पाकिस्तान ने बातचीत के लिए फिर लगाई गुहार, शहबाज शरीफ की पेशकश पर भारत ने सुनाई थी खरी-खरी

भारत के विदेश मंत्रालय द्वारा बातचीत के लिए आतंक और शत्रुता मुक्त माहौल बनाने में विफल रहने के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराने के जवाब में इस्लामाबाद ने अब क्षेत्र में बातचीत और शांति के लिए अनुकूल माहौल बनाने की जिम्मेदारी नई दिल्ली पर डाल दी है. पाकिस्तान विदेश कार्यालय (एफओ) के प्रवक्ता मुमताज ज़हरा बलूच ने कहा कि ‘ऐसे माहौल में पाकिस्तान और भारत के बीच बातचीत महत्वपूर्ण थी, जो जोर-जबरदस्ती और जुझारूपन से मुक्त हो जैसा कि भारत इस क्षेत्र में प्रदर्शित करना जारी रखता है.’

एफओ का बयान प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ के भाषण पर भारतीय मंत्रालय की हालिया टिप्पणियों के जवाब में आया है, इसमें उन्होंने कहा था कि पाकिस्तान अपने पड़ोसी से बात करने के लिए तैयार है, ‘बशर्ते कि पड़ोसी गंभीर मुद्दों पर बात करने के लिए गंभीर हो, क्योंकि युद्ध विकल्प नहीं है.’ मुमताज बलूच ने कहा, ‘पाकिस्तान एक शांतिपूर्ण पड़ोस में विश्वास करता है और अपने सभी पड़ोसियों के साथ आपसी और अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप शांति चाहता है.’

भारत और पाकिस्तान को ऐसे माहौल की जरूरत है…
उन्होंने कहा, ‘प्रधानमंत्री की टिप्पणियां इस स्थिति की पुष्टि करती हैं. हमारा यह भी मानना है कि पाकिस्तान और भारत के बीच ऐसे माहौल में बातचीत महत्वपूर्ण है, जो जोर-जबरदस्ती और जुझारूपन से मुक्त हो, जैसा कि भारत इस क्षेत्र में प्रदर्शित करता रहता है. हमारा मानना है कि शांति और बातचीत का माहौल बनाने की गेंद भारत के पाले में है.’ पाकिस्तान और भारत शांति वार्ता के लिए आवश्यकताओं और शर्तों को पूरा करने में विफल रहने के लिए एक-दूसरे पर आरोप लगाते हुए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप में लगे हुए हैं.

भारत और पाकिस्तान को लेकर विशेषज्ञ क्या कहते हैं
विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों पक्षों ने अतीत में अपना-अपना राजनीतिक लाभ हासिल किया है और भविष्य में भी ऐसा करना जारी रखना चाहते हैं. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक जावेद सिद्दीकी ने कहा, ‘चाहे वह भारत हो या पाकिस्तान, दोनों पक्षों और उनकी संबंधित सरकारों ने अतीत में अपने समर्थकों और वोटों के सामने अपनी राजनीतिक स्थिति में बड़ा लाभ हासिल किया है.’

उन्होंने कहा, ‘दोनों देशों के बीच नफरत ने शांति की किसी भी आशा और इच्छा या दोनों पक्षों द्वारा विचारशील निर्णय के माध्यम से की गई किसी भी समान पहल पर हावी हो गई है. यही कारण है कि विदेशी बाहरी हस्तक्षेप, दोनों पक्षों पर मेज पर बैठने के लिए दबाव डालना विदेश नीति अभियान का हिस्सा बन जाता है.’ अफसोस की बात है कि दोनों पक्षों की ओर से जवाबी बयानबाजी वर्षों से चल रही है, जो अब, कई लोगों के लिए बयानबाजी और प्रतीकात्मक मूल्य की प्रतिष्ठा प्राप्त कर चुकी है, जो केवल बयानों तक ही सीमित है.

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