पाकिस्तान के चीफ जस्टिस का फरमान, बोले- सेना को कोई भी असंवैधानिक कदम उठाने की अनुमति नहीं

पाकिस्तान (Pakistan) के प्रधान न्यायाधीश उमर अता बंदियाल ने बृहस्पतिवार को कहा कि देश की शीर्ष न्यायपालिका सेना (Army) को कोई भी असंवैधानिक कदम उठाने की अनुमति नहीं देगी. प्रधान न्यायाधीश बंदियाल ने नौ मई के विरोध प्रदर्शन के दौरान सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले के दौरान सैन्य अदालतों में आम नागरिक के मुकदमों को चुनौती देने वाली याचिकाओं की एक श्रृंखला पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की.

पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थकों द्वारा की गई आगजनी और हिंसा की घटना का जिक्र करते हुए शीर्ष न्यायाधीश ने दंगों को गंभीर बताया और उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन हुई घटना पर अफसोस और दुख व्यक्त किया. इस्लामाबाद में नौ मई को अर्धसैनिक रेंजर्स द्वारा खान की गिरफ्तारी के बाद हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. खान की गिरफ्तारी के बाद हुए हिंसक विरोध प्रदर्शन में रावलपिंडी में सेना मुख्यालय सहित 20 से अधिक सैन्य प्रतिष्ठान और राज्य भवन क्षतिग्रस्त हो गए या उनमें आग लगा दी गई.

सरकार और सेना चाहती है कि हिंसा करने वालों पर हो कार्रवाई
हिंसा पर सरकार और सेना की ओर से कड़ी प्रतिक्रिया हुई और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने का वादा किया गया, जिससे इसमें शामिल लोगों के खिलाफ कार्रवाई जारी रही. प्रधान न्यायाधीश ने नौ मई को हिंसा के बावजूद नागरिकों पर गोलियां नहीं चलाने के लिए सशस्त्र बलों की प्रशंसा की, लेकिन साथ ही कहा कि “सेना को कोई भी अवैध कदम उठाने की अनुमति नहीं दी जाएगी”.

सैन्‍य सुनवाई नहीं करने का आदेश
उन्होंने यह भी कहा कि न्यायाधीशों की अनुपलब्धता के कारण लगभग दो सप्ताह तक सुनवाई नहीं होगी और पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल (एजीपी) उस्मान अवान से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि इस अवधि के दौरान नागरिकों पर मुकदमा नहीं चलाया जाए. उन्होंने अवान से कहा, “एजीपी साहब, नागरिकों पर कोई सैन्य सुनवाई नहीं की जाएगी”. अवान ने अदालत को आश्वासन दिया कि उसके निर्देशों का पालन किया जाएगा.

हिरासत में बंदियों को मिलें प्रासंगिक सुविधाएं  
बंदियाल ने यह भी कहा कि सैन्य अधिकारियों की हिरासत में संदिग्धों को प्रासंगिक सुविधाएं प्रदान करने के पहले के निर्देश यथावत रहेंगे. कम से कम 102 नागरिक सेना की हिरासत में हैं और सरकार उन पर सेना अधिनियम के तहत मुकदमा चलाने पर अड़ी है लेकिन मानवाधिकार समूह इस कदम का विरोध कर रहे हैं.

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