरिक दवा सप्लाई करने वाली अर्थव्यवस्था है और रूस यूरोप से कटने के बाद नए बाजार तलाश रहा है। ऐसे में दोनों देशों के लिए व्यापार संतुलन की बड़ी संभावना है।
पश्चिम भारत पर आरोप लगाता है कि सस्ता तेल खरीदकर वह रूस को मजबूत कर रहा है। लेकिन भारत का जवाब सीधा है। पहला – यूरोप खुद पर नैतिकता का ठप्पा लगाता है लेकिन 2022-24 के बीच यूरोपीय देशों ने बिचौलियों के जरिए €100 अरब से ज्यादा का रूसी तेल और गैस खरीदा। दूसरा- भारत के लिए यह तेल खरीद “सिर्फ कारोबार” है। 1.4 अरब की आबादी वाले देश के लिए सस्ता तेल आर्थिक मजबूती के लिए जरूरी है। तीसरा – भारत अपने फैसले “रणनीतिक स्वायत्तता” की नीति पर लेता है। जैसा कि जयशंकर ने कहा, “यूरोप को यह समझना होगा कि उसकी समस्याएँ पूरी दुनिया की समस्याएँ नहीं हैं।”
भारत–रूस संबंधों की जड़ें गहरी हैं। सोवियत दौर में रूस ने भारत को रक्षा, परमाणु और कूटनीतिक समर्थन दिया, खासकर 1971 के बांग्लादेश युद्ध में। आज भी भारत की 60% से ज्यादा सैन्य तकनीक रूस से जुड़ी है। ब्रह्मोस मिसाइल जैसे संयुक्त प्रोजेक्ट भरोसे को और मजबूत करते हैं।
भले ही भारत अब अमेरिका, फ्रांस और इज़राइल से भी हथियार खरीद रहा है, लेकिन रूस का सहयोग अब भी आधारभूत है, क्योंकि रूस तकनीक साझा करने और मिलकर विकसित करने में खुलापन दिखाता है।
आज की भू-राजनीति में दोनों देश “मल्टीपोलर वर्ल्ड” यानी बहुध्रुवीय दुनिया की वकालत करते हैं। BRICS, SCO और G20 जैसे मंच पर दोनों की साझेदारी इसे और मजबूत करती है। अमेरिका और यूरोप द्वारा बनाए गए ढाँचों से बाहर निकलकर दोनों अपनी जगह बना रहे हैं।
भुगतान प्रणालियों और लॉजिस्टिक्स में भी नए प्रयोग हो रहे हैं। डॉलर पर निर्भरता घटाने के लिए रुपये -रूबल ट्रेड, MIR और RuPay कार्ड लिंक, और इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर पर काम तेज़ है।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर भारी टैरिफ लगाकर दबाव बनाने की कोशिश की, लेकिन भारत–अमेरिका का व्यापार भी 2023 में $120 अरब पार कर चुका है। भारत किसी एक खेमे में जाने के बजाय दोनों के साथ संतुलन बनाए रखना चाहता है।
हालाँकि चुनौतियाँ भी हैं, व्यापार असमानता, तकनीकी सीमाएँ और रूस–चीन नजदीकी भारत के लिए चिंता का कारण हैं। लेकिन लावरोव ने साफ किया कि रूस भारत के साथ ऊर्जा से आगे जाकर आर्कटिक, फार ईस्ट और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे क्षेत्रों में काम करना चाहता है।
दोनों देशों की साझेदारी दिखाती है कि “मिडिल पावर्स” अब बड़े देशों की कठपुतली नहीं बनना चाहते। भारत और रूस व्यावहारिक हितों पर आधारित रिश्ता निभा रहे हैं – ऊर्जा सुरक्षा, रक्षा भरोसा और बहुध्रुवीयता की साझी सोच।
इतिहास और वर्तमान दोनों यह बताते हैं कि यह रिश्ता मजबूरी से नहीं, गहराई से बना है। यही वजह है कि दबाव, पाबंदियाँ और टैरिफ इसे हिला नहीं सकते।
-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via X @shahidsiddiqui