भारत की ऑटो इंडस्ट्री: टैक्स की मुश्किलें और भविष्य की तैयारी

नई दिल्ली: मारुति सुज़ुकी इंडिया के एमडी और सीईओ हिसाशी ताकेउची ने जब कहा कि “आने वाले कई दशक भारत के हैं,” तो यह सिर्फ एक भरोसा नहीं था बल्कि एक चेतावनी भी थी। भारत की ऑटो इंडस्ट्री आज एक अहम मोड़ पर खड़ी है। अमेरिका ने भारतीय ऑटो पार्ट्स पर भारी टैरिफ (25% और 50% टैक्स) लगा दिया है, जिससे कारोबारियों की चिंता बढ़ गई है।

भारत से करीब 30% ऑटो पार्ट्स अमेरिका जाते हैं। अब 3.5 अरब डॉलर के पैसेंजर व्हीकल पार्ट्स पर 25% टैक्स और 3 अरब डॉलर के ट्रैक्टर, कमर्शियल व्हीकल और कंस्ट्रक्शन इक्विपमेंट पार्ट्स पर 50% टैक्स लगा दिया गया है। साफ है कि भारत को झटका लगा है।

फिर भी, इंडस्ट्री बॉडी ACMA के डायरेक्टर जनरल विनी मेहता का कहना है कि फिलहाल एक्सपोर्ट्स पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। अप्रैल-जून में एक्सपोर्ट का स्तर पिछले साल जैसा ही रहा।

लेकिन असली चुनौती सिर्फ टैरिफ नहीं है। ACMA की प्रेसिडेंट श्रद्धा सूरी मरवाह ने चेताया कि भारत को तुरंत R&D (रिसर्च और डेवलपमेंट) में निवेश करना होगा। उन्होंने कहा, “टेक्नोलॉजी तेजी से बदल रही है, इलेक्ट्रिक गाड़ियाँ, डिजिटल सॉल्यूशंस और सॉफ्टवेयर ड्रिवन व्हीकल्स आ रहे हैं। इसके लिए बड़े पैमाने पर रिसर्च, टेक्नोलॉजी और सस्टेनेबिलिटी में निवेश करना ही होगा।”

इसी बीच, भारत-यूरोपियन यूनियन (EU) फ्री ट्रेड एग्रीमेंट और भी अहम हो गया है। भारत पहले से ही यूरोप को 6.7 अरब डॉलर के ऑटो पार्ट्स बेचता है और वहां से 5.7 अरब डॉलर खरीदता है। यानी व्यापार संतुलित है। अगर EU के साथ टैरिफ घटते हैं तो भारत को टेक्नोलॉजी और इन्वेस्टमेंट दोनों मिल सकते हैं, खासकर EV (इलेक्ट्रिक व्हीकल) और बैटरी जैसे क्षेत्रों में।

ACMA के प्रेसिडेंट-डिज़िगनेट विक्रमपाती सिंघानिया ने कहा कि असली समस्या सिर्फ टैक्स रेट नहीं है, बल्कि दूसरे देशों के मुकाबले भारत की स्थिति है। “हमें सोचना होगा कि दूसरे देशों पर कितना टैक्स है और हम कहां खड़े हैं। फर्क (डिफरेंशियल) ही असली मुद्दा है।”

यानी इंडस्ट्री समझ रही है कि सिर्फ अमेरिका पर निर्भर रहना खतरनाक है। इसलिए भारत को यूरोप, नई टेक्नोलॉजी और R&D पर फोकस करना होगा।

निष्कर्ष साफ है: टैक्स की चोट तो है, लेकिन यह भारत की ऑटो इंडस्ट्री को और मजबूत बनाने का मौका भी है। अगर भारत ने समय पर R&D और टेक्नोलॉजी पर दांव लगाया, तो आने वाले दशक वाकई भारत के हो सकते हैं।

-डॉ. शाहिद सिद्दीक़ी; Follow via X  @shahidsiddiqui

इसे शेयर करें

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *